तलाक़ ना हो इसके लिए काम आता था ये कमरा

    • Author, स्टीफ़न मैक्ग्रा
    • पदनाम, बीबीसी ट्रैवल

पिछले दिनों तलाक़ का मसला सुर्ख़ियां बना हुआ था. मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक़ की प्रथा को लेकर सियासी माहौल भी गरम था. उधर, सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर सुनवाई की.

मुस्लिम समुदाय की रवायतों को छोड़ दें तो, आज के दौर में तलाक़ का मसला आम-तौर पर कोर्ट पहुंच जाता है. पश्चिमी देशों में शादी और तलाक़ को लेकर क़ानून बेहद उदार हैं. मसला कोई भी हो, जल्द सुलझ जाता है.

यूरोप में जहां आज तलाक़ आम बात है, वहीं मध्य काल में इससे बचने की हर मुमकिन कोशिश की जाती थी. पूर्वी यूरोपीय देश रोमानिया के एक गांव में तो तलाक़ को रोकने के लिए बेहद अजब नुस्ख़ा अपनाया जाता था.

इस गांव का नाम है बियर्टन. ये गांव रोमानिया के ट्रांसिल्वेनिया इलाक़े में स्थित है. यहां आकर यूं लगता है जैसे वक़्त सदियों से ठहरा हुआ है. आज भी बियर्टन के लोग घोड़ा गाड़ी में चलते हैं. सामान के लेन-देन से अपना काम चलाते हैं. इसके लिए गांव के बीच में एक बाज़ार जैसा इलाक़ा बना हुआ है.

बियर्टन में पंद्रहवीं सदी का एक गिरजाघर है. ये गिरजाघर छोटे से क़िले जैसा है. जो पूजा में भी काम आता था और किसी ख़तरे से बचने के काम भी आता था.

इस पांच सौ साल पुराने चर्च के परिसर में ही एक छोटी सी इमारत है. इसी इमारत में एक छोटा सा कमरा है. ये कमरा एक रसोईघर के बराबर ही होगा. ये कमरा ही तीन सौ सालों तक मियां-बीवी के झगड़ों के निपटारे में काम आता था.

इमारत पर अच्छी रूहों का साया

यहां उन दंपतियों को 6 हफ्ते के लिए बंद कर दिया जाता था, जिनमें तलाक़ की नौबत आ चुकी होती थी. इन छह हफ़्तों में जोड़ों को अपना विवाद आपस में निपटाना होता था.

आज की तारीख़ में इस कमरे को देखें, तो ये क़ैदख़ाने से भी बुरा दिखेगा. मगर तीन सदियों तक ये कमरा तलाक़ को टालने का काम करता रहा था. बियर्टन के मौजूदा पुजारी उल्फ़ ज़ीग्लर कहते हैं कि इस इमारत पर अच्छी रूहों का साया है. उन्हीं के असर से तलाक़ के मसले एक छोटे से कमरे में निपटा लिए जाते थे.

आज ये कमरा एक संग्रहालय की तरह सहेजकर रखा गया है. इसमें कुछ आदमकद पुतले रखे हुए हैं. कमरे की दीवारें बेहद नीची हैं. मोटी सी दीवार में ही सामान रखने के लिए एक अल्मारी बनाई गई है. एक छोटा सा बेड है, जिसे देखकर लगता है कि ये किसी बच्चे का बिस्तर होगा. इसके अलावा यहां छोटी सी मेज और एक कुर्सी भी रखी है.

ये कमरा इतना छोटा है और इसमें इतना कम सामान है कि यहां रहने वाले दो लोगों को हर चीज़ आपस में साझा करनी पड़ती थी. इसमें खाने से लेकर बिस्तर तक शामिल था.

मध्य काल में इस इलाक़े में ईसाई धर्म की सुधारवादी शाखा यानी प्रोटेस्टेंट का असर था. यहां जर्मन सुधारक मार्टिन लूथर के मानने वाले लोग रहते थे. उनका मानना था कि तलाक़ बुरी चीज़ है और इसे हर क़ीमत पर टालने की कोशिश की जानी चाहिए.

इसीलिए बियर्टन में ये जेल की कोठरी बनाई गई थी. जिसमें मियां-बीवी को छह हफ़्तों के लिए क़ैद करके उन्हें आपसी झगड़ा सुलझाने का मौक़ौ दिया जाता था.

उस दौर में कुछ ख़ास वजहों जैसे बेवफ़ाई की वजह से ही तलाक़ की इजाज़त थी. इसके अलावा जिस दंपति को तलाक़ चाहिए होता था वो चर्च के बिशप के पास जाते थे. उन्हें इसी कमरे में क़ैद कर दिया जाता था. अगर छह हफ़्ते बाद भी विवाद नहीं सुलझता था तो फिर दोनों को तलाक़ लेने को कह दिया जाता था.

तलाक़ पर आधी संपत्ति का हिस्सा

पादरी उल्फ़ ज़ीग्लर कहते हैं कि तलाक़ टालना महिलाओं और बच्चों के लिए राहत की बात होती थी. अगर तलाक़ होता था तो मर्द को अपनी औरत को संपत्ति का आधा हिस्सा देना पड़ता था.

दिलचस्प बात ये कि अगर कोई दूसरी शादी करता था. फिर दूसरी बीवी से भी अगर तलाक़ की नौबत आती थी, तो दूसरी बीवी को पति से कुछ भी नहीं मिलता था.

बारहवीं सदी में फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम और लग्जेमबर्ग से आए लोगों को हंगरी के राजा ने रोमानिया के ट्रांसिल्वेनिया इलाक़े में बसाया था. इन लोगों की मदद से हंगरी के राजा, तुर्कों और तातारों के हमलों से निपटते थे.

उस दौर में बियर्टन कारोबार और संस्कृति का बड़ा केंद्र बन गया था. 1510 में इसकी आबादी पांच हज़ार से ज़्यादा थी. आज भी इसकी गलियों से गुज़रते हुए उस दौर का एहसास होता है. यूरोप ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है. मगर बियर्टन के निवासियों के लिए वक़्त वैसा ही है. चर्च उसी दौर का है.

ज़िंदगी भी उसी दौर की मालूम होती है. यहां आज भी लोग पुराने तरीक़े से ही खेती करते हैं. आस-पास के पहाड़ों में चरवाहे बसते हैं. ये सब लोग साप्ताहिक बाज़ार में आपस में सामान का लेन-देन करके काम चलाते हैं.

बदलाव शायद यही आया है कि अब झगड़ने वाले दंपतियों को चर्च के उस कमरे में क़ैद नहीं किया जाता. तलाक़ को लेकर लोगों के ख़्यालात भी बदले हैं.

पादरी उल्फ़ ज़ीग्लर बताते हैं कि आज भी कई लोग उनके पास आते हैं कि उन्हें उसी कोठरी में क़ैद कर दिया जाए, ताकि वो आपसी झगड़ा सुलझा सकें.

तो कभी मौक़ा लगे तो आप भी घूम आइए. शायद वो कमरा आपके भी काम आ जाए.

(मूल लेख अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, जो बीबीसी ट्रैवल पर उपलब्ध है.)

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