बिहार में नीतीश कुमार की जीत पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छिड़ी ऐसी चर्चा

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इमेज कैप्शन, बिहार में इस बार एनडीए को 2010 जैसी बड़ी जीत मिली है

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की जीत ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचा है.

अंतरराष्ट्रीय मीडिया की कुछ रिपोर्टों और विश्लेषणों में इस जीत के लिए महिलाओं को किया गया कैश ट्रांसफ़र और एनडीए की राजनीतिक चतुराई को श्रेय दिया गया है.

कुछ विश्लेषणों ने इसे बिहार की सामाजिक–राजनीतिक दिशा में बड़ा मोड़ करार दिया है.

इनमें कहा गया है कि ये देश के राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से परिभाषित कर सकती है.

ब्रिटिश अख़बार 'फ़ाइनेंशियल टाइम्स' में ग्लोबल इन्वेस्टर और स्तंभकार रुचिर शर्मा ने लिखा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारत के 'जो बाइडन' में बदल गए थे.

उन्होंने लिखा है, ''उन्हें भाषणों के लिए मंच पर तो लाया जाता था लेकिन बाक़ी समय वे सहयोगियों के घेरे में रहते थे, जो बोलने में उनकी भूल-चूक, सूनी निगाहों और याददाश्त गिरने से चिंतित रहते थे.''

''इसके बावजूद नीतीश के नेतृत्व में उनके गठबंधन ने चुनावी जीत हासिल कर ली जबकि उनकी सेहत से जुड़ी समस्याएं बाइडन से भी ज़्यादा गहरी लग रही थीं.''

नीतीश कुमार की जो बाइडन से तुलना

 नीतीश

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इमेज कैप्शन, बिहार चुनाव के दौरान नीतीश कुमार के बीमार रहने की ख़बरें चर्चा में रहीं

रुचिर शर्मा लिखते हैं, ''पिछले 30 सालों से मैं भारत के राष्ट्रीय और हर साल होने वाले राज्यों के चुनाव को कवर कर रहा हूँ. यह मेरा बिहार का छठा दौरा था. यहाँ की हरी-भरी लेकिन दलदली ज़मीन पर भीषण ग़रीबी की छाप दिखती है. मुझे उम्मीद थी कि नीतीश कुमार की सेहत और ठहरा हुआ विकास बड़े मुद्दे होंगे.लेकिन मैंने पाया कि नीतीश के पारंपरिक समर्थक आज भी उनके लंबे कार्यकाल में किए गए कामों के लिए शुक्रगुज़ार हैं.''

''वे उनकी सेहत पर चर्चा को भी अपमान मानते हैं. उन्हें वोट न देना तो दूर की बात है.''

''दो दशक पहले सत्ता संभालने से पहले 13.5 करोड़ लोगों वाला ज़मीन से घिरा प्रदेश ऐसी जगह थी, जिसे 'सभ्यता भूल चुकी' है. जिसे अंधकार वाला प्रदेश और जंगल राज के नाम से जाना जाता था.''

रुचिर शर्मा लिखते हैं, ''लेकिन अपने पहले कार्यकाल में नीतीश कुमार ने क़ानून-व्यवस्था को दुरुस्त किया, सड़कें और पुल बनवाए. दूसरे कार्यकाल में उन्होंने गांवों में बिजली पहुंचाई.''

''लेकिन पिछले दो कार्यकाल में नीतीश कुमार अगले क़दम नहीं उठा पाए. नौकरियां पैदा करने में वो नाकाम रहे. पूर्णिया शहर के आसपास सबसे बड़ा "उद्योग" मखाना प्रोसेसिंग है. हर तीन में से दो बिहारी परिवारों में कम से कम एक सदस्य रोज़गार के लिए राज्य से बाहर है.''

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''अगर बिहार एक देश होता, तो यह लाइबेरिया से भी ग़रीब और दुनिया का 12 वां सबसे ग़रीब देश होता.''

''फिर भी कुमार की जीत भारत में आशा और बेबसी के टकराव के बारे में बहुत कुछ कहती है.''

