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कोरोना वायरस संकट के बावजूद भारत अमरीकी अर्थव्यवस्था को पछाड़ पाएगा?
- Author, लिंडसे गैलोवे
- पदनाम, बीबीसी ट्रेवल
ब्रेक्सिट, कोरोना वायरस और वाणिज्यिक झगड़े अड़चनें डाल रहे हैं, लेकिन इन तात्कालिक चुनौतियों के बावजूद अगले कुछ दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था के तेज़ी से बढ़ते रहने का अनुमान है.
2050 तक वैश्विक बाज़ार आज से दोगुना हो सकता है जबकि संयुक्त राष्ट्र ने इस दौरान आबादी में सिर्फ़ 26 फ़ीसदी इज़ाफ़े का अनुमान लगाया है.
भविष्य कैसी करवट लेगा, इसकी सही-सही भविष्यवाणी करना आसान नहीं है. लेकिन ज़्यादातर अर्थशास्त्री एक बात पर सहमत हैं कि आज के विकासशील देश कल की आर्थिक महाशक्तियां होंगे.
अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक सेवा फ़र्म प्राइस वाटरहाउस कूपर्स की रिपोर्ट "दि वर्ल्ड इन 2050" के मुताबिक 30 साल बाद दुनिया की 7 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से 6 आज की उभरती अर्थव्यवस्थाएं होंगी. वे अमरीका, जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ देंगी.
अमरीका दूसरे से तीसरे नंबर पर खिसक जाएगा. जापान चौथे से आठवें नंबर पर चला जाएगा और जर्मनी पांचवें से नौवें नंबर पर खिसक जाएगा.
वियतनाम, फ़िलीपींस और नाइजीरिया जैसी छोटी अर्थव्यवस्थाएं भी अगले तीन दशकों में लंबी छलांग लगाएंगी.
हमने तेज़ तरक्की की क्षमता वाले पांच देशों के निवासियों से बात करके जानने का प्रयास किया कि वे बदलावों के साथ कैसे तालमेल बिठा रहे हैं, उनके देश में रहने के फ़ायदे क्या हैं और रैंकिंग में ऊपर जाने पर उनके सामने कैसी चुनौतियां आएंगी.
चीन
क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर मापी जाने वाली जीडीपी के मुताबिक़ चीन पहले से ही दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.
इस एशियाई महाशक्ति ने पिछले कुछ दशकों में ज़ोरदार तरक्की है, लेकिन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चीन में भविष्य की संभावनाएं इससे कहीं ज़्यादा हैं.
चीन के लोगों की आंखों के सामने बड़े आर्थिक बदलाव हो रहे हैं. वन मिनट चाइनीज़ किताब के लेखक रोवन कोहल सूज़ौ के इंडस्ट्रियल पार्क में रहते हैं.
15 साल पहले जब वह पहली बार सूज़ौ आए थे तो वहां दलदली खेत थे. आज उस जगह शॉपिंग मॉल, पार्क और रेस्तरां हैं. वह कहते हैं, "चीन में यह बहुत आम बात है. पूरा देश बदल रहा है."
ये बदलाव नए उद्यमियों और आर्थिक अवसरों की तलाश कर रहे लोगों को आकर्षित कर रहे हैं.
चीन का सबसे बड़ा शहर शंघाई वह जगह है जहां कई नए लोग अपनी शुरुआत करते हैं.
फुल्क्रम स्ट्रैटेजिक एडवाइज़र्स के अमरीकी संस्थापक जॉन पेबॉन शंघाई को उद्यम और पेशेवर मानसिकता वाला शहर मानते हैं जहां सभी को आगे जाना है.
पेबॉन पहले न्यूयॉर्क में रहते थे. वहां के लोग अपने पत्ते नहीं खोलते, मगर शंघाई के लोग "बातों को ध्यान से सुनते हैं और अच्छी सलाह देते हैं."
