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कोरोना वायरसः लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग के लिए कैसे समझाएं
- Author, मार्था हेनरिक्स
- पदनाम, बीबीसी फ़्यूचर
नए कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से दुनिया के कई इलाक़ों में सन्नाटा पसरा हुआ है.
जबकि, बहुत से ऐसे देश भी हैं, जहां ज़िंदगी की चहल-पहल बदस्तूर वैसे ही जारी है, जैसे पहले थी. ब्रिटिश सरकार के पाबंदियां लगाने से पहले.
ब्रिटेन में वेल्श के ग्रामीण इलाक़ों में सैलानियों की बाढ़ सी आई हुई थी.
अमरीका में मयामी के समुद्र तटों पर छुट्टी मना रहे छात्रों का हुजूम इकट्ठा था, जिसे कोरोना वायरस का संक्रमण होने का ख़ौफ नहीं था.
और सिर्फ़ युवा ही नहीं, 60 बरस से ज़्यादा उम्र के बुज़ुर्ग भी बेख़ौफ़ हैं.
मार्च के मध्य में अमरीका में हुआ एक सर्वे बताता है कि 60 साल से ज़्यादा उम्र के आधे से कम ही लोगों को कोरोना वायरस से अपने ऊपर कोई ख़तरा दिख रहा था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन
दुनिया के तमाम स्वास्थ्य विशेषज्ञ संगठन जैसे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस और अमरीका का सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल यही सलाह दे रहे हैं कि आप भीड़ भाड़ से दूर रहें.
लोगों के संपर्क में कम से कम आएं. लेकिन, अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं, जो इन मशविरों और एडवाइज़री को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. न ही अपने आस-पास के लोगों का ख़याल रख रहे हैं.
मज़े की बात ये है कि अगर आप लोगों से पूछें कि कोरोना वायरस की रोकथाम कैसे हो सकती है, तो वो आपको उपाय भी बता देंगे कि हाथ नियमित रूप से धोएं. मास्क पहनें और लोगों से दूर रहें.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर पैस्कल गेल्डसेट्ज़र ने एक रिसर्च में 2988 लोगों से इस बारे में पूछा तो इसमें से दो को छोड़ कर बाक़ी सभी ने वही सलाह दी, जो विशेषज्ञ दे रहे हैं.
लेकिन, जैसा कि कहावत है-पर उपदेश कुशल बहुतेरे. जो लोग सलाह देते हैं, उनमें से ज़्यादातर ख़ुद उस पर अमल नहीं करते.
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युद्ध के दौर की भावना
जब भी कोई नया संकट आता है, तो लोग उससे निपटने के लिए पुराने तजुर्बों की मदद लेते हैं.
लेकिन, ऐसा लगता है कि आज बहुत से लोग सार्स और मर्स वायस के प्रकोप को भूल गए हैं, जो दो दशक से भी कम समय पहले दुनिया में हुए थे.
कनाडा में सार्स वायरस से 44 लोगों की मौत हो गई थी. फिर भी, भविष्य में ऐसी किसी महामारी से निपटने के लिए लंबे समय की योजना नहीं तैयार की गई.
सार्स के प्रकोप के बाद के कुछ दिनों में तो कुछ हुआ भी था. मगर बाद में वो उत्साह भी ठंडा पड़ गया.
वहीं, यूरोप के लोग इस दौर के लॉकडाउन की तुलना दूसरे विश्व युद्ध के समय से कर रहे हैं. जब, लगातार बमबारी से बचने के लिए शहर वीरान हो गए थे.
कोरोना वायरस का संक्रमण
तब भी लोगों को जान का ख़तरा था और अब भी कोरोना वायरस के संक्रमण से मरने का डर है.
फिर भी बहुत से लोग ऐसे बर्ताव करते हैं कि मानो उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता. जब जो होगा तब देखा जाएगा की सोच के साथ ऐसे लोग मस्त रहते हैं.
