येरेवान, एक छोटा सा शहर जो बेहद खूबसूरत है

    • Author, लिंडसे गैलोव
    • पदनाम, बीबीसी ट्रैवल

इटली की राजधानी रोम को 'इटरनल सिटी' कहा जाता है. इसी तरह अपने बनारस या काशी को सनातन शहर कहा जाता है.

ये वो शहर हैं, जो दो हज़ार साल से भी ज़्यादा वक़्त से आबाद हैं.

मगर मध्य एशिया का एक शहर ऐसा भी है जो रोम से भी पुराना है. इस शहर का नाम है येरेवान. ये शहर आर्मीनिया की राजधानी है.

आर्मीनिया, जो कभी सोवियत संघ का हिस्सा था, आज एक आज़ाद मुल्क है. ये देश बहुत छोटा-सा है. आर्मीनिया की कुल आबादी महज़ तीस लाख है जो दिल्ली के एक हिस्से की आबादी से भी कम है.

मगर, पिछले साल इस छोटे से देश ने ख़ूब सुर्ख़ियां बटोरी थीं. यहां पर वेल्वेट क्रांति हुई थी. जनता ने शांतिपूर्ण विरोध से लंबे वक़्त से राज कर रहे प्रधानमंत्री सर्ज सर्गस्यान को पद छोड़ने पर मजबूर किया था. उनकी जगह निकोल पशिन्यान आर्मीनिया के पीएम बने.

पहले पत्रकार रहे निकोल ने सविनय अवज्ञा के ज़रिए शांतिपूर्ण तरीक़े मगर बेहद मज़बूती से सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया और कामयाबी हासिल की.

सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण हज़ारों साल पुराने येरेवान शहर पर भी असर दिखा रहा है. स्थानीय लोग फिर से कारोबार पर ज़ोर दे रहे हैं. देश छोड़कर गए लोग वापस आ रहे हैं. सैलानियों की तादाद में भी ख़ूब इज़ाफ़ा हुआ है.

येरेवान के बाशिंदे अराम वर्दान्यान कहते हैं कि वेल्वेट क्रांति से लोगों में एक नई उम्मीद जगी है. अराम कहते हैं, 'अब तक आर्मीनिया की अनदेखी होती रही है. लेकिन अब वक़्त आ गया है कि आर्मीनिया मक़बूल हो. नए तजुर्बे हों. येरेवान शहर में जो ताज़गी, जो ऊर्जा है, उसका कोई मुक़ाबला नहीं.'

येरेवान शहर 2800 साल पुराना है, यानी रोम से भी पुराना शहर. 2800वीं सालगिरह ऐसा मौक़ा है, जब लोग अपने अतीत की बुनियाद पर चमकदार भविष्य की इमारत खड़ी करें.

लोगों को येरेवान से इतनी मोहब्बत क्यों है ?

येरेवान के लोग एक-दूसरे से क़रीब से जुड़े हुए हैं. आस-पास के लोगों से उनकी सिर्फ़ पहचान नहीं है बल्कि वो एक-दूसरे को दोस्त के तौर पर देखते हैं. जर्मनी से आकर आर्मीनिया में बसने वाली एनी एंड्री कहती हैं, 'आर्मीनिया के लोग कॉफ़ी पीना और गप-शप करना बहुत पसंद करते हैं. वो हड़बड़ी में भी होंगे तो भी दो मिनट रुक कर हाल-चाल पूछ लेंगे. अगर आप टैक्सी ड्राइवर से नियमित रूप से मिलते हैं तो वो भी अपनेपन से बात करेगा. पड़ोसी और सहकर्मी तो जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाते हैं.'

मज़े की बात ये है कि लोग एक-दूसरे से इस क़दर जुड़े होते हैं कि कई दिन तक न दिखने पर तलाश शुरू कर देते हैं.

दूसरे देशों की संस्कृति की स्वीकार्यता

एनी कहती हैं कि यहां रिश्ते बड़े मज़बूत होते हैं. कई महीनों बाद भी किसी से मुलाक़ात होने पर लोग बड़ी गर्मजोशी से मिलते हैं. इतने दिन न मिलने का सबब पूछते हैं. सामने वाले में दिलचस्पी दिखाते हैं.

बहुत से लोग आर्मीनिया की इस संस्कृति को मेल-जोल बढ़ाने वाला मानते हैं जो सब को साथ लेकर चलने में यक़ीन रखती है. समुदाय में किसी और के शामिल होने को अच्छी बात माना जाता है. तमाम भाषाओं को लेकर भी आर्मीनिया के लोगों में नरमी है.

वो अपनी भाषा को लेकर ज़िद नहीं रखते. अलग ज़बान बोलने वालों का भी पूरा सम्मान करते हैं. अमार वर्दान्यान कहते हैं, 'हम आर्मीनियाई लोग नई भाषा सीखने के माहिर हैं. बहुत से सैलानी हैरान रह जाते हैं, जब हम बहुत आसानी से उनकी भाषा में बात करने लगते हैं.'

येरेवान में अंग्रेज़ी, रूसी, फ्रेंच, स्पैनिश और फ़ारसी भाषाएं बोली जाती हैं.

आर्मीनिया के लोग अपनी शानदार संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत को सहेज कर रखते हैं. सोवियत संघ में शामिल रहे दूसरे देशों के मुक़ाबले, आर्मीनिया पर तमाम सभ्यताओं और साम्राज्यों का असर रहा है. आर्मीनिया असीरिया, मैसेडोनिया, पर्शिया और ऑटोमान साम्राज्य का हिस्सा रह चुका है. इस वजह से यहां कई सभ्यताओं का मेल दिखता है. हर मौक़े पर यहां लोग दूसरे को फूल देना पसंद करते हैं.