''नीतीश कुमार के शासन के शुरुआती दशक में बिहार की औसत आय देश के बाकी हिस्सों के साथ बढ़ने लगी थी लेकिन अब फिर से पीछे हो गई है.''

''कुल सरकारी ख़र्च राज्य की जीडीपी का 34 फ़ीसदी है जो राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना है. आधा ख़र्च सामाजिक योजनाओं पर जाता है.''

रुचिर शर्मा लिखते हैं कि कुमार की जीत एक ग्लोबल ट्रेंड को दिखाती है. जहां विकसित लोकतंत्रों में लोग सत्तारूढ़ नेताओं के प्रति शत्रुता दिखा रहे हैं, वहीं विकासशील देशों में उल्टा हो रहा है.

वो लिखते हैं, ''भारत में 2000 के दशक से पहले मुख्यमंत्री 70 फ़ीसदी चुनाव हार जाते थे. अब वे वापसी कर रहे हैं और इस दशक में आधे से ज़्यादा चुनाव जीत रहे हैं. बुजुर्गों के प्रति सम्मान, धीमी प्रगति की आध्यात्मिक सी स्वीकृति और सत्ता तंत्र पर बढ़ता नियंत्रण.''

एसआईआर प्रक्रिया के बाद अहम जीत

एसआईआर प्रक्रिया

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इमेज कैप्शन, कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल बीजेपी पर चुनाव लिस्ट से वोटरों को हटाने का आरोप लगाते रहे हैं. (फ़ाइल फ़ोटो)
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बिहार में नीतीश कुमार की जीत को शानदार बनाते हुए 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने लिखा है ये चुनाव इसलिए भी चर्चा में था क्योंकि मतदान से पहले मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर बदलाव किए गए थे. इस पर काफी हंगामा मचा था.

अख़बार लिखता है, '' इस प्रक्रिया में 40 लाख से ज़्यादा नाम हटा दिए गए. विपक्ष का आरोप था कि यह प्रक्रिया अव्यवस्थित और अराजक थी और जिन लोगों के नाम हटाए गए, वे ज़्यादातर उनके समर्थक थे.अब एसआईआर कही जाने वाली ये प्रक्रिया दूसरे राज्यों में भी शुरू होने वाली है.''

''चुनाव आयोग और मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा कि सूची से मृत, डुप्लीकेट और फ़र्जी मतदाताओं को हटाया गया है. प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए की जीत का श्रेय व्यापक सामाजिक गठबंधन बनाने और अपने नेतृत्व में लोगों के भरोसे को दिया.''

''उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में क़ानून-व्यवस्था सुधारने और महिलाओं के जीवन में बेहतरी लाने वाली योजनाओं ने नीतीश कुमार की छवि मज़बूत की.''

महिलाओं को दी गई दस हजार रुपये की राशि को विपक्ष ने सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग कहा. उसका कहना था कि इससे मोदी के गठबंधन को अनुचित लाभ मिला.

अख़बार लिखता है, ''विपक्ष लंबे समय से मोदी पर चुनावी प्रक्रिया को अपने पक्ष में झुकाने का आरोप लगाता रहा है. हाल में विपक्ष ने चुनाव आयोग के खिलाफ अभियान तेज किया है और उस पर "वोट चोरी" में मदद करने का आरोप लगाया है.''

अख़बार लिखता है, ''विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि हरियाणा के चुनाव में चुनावी गड़बड़ियों ने नतीजे पलट दिए. अपने एक प्रेजेंटेशन में उन्होंने स्क्रीन पर एक युवती की फोटो दिखाई और दावा किया कि यही तस्वीर 10 बूथों में 22 वोटर आईडी पर अलग-अलग नामों के साथ इस्तेमाल की गई है.''