सवाल ये है कि ऐसे लोगों को कोरोना संकट से बचने के लिए कैसे सावधान किया जाए? उन्हें कैसे समझाया जाए कि सोशल डिस्टेंसिंग ही उनकी जान बचा सकती है.
स्वास्थ्य के मनोवैज्ञानिक लेस्ली मार्टिन कहते हैं कि लोगों को आज की नहीं भविष्य की तस्वीर दिखा कर समझाया जा सकता है.
उन्हें बताया जाए कि ये महामारी तो ख़त्म हो जाएगी. लेकिन, जब उन्हें अपने ग़ैर ज़िम्मेदाराना बर्ताव की याद आएगी, तो वो ख़ुद ही शर्मिंदा महसूस करेंगे.
इससे उन्हें सही विकल्प चुनने में आसानी होगी.
किन नियमों का पालन करें
किसी महामारी जैसे कोरोना वायरस के दौरान स्वास्थ्य संबंधी दिशा निर्देशों का पालन करने में जो एक और दिक़्क़त आती है, वो ये है कि संक्रमण कैसे होगा, किधर होगा, किसे कम और किसे ज़्यादा होगा?
इन सवालों के जवाब किसी को नहीं पता होते.
लेकिन, अगर लोगों को फौरी नतीजों की तस्वीर दिखाई जाए, तो वो ख़तरे को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं.
मगर, कोरोना वायरस के साथ दिक़्क़त ये है कि बहुत से लोगों में इसके लक्षण शुरू में दिखते ही नहीं. वो बहुत दिनों बाद सामने आते हैं.
तब तक लोगों को एहतियात बरतने में बहुत देर हो जाती है. उन्हें अलग करने का कोई फ़ायदा नहीं रह जाता.
अगर, समय रहते इस बात का पता चल जाता है, तो लोगों को सावधान किया जा सकता है.
जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक लोगों को ख़तरा महज़ एक ख़याल मालूम होता रहता है.
तमाम सबूत और रिसर्च ये बताते हैं कि जोखिम का आकलन करने में हम इंसान अक्सर ग़लतियां करते हैं.
जैसे सिगरेट या शराब पीने वाले ये सोचते हैं कि एक सिगरेट पीने या एक जाम लेने से वो तुरंत मर नहीं जाएंगे. ऐसे में उनकी सिगरेट या शराबनोशी जारी रहती है.
संदेश कैसे पहुंचाएं?
इन हालात में सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि आख़िर लोगों को कैसे मामले की गंभीरता समझाई जाए?
जानकार सलाह देते हैं कि सबसे पहले तो आप विशेषज्ञों का हवाला देकर लोगों को सावधान करें.
जब भी किसी चर्चित व्यक्ति या मशहूर डॉक्टर के ज़रिए कोई बात लोगों तक पहुंचाई जाती है, तो उस पर आम आदमी ज़्यादा भरोसा करते हैं.
दूसरा तरीक़ा ये है कि संदेश को सकारात्मक बनाएं.
जैसे कि अगर सोशल डिस्टेंसिंग और आइसोलेशन का संदेश देना है, तो आप समझाएं कि ख़ाली समय में पसंदीदा किताबें पढ़ सकते हैं. अच्छी फिल्में देख सकते हैं.
उन लोगों से बात कर सकते हैं, जिनसे मिलने का समय नहीं निकाल पाते. बुज़ुर्गों को समझा सकते हैं कि वो अपने बागीचे या सामान की देखभाल में समय लगा सकते हैं.
तीसरी बात ये समझाएं कि आपकी ग़लती का खामियाज़ा आपके अपने लोगों को भुगतना पड़ सकता है.
संक्रमण लेकर घर आए तो आपके बीवी-बच्चे इसके शिकार हो सकते हैं. आपकी ग़लती से परिवार के लिए संकट खड़ा हो सकता है.
इन तरीक़ों से आप लोगों को कोरोना वायरस के ख़तरों के बारे में समझा सकते हैं. ये पर्सनल नफ़ा नुक़सान की बातें लोगों पर ज़्यादा असर करेंगी.
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