आर्मीनिया की छुट्टियां भी यहां की पुरानी परंपराओं की नुमाइश करने वाली होती हैं. ईस्टर के 98 दिन बाद मनाया जाने वाला वर्दावर बहुत लोकप्रिय त्योहार है. इस दिन यहां लोग एक-दूसरे पर पानी छिड़कते हैं. इसकी तुलना हिंदुस्तान की होली से की जाती है. ये त्योहार यहां ईसाई धर्म के आने से पहले से मनाया जाता रहा है.

ट्रन्डेज़ नाम का एक और त्योहार अलाव जलाने से शुरू होता है. इसे क्रिसमस के 40 दिन बाद मनाया जाता है. जिनकी नई-नई शादी हुई रहती है, उनके लिए ये त्योहार और भी अहम है. इसमें मियां-बीवी एक साथ आग के ऊपर से कूदते हैं.

अपने लंबे इतिहास के दौरान आर्मीनिया ने बहुत दर्द सहा है, मुश्किलें झेली हैं. पहले विश्व युद्ध के दौरान ऑटोमान तुर्कों ने यहां बड़े पैमाने पर क़त्लेआम मचाया था. दर्जन भर से ज़्यादा अमरीकी राज्य इसे तुर्की का नरसंहार मानते हैं. हालांकि तुर्की इससे इनकार करता है.

तमाम मुश्किलों भरे इतिहास के बावजूद येरेवान के लोग खुले ज़हन के हैं. नये विचारों का स्वागत करते हैं. अमार कहते हैं कि, 'आर्मीनिया के लोगों की सब से बड़ी ख़ूबी ये है कि वो हमेशा सीखने को तैयार रहते हैं. हमारे यहां माना जाता है कि जानकारी ही ताक़त है.'

आर्मीनिया में रहना कैसा है?

यूरोप के दूसरे शहरों के मुक़ाबले येरेवान बहुत छोटा सा शहर है. बीस मिनट में शहर के एक छोर से दूसरे छोर को नापा जा सकता है. ऐसे में हर समुदाय के लोग घुल-मिल कर रहते हैं.

शहर का सब से अहम हिस्सा है केन्ट्रोन. इसका मतलब होता है केंद्र. यहां सड़क किनारे तमाम कैफ़े हैं, जहां लोग मिलते-जुलते और बातें करते हैं.

येरेवान की एक और ख़ूबी है. जयपुर की तरह ही, यहां की कई इमारतें भी गुलाबी हैं. इसलिए इसे भी पिंक सिटी कहा जाता है असल में यहां की इन गुलाबी इमारतों को टफ़ नाम के पत्थर से बनाया गया है. सुबह और शाम के वक़्त की रोशनी में ये गुलाबी दिखता है.

वेल्वेट क्रांति ने शहर को बहुत कम वक़्त में बदल कर रख दिया है. कई पीढ़ी पहले अपना देश छोड़कर गए आर्मीनिया के लोग अपने वतन लौट रहे हैं. अमार वर्दान्यान कहते हैं कि यहां पर पूर्वी और पश्चिमी सभ्यताओं का मेल हो रहा है.

एक और स्थानीय निवासी सहाक्यान कहते हैं कि, 'देश छोड़ कर गए ये लोग वापस आकर बड़ा बदलाव ला रहे हैं, जो अच्छा है. सीरिया में रहने वाले आर्मीनिया जब लौटे, तो वो अपने साथ नई सोच और नया खान-पान लेकर आए. ये हमें बहुत पसंद है. क्राति के बाद अगर कोई चाहे तो अपना कारोबार शुरू कर सकता है. ये कारोबारी सोच बहुत इंक़लाबी है. इससे देश की तरक़्क़ी का रास्ता खुलेगा.'

येरेवान ने हाल ही में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट भी शुरू किया है. इसकी मदद से यहां का तकनीकी ढांचा विकसित किया जा रहा है, ताकि लोगों की ज़िंदगी बेहतर हो सके. इसके तहत वोटिंग के लिए अनाउंसमेंट सिस्टम लगाना, समुदायों के बीच संवाद के नए तरीक़े विकसित करने जैसे काम हो रहे हैं. ऐसे ठिकाने भी विकसित किए जा रहे हैं, जहां लोग एक-दूसरे से विचार साझा कर सकें.

किसी भी तेज़ी से बढ़ते शहर के साथ जो होता है, वो आप को येरेवान में भी दिखेगा. लोग ख़ुले मिज़ाज के हैं. इसलिए यहां घूमना और रहना दोनों ही आसान हो जाते हैं. लेकिन, प्रदूषण यहां के लिए भी समस्या बन रहा है. एनी कहती हैं कि शहर में और हरियाली होती तो और अच्छा होता.

यहां बदलाव बहुत तेज़ी से आ रहा है. लोग इन बदलावों के साझीदार बन रहे हैं. उम्मीद यही है कि आर्मीनिया के लोगों के सामने जो चुनौतियां आ रही हैं, उनका मुक़ाबला करने में वो कामयाब होंगे. वो हज़ारों साल पुराने अपने शहर येरेवान को और बेहतर बनाएंगे.

(मूल लेख अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, जो बीबीसी ट्रैवल पर उपलब्ध है.)

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