गायों के मीथेन गैस से अब मिलेगी मुक्ति

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    • Author, जेओफ़ वॉट्स
    • पदनाम, बीबीसी फ़्यूचर

दुनिया की कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक बड़ा हिस्सा, जानवरों के शरीर की गतिविधियों से निकलता है. सवाल ये है कि क्या उनके पेट में पाए जाने वाले बैक्टीरिया में बदलाव कर के हम अपनी धरती को जलवायु परिवर्तन के क़हर से बचा सकते हैं?

न्यूज़ीलैंड के फार्मिंग साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानी एगरिसर्च के मैदान में घास चरती गायें, दूसरी गायों जैसी ही हैं. वो घास चरती हैं, फिर उन्हें चबाते हुए कई बार आवाज़ें भी निकालती हैं. इन्हें देखकर आपको ये अंदाज़ा बिल्कुल भी नहीं होगा कि इन में से कुछ गायें बिल्कुल अलग हैं.

भीड़ से अलग इन गायों के पेट में एक बड़ा रिसर्च किया जा रहा है. अगर ये कामयाब होता है, तो जलवायु परिवर्तन से बेहाल हमारी पृथ्वी को बहुत राहत मिलने की उम्मीद है.

इन ख़ास गायों को कुछ टीके लगाए गए हैं. ताकि उनके पेट में मौजूद वो बैक्टीरिया नष्ट हो जाएं, जो मीथेन गैस का उत्सर्जन करते हैं. मीथेन, सबसे ख़तरनाक ग्रीनहाउस गैस है. जो कार्बन डाई ऑक्साइड से 25 गुना ज़्यादा गर्मी अपने अंदर क़ैद करती है.

एगरिसर्च का मक़सद है कि वो इस वैक्सीन के अलावा कुछ ऐसे टीके विकसित किया जा सके, जो गायों के पेट में मीथेन गैस बनाने वाले बैक्टीरिया का ख़ात्मा करे. लेकिन, उससे डेयरी उत्पाद या मांस खाने वालों को भी नुक़सान न हो.

एक मोटे अनुमान के मुताबिक़, दुनिया की कुल ग्रीनहाउस गैसों में से 14 प्रतिशत का उत्सर्जन इन पालतू जानवरों से ही होता है. कार्बन डाई ऑक्साइड के अलावा खेती की वजह से दो और गैसें भारी मात्रा में निकलती हैं.

ये हैं नाइट्रस ऑक्साइड, जो खेतों में उर्वरक के इस्तेमाल से पैदा होती है और मीथेन. मीथेन गैस अक्सर भेड़ों और दूसरे पालतू जानवरों के पेट में बनती है. फिर जानवर उसे वातावरण में छोड़ते हैं.

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मीथेन गैस का ज़िम्मेदार बैक्टीरिया

जुगाली करने वाला एक जानवर दिन भर में औसतन 250-500 लीटर तक मीथेन गैस छोड़ता है. एक आकलन है कि जानवर डकार और हवा छोड़ते हुए इतनी मीथेन गैस छोड़ते हैं, जो 3.1 गीगाटन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर नुक़सान करती है.

अब न्यूज़ीलैंड के एगरिसर्च के वैज्ञानिकों को ये उम्मीद है कि वो जानवरों के शरीर से निकलने वाली इस गैस का उत्सर्जन कम कर के जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद कर सकते हैं.

एगरिसर्च के वैज्ञानिकों की इस उम्मीद की बुनियाद मे है वैज्ञानिक साइनेड लीही की रिसर्च. साइनेड लीही एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं, जो न्यूज़ीलैंड के एग्रीकल्चरल ग्रीनहाउस गैस रिसर्च सेंटर में काम करती हैं.

यूं तो पालतू जानवरों के पेट में बड़ी तादाद में कीटाणु पलते हैं. लेकिन, इन में से केवल तीन फ़ीसद ही ऐसे होते हैं, जो मीथेन गैस के उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार होते हैं.

ये बैक्टीरिया, जानवरों की आंतक के पहले हिस्से में रहते हैं, जिन्हें रूमेन कहते हैं. ये प्राचीन काल में धरती पर पैदा हुए आर्किया नाम के कीटाणुओं के वंशज हैं. ये बिना ऑक्सीजन वाले माहौल में जीवित रह सकते हैं.

ये जानवरों के चारे का फर्मेंटेशन कर के उस पर अपना बसर करते हैं. लेकिन, इस प्रक्रिया में मीथेन गैस निकलती है. इस गैस के दबाव की वजह से ही जानवरों में डकार निकलती है, या हवा खुलती है.

इस बैक्टीरिया का ख़ात्मा करने के लिए साइनेड और उनकी टीम ने पहले तो लैब में ऑक्सीजन मुक्त माहौल तैयार किया. इसके बाद उन बैक्टीरिया के जीनोम यानी डीएनए सीक्वेंस तैयार किए गए.

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तैयार किया जा रहा है टीका

बैक्टीरिया के जीनोम तैयार होने के बाद एगरिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों को उनके ख़ात्मे का टीका तैयार करने में काफ़ी मदद मिली.

एगरिसर्च के वैज्ञानिक पीटर जैनसेन कहते हैं कि अब तक इन बैक्टीरिया की 12 से 15 नस्लों का पता चला है, जो जानवरों में मीथेन गैस के उत्पादन के लिए ज़िम्मेदार हैं.

इन कीटाणुओं का ख़ात्मा करने के लिए जानवरों को इंजेक्शन के ज़रिए वैक्सीन दी जाती है