अख़बार ने लिखा, ''बिहार में मतदाता सूची की यह सफाई राष्ट्रीय चुनाव के ठीक एक साल बाद हुई. उस चुनाव में राज्य ने एनडीए को दो दर्जन से अधिक लोकसभा सीटें दी थीं, जिससे उन्हें तीसरा कार्यकाल मिला. विपक्ष का तर्क था कि अब चुनाव से ठीक पहले इतनी बड़ी कटौती के दो ही मतलब हो सकते हैं. या तो लोकसभा चुनाव संदिग्ध मतदाता सूची पर लड़ा गया था या फिर राज्य चुनाव में बड़े पैमाने पर मतदाताओं को वंचित कर भाजपा नतीजों को प्रभावित करना चाहती है.''

''चुनाव आयोग ने शुरू में 65 लाख नाम काट दिए थे, यह कहते हुए कि एक-तिहाई लोग मृत हैं और बाकी या तो कहीं और चले गए हैं या उनके नाम दो बार दर्ज थे.''

'राजनीतिक अवसरवाद के प्रतीक बन गए हैं नीतीश'

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इमेज कैप्शन, बीजेपी नेता नित्यानंद राय (दाएं) के साथ नीतीश कुमार

ब्लूमबर्ग ने बिहार में नीतीश कुमार की जीत के लिए महिलाओं को पैसे देने का ज़िक्र किया है.

ब्लूमबर्ग स्तंभकार एंडी मुखर्जी ने लिखा है, ''आखिरी क्षणों में, सरकार ने एक रोज़गार कार्यक्रम के नाम पर लाखों महिलाओं के बैंक खातों में पैसा जमा करा दिया. नीतीश फिर से सत्ता में लौट आए और एनडीए ने राज्य की 243 सीटों में से 202 सीटें जीत लीं.''

एंडी मुखर्जी लिखते हैं, ''जाति के आधार पर मतदाताओं की पसंद एक हद तक पहले की तरह बँटी रही. लेकिन इस बार कैश ने उन सभी मतदाताओं को एक साथ कर दिया.''

वो लिखते हैं, ''सितंबर से शुरू होकर 1.2 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये (113 डॉलर) दिए गए. जो महिलाएं इस राशि का उपयोग किसी छोटे व्यवसाय की शुरुआत में करेंगी, उन्हें आगे और फंड देने का वादा किया गया है. हालांकि महिलाओं को पैसे देकर रिझाने वाला पहला चुनाव नहीं था.''

मुखर्जी लिखते हैं, ''क्या बिहार की महिलाओं ने एक ख़राब सौदा करना मंजूर किया? राज्य के पास जेन ज़ी के लिए देने को बहुत कम है. 2021 में यहां हर एक लाख लोगों पर सिर्फ़ आठ कॉलेज थे, जो राष्ट्रीय औसत का चौथाई हिस्सा है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सिर्फ़ छह फ़ीसदी लोग काम करते हैं और शहरी महिलाओं की श्रम भागीदारी दर सिर्फ 16 फ़ीसदी है.''

''2001 से 2011 के बीच बिहार से 90 लाख लोग पलायन कर गए. भारत ने पिछले 14 वर्षों से जनगणना नहीं कराई है. लेकिन इस तथ्य को देखते हुए कि पिछले तीन दशकों में बिहार की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी और घट गई है. यह मानना ठीक हो सकता है, बिहार अब भी बड़ी संख्या में श्रमिक खो रहा है. इसके बावजूद एक नई राजनीतिक पार्टी, जिसने जाति को पीछे रखकर मजबूरन पलायन को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की, एक भी सीट नहीं जीत सकी.''

मुखर्जी लिखते हैं, ''नीतीश कुमार बिहार की आधुनिक राजनीति के भीतर बसे हुए राजनीतिक अवसरवाद का प्रतीक बन चुके हैं. उनकी पार्टी नाममात्र की समाजवादी है. चुनाव परिणामों के बाद जब उनके एक वरिष्ठ नेता टीवी चैनलों से बात कर रहे थे, तब उनके पीछे चे ग्वेरा की तस्वीर लगी थी. फिर भी नीतीश, जो सत्ता में बने रहने के लिए कई बार पाला बदल चुके हैं, हिंदुत्ववादी बीजेपी के साथ हैं.''