लेकिन विदेशियों को यहां रहने और काम करने के लिए मंडारिन सीखना ज़रूरी है.
"मंडारिन के बिना आपके काम के विकल्प सीमित हो जाते हैं. सामाजिक और सांस्कृतिक हलकों में आपकी पहुंच नहीं होती."
भारत
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में अगले तीन दशकों में तगड़े विकास की संभावना है.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जीडीपी सालाना 5 फ़ीसदी की औसत दर से बढ़ेगी. यह दुनिया की सबसे तेज़ रफ़्तार से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगी.
2050 तक भारत के अमरीका को पछाड़कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान लगाया गया है. वैश्विक जीडीपी का 15 फ़ीसदी हिस्सा भारत का होगा.
इस अनुमानित तरक्की के सकारात्मक प्रभाव अभी से लोगों की ज़िंदगी में दिखने लगे हैं.
टॉक ट्रैवेल नामक ऐप चलाने वाले सौरभ जिंदल कहते हैं, "20वीं सदी के आख़िर और 21वीं सदी की शुरुआत से ही मैंने अपनी आंखों के सामने भारत को बदलते हुए देखा है."
"अर्थव्यवस्था बढ़ने से लोगों की जीवनशैली बदली है. शहरों की आबोहवा से लेकर समाज का नज़रिया तक बदल गया है."
मिसाल के लिए, पिछले 15 साल में टेलीविज़न, मोबाइल फोन और कारों की गुणवत्ता पहले से कहीं अच्छी हो गई है. अब ज़्यादा लोग हवाई सफ़र करते हैं. उनके घर भी संपन्न और आरामदायक हो गए हैं.
लेकिन चुनौतियों के बिना सुधार नहीं होते. बुनियादी ढांचे के विकास पर ख़र्च पर्याप्त नहीं हो रहे.
कारें तो बढ़ गई हैं लेकिन नियम क़ैनूनों के अनुपालन में कमी के कारण प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा है, ख़ासकर नई दिल्ली जैसे शहरों में.
विकास का लाभ हर नागरिक तक बराबर नहीं पहुंचा है. जिंदल कहते हैं, "समाज के कुछ तबक़े अब भी बहुत निम्न स्तर की ज़िंदगी जी रहे हैं. आप ऊंची इमारतों के बगल में झुग्गियां देख सकते हैं."
महिलाओं के प्रति नज़रिया भी निराश करता है. देश बलात्कार और यौन उत्पीड़न के संकट से लगातार जूझ रहा है.
मैसूर में रहने वाली नमिता कुलकर्णी "रैडिकली एवर आफ़्टर" पर ब्लॉग लिखती हैं. वह कहती हैं, "किसी देश की तरक्की नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करने से मापी जाती है. भारत को अभी बहुत दूर तक जाना है."
"जब तक सार्वजनिक जगहों पर महिलाएं सुरक्षित नहीं होंगी, कितनी भी आर्थिक तरक्की हो जाए उसका कोई मतलब नहीं."
कुलकर्णी की सलाह है कि विदेशियों को यहां आने से पहले अपनी जांच परख कर लेनी चाहिए. भारत के विभिन्न हिस्से एक-दूसरे से बहुत अलग हो सकते हैं.
"हर राज्य की अपनी विशिष्ट भाषा है, संस्कृति है, खानपान है और अलग परंपराएं हैं."
जिंदल कहते हैं, "भारत के अनुकूल बन जाइए. भारत आपके अनुकूल नहीं बनेगा."
ब्राज़ील
यह दक्षिण अमरीकी देश 2050 तक जापान, जर्मनी और रूस को पछाड़कर दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है.
ब्राज़ील के पास प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है. पिछले कुछ दशकों में इसकी अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ी है. लेकिन कुछ चुनौतियां भी आई हैं. सरकारी भ्रष्टाचार और महंगाई ने ब्राज़ील को त्रस्त किया है.