'' दरअसल, पिछले साल के आम चुनाव में जब भाजपा अप्रत्याशित रूप से बहुमत खो बैठी, तब मोदी को प्रधानमंत्री बनाए रखने में नीतीश की भूमिका महत्वपूर्ण रही.''

''फिर भी बीजेपी ने बिहार की राजनीति में अपनी मौजूदगी मज़बूत कर ली है. इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि मोदी ने कांग्रेस पार्टी को एक राजनीतिक रूप से अहम राज्य में लगभग पूरी तरह ख़त्म कर दिया है. राहुल गांधी, जिन्होंने चुनाव आयोग पर भाजपा के साथ मिलकर "वोट चोरी" का आरोप लगाया है, कहते हैं कि वे ऐसे नतीजों से हैरान हैं जो उन्हें कभी निष्पक्ष लगते ही नहीं थे. उनकी पार्टी को सिर्फ छह सीटें मिलीं.''

''निराश कांग्रेस नेताओं के बीच यह सवाल उठना तय है कि जब उनके नेता ही चुनावों को धांधली वाला बताते हैं, तो फिर चुनाव लड़ने का क्या मतलब है. चुनाव आयोग ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है.''

बिहार मोदी के लिए क्यों अहम

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इमेज कैप्शन, बिहार में एनडीए की जीत के समर्थकों के साथ जश्न मनाते पीएम नरेंद्र मोदी

अमेरिकी अख़बार 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने बिहार में नीतीश कुमार की जीत के बाद इस पहलू का विश्लेषण किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बिहार क्यों अहम है.

अख़बार लिखता है, ''कृषि-प्रधान राज्य बिहार का यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए काफ़ी अहम था. अगले दो वर्षों में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में होने वाले चुनावों और 2029 के आम चुनाव से पहले वे राजनीतिक रफ़्तार हासिल करना चाहते थे.''

''यह जीत केंद्र सरकार को मज़बूती दे रही है, जो पिछले साल के आम चुनाव में पूर्ण बहुमत न मिलने के बाद क्षेत्रीय सहयोगियों के समर्थन पर चल रही है.''

अख़बार लिखता है, ''मोदी की पार्टी ने जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ मिलकर केंद्र में सरकार बनाई है. यही पार्टियां बिहार में भी उनके प्रमुख सहयोगी हैं.''

अख़बार ने राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी के हवाले से लिखा है, "बिहार को अपने क़ब्ज़े में रखना मोदी के लिए बहुत राहत देने वाला होगा. इससे केंद्र की सरकार को अधिक स्थिरता मिलेगी."

अख़बार ने लिखा है कि इससे मोदी का राजनीतिक गठबंधन और मज़बूत होगा.

''74 वर्षीय कुमार लगभग दो दशक से शासन में हैं और उन्हें राज्य के बुनियादी ढांचे में सुधार और कानून-व्यवस्था की समस्याओं को समाप्त करने का श्रेय दिया जाता है.''

अख़बार ने लिखा है कि एक समय मोदी के विरोधी रहे नीतीश बाद में फिर से बीजेपी-नीत एनडीए में शामिल हो गए.

''यह आशंका थी कि यदि बिहार में हार होती तो नीतीश की पार्टी में टूट हो सकती थी और इससे मोदी का केंद्रीय गठबंधन कमज़ोर पड़ जाता. ये केंद्र में जेडीयू के 12 सांसदों पर भी निर्भर है. नीतीश की पार्टी ने 85 सीटें जीतीं.''

अख़बार ने अमेरिका-स्थित एडवाइजरी के एशिया ग्रुप' के भारत प्रमुख अशोक मलिक के हवाले से लिखा, "इस जीत से मोदी और एनडीए की राजनीतिक पूंजी और मज़बूत हुई है. भारत राजनीतिक और नीतिगत निरंतरता को लेकर काफ़ी आशावादी रुख़ अपना सकता है."

अख़बार ने लिखा है कि नीतीश की इस जीत से विपक्ष कमज़ोर हुआ है.

अख़बार लिखता है, ''एनडीए के मुख्य प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल, जिसने कांग्रेस और अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाया था, का प्रदर्शन कमजोर रहा.';'

''मोदी के पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा बनाई गई नई पार्टी 'जन सुराज' भी चुनाव में टिक नहीं पाई. चुनाव शुरू होने से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष ने राज्य में चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची में किए गए संशोधन को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया था.''

अख़बार ने लिखा, ''जून के बाद से राज्य के 7.4 करोड़ मतदाताओं में से करीब 10 फ़ीसदी लोगों के नाम सूची से हटाए गए थे. विपक्ष का कहना था कि इससे ग़रीबों और अल्पसंख्यकों का मताधिकार छीना गया. चुनाव आयोग ने कहा कि बड़े पैमाने पर मजदूरों के पलायन, नए युवाओं के मतदाता बनने और मौतों की रिपोर्टिंग न होने के कारण यह संशोधन ज़रूरी था.''

''चुनावी नतीजे बताते हैं कि यह मुद्दा व्यापक रूप से मतदाताओं के बीच असर नहीं डाल सका.''

कमज़ोर विपक्ष

तेजस्वी और राहुल गांधी

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इमेज कैप्शन, विपक्ष अब अपनी चुनावी रणनीति में ख़ामियां ढूंढ रहा है

विदेश और राजनीतिक मामलों की पत्रिका 'द डिप्लोमैट' ने बिहार के नतीजों पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, ''इंडिया गठबंधन को भारी नुक़सान झेलना पड़ा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी राष्ट्रीय जनता दल इस बार सिर्फ 25 सीटें ही जीत सकी.''

''कांग्रेस, जिसने 2020 में 19 सीटें जीती थीं, इस बार केवल छह सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीजेपी और चुनाव आयोग पर चुनाव परिणामों में हेराफेरी के लिए मिलीभगत का आरोप लगाते हुए ज़ोरदार चुनाव प्रचार चलाया था.''

''पिछले कुछ महीनों में राहुल गांधी ने बीजेपी और चुनाव आयोग के बीच कथित गठजोड़ को मुद्दा बनाया था. उन्होंने कई प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं और कर्नाटक के साथ हरियाणा की मतदाता सूचियों में भारी गड़बड़ियों के कथित सबूत पेश किए.''

''वामपंथी दल, जो विपक्षी गठबंधन का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा थे, भी बुरी तरह हार गए. 2020 में 16 विधायकों की ताक़त रखने वाले ये दल इस बार केवल तीन सीटें जीत पाए.''

द डिप्लोमैट ने लिखा है, ''इस चुनाव अभियान के दौरान कई मुद्दे चर्चा में रहे, जिनमें सबसे प्रमुख था बिहार में रोजगार की कमी, जिसकी वजह से लाखों लोग काम की तलाश में राज्य से बाहर जाते हैं. लेकिन जिस मुद्दे ने सबसे गहरा असर छोड़ा, वह था जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के प्रति सहानुभूति की लहर.''

''74 वर्षीय नीतीश 2005 से (बीच में एक छोटे अंतराल को छोड़कर) बिहार के मुख्यमंत्री हैं और उन्होंने चुनाव अभियान में यह घोषणा भी की थी कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा.''

''इस चुनाव में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर एनडीए सरकारों से होने वाले विकास को उजागर करने के अलावा, बीजेपी ने अपना पसंदीदा मुद्दा भी उठाया कि बांग्लादेश से आने वाले अवैध मुस्लिम घुसपैठिए बिहार के संसाधनों पर बोझ बन रहे हैं.''

'द डिप्लोमैट' लिखता है, ''जहाँ बिहार का जनादेश मोदी की स्थिति को मजबूती देगा, वहीं विपक्ष इस बात पर गंभीर मंथन में लगा है कि राज्य में आखिर ग़लती कहां हुई. आधे साल से भी कम समय में पूर्वी भारत के पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर के असम और दक्षिण भारत के तमिलनाडु में बड़े चुनाव होने वाले हैं.''

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