ब्राज़ील में जन्मे कैओ बर्सोट कहते हैं, "मैंने 2000 के दशक के आख़िर और 2010 के दशक की शुरुआत में अर्थव्यवस्था को लेकर उत्साह देखा था. ब्राज़ील में नए मध्य वर्ग का उदय हुआ. पूरे देश को अपनी नई कमाई हुई प्रतिष्ठा पर गर्व महसूस हो रहा था."
"लेकिन उन्हीं दिनों रियो डि जनेरियो और साओ पाउलो जैसे बड़े शहर पहुंच से बाहर होते चले गए. ऐसा समय भी आया जब लगने लगा कि हमें जिस रफ़्तार से तरक्की करनी चाहिए, हम उससे ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहे हैं."
उस विकास को सहारा देने के लिए पर्याप्त व्यावसायिक गलियारे नहीं थे, रेलवे लाइनें नहीं थीं, सड़क और बंदरगाह नहीं थे.
चुनौतियों ने ब्राज़ील को तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित किया. साओ पाउलो में रह चुकी इंटरकल्चरल स्ट्रैटेजिस्ट एनालिसा नैश फर्नांडेज़ कहती हैं, "कई विकासशील देशों में तेज़ विकास से महंगाई बढ़ने लगती है. नक़दी की हिफ़ाज़त करने की उच्च लागत के कारण ब्राज़ील फाइनेंस टेक्नोलॉजी में अग्रणी बन गया."
"पेपाल और वेनमो जैसे भुगतान प्लेटफॉर्म ब्राज़ील में 20 साल से ज़्यादा समय से चल रहे हैं. स्मार्टफ़ोन आने से पहले से ये एटीएम से चलते थे."
2016 की मंदी ने ब्राज़ील को गहरी चोट दी लेकिन अर्थव्यवस्था ने फिर से तरक्की के कुछ संकेत दिखाए हैं.
ब्राज़ील में पिछले साल सरकार बदली है. 2020 का साल ब्राज़ील के लिए "बन जाओ या मिट जाओ" साल हो सकता है.
ब्राज़ील की मूल निवासी सिल्वाना फ्रैपियर कहती हैं, "देश अब भी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है लेकिन निश्चित रूप से यह उज्ज्वल भविष्य की दिशा में काम कर रहा है."
"ब्राज़ील खनन, कृषि और विनिर्माण क्षेत्र में आगे है. इसके पास मज़बूत और तेज़ी से बढ़ता सर्विस सेक्टर है. पर्यटन निवेश भी बढ़ रहा है."
अर्थव्यवस्था का हाल चाहे जैसा भी हो, आम तौर पर यहां नए लोगों का स्वागत किया जाता है. यदि वे भाषा सीखें तो सोने पे सुहागा.
फ्रैपियर कहती हैं, "ब्राज़ील दोस्ताना माहौल वाला देश है. यहां विदेशियों का स्वागत किया जाता है. यह व्यक्तिवादी देश नहीं है यहां सामाजिक लोग रहते हैं. यदि कोई विदेशी उनकी संस्कृति और भाषा में दिलचस्पी रखता है तो लोग उसे पसंद करते हैं."
"पुर्तगाली सीखने से आपको यहां अपने घर जैसा महसूस होगा."
मेक्सिको
2050 तक मेक्सिको दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है. मौजूदा रैंकिंग में वह 11वें पायदान पर है.
विनिर्माण और निर्यात पर ध्यान देकर हाल के वर्षों में मेक्सिको ने खूब तरक्की की है, हालांकि मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों ने कुछ अड़चनें भी पैदा की हैं.
प्यूर्टो वालार्टा में रहने वाले ट्रैवेल ब्लॉगर फ़ेडेरिको एरिज़ाबलागा कहते हैं, "पिछले 10 सालों में मेक्सिको की अर्थव्यवस्था बढ़ी है, लेकिन उतनी नहीं जितनी यह बढ़ सकती थी."
"पिछले 8 साल में पेट्रोल की कीमत दोगुनी हो गई है. पिछले 10 साल में मेक्सिको का पेसो अमरीकी डॉलर के मुक़ाबले 50 फ़ीसदी गिर गया है. लेकिन यदि आप मौके तलाश लेते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं तो आप अच्छा कर सकते हैं. बहुत महंगे देशों की तुलना में यहां आपके पैसे की क़ीमत भी है."
अमरीका, कनाडा और यूरोप की तुलना में मेक्सिको में स्वास्थ्य सेवाएं और परिवहन किफ़ायती है.
अमरीका की सुज़ैन हैस्किन्स "इंटरनेशनल लिविंग" में सीनियर एडिटर हैं. वह युकेटन के मेरिडा में रहती हैं.
हैस्किन्स कहती हैं, "मैं अभी मेक्सिको सिटी में थी. वहां 4 से 10 अमरीकी डॉलर के ख़र्च में उबर से शहर में कहीं भी जा सकते हैं."
कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तरह मेक्सिको में भी बुनियादी सुविधाओं और सड़कों की स्थिति चुनौतीपूर्ण है.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार ने हाल ही में 44 अरब डॉलर के निवेश की योजना तैयार की है जिसे अगले चार साल में ख़र्च किया जाएगा.
जलवायु और संस्कृति के लिहाज से मेक्सिको का हर इलाक़ा अलग है, इसलिए विदेशियों को देश के अलग-अलग हिस्सों में जाने से पहले पूरी रिसर्च करने की सलाह दी जाती है.
अगर आपको स्पेनिश आती है तो मेक्सिको में आपके लिए बहुत सहूलियत हो सकती है. हैस्किन्स कहती हैं, "लोग यहां आपकी संचार बाधाओं को दूर करने में मदद करते हैं."
नाइजीरिया
अफ़्रीका की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक नाइजीरिया 2050 तक औसत 4.2 फ़ीसदी सालाना की रफ़्तार से बढ़ने की ओर अग्रसर है.
इसकी मौजूदा रैंकिंग 22वीं है जिसमें 8 पायदान की छलांग लगाकर यह 14वें नंबर पर पहुंच सकता है.
नाइजीरिया सरकार भ्रष्टाचार से जूझ रही है, लेकिन यहां के लोगों की उद्यमशीलता देश को आगे ले जा रही है.
ग्लोबल आंत्रेप्रेन्योरशिप मॉनिटर डेटा के मुताबिक नाइजीरिया के 30 फ़ीसदी से ज़्यादा लोग नए उद्यमी हैं या नए व्यवसाय के मालिक-प्रबंधक हैं. यह दर दुनिया में सबसे ज़्यादा है.
एसिलेरेट टीवी की सीईओ कोलेट ओटुशेसो लागोस में रहती हैं. उनका कहना है कि यहां चहल-पहल की संस्कृति है.
"नाइजीरिया के लोग बहुत मेहनती हैं. हम स्वाभाविक रूप से एक साथ कई काम करते रहते हैं. इसका मतलब है कि हर वक़्त कुछ न कुछ चलता रहता है."
सार्वजनिक परिवहन की कमी जैसी चुनौतियां भी यहां कारोबारी अवसर में बदल गई हैं.
ओटुशेसो कहती हैं, "हमारे पास बाइक ट्रांसपोर्ट के लिए उबर जैसा ऐप है जो नाइजीरिया में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है. पहले वह बहुत भरोसेमंद नहीं था. लेकिन अब हम उबर की तरह बाइक ड्राइवर और उसकी लोकेशन को ट्रैक कर सकते हैं."
नाइजीरिया के लोग अपने देश के भविष्य के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं, लेकिन सरकारी भ्रष्टाचार और विदेशी निवेश को लेकर वे सावधान हैं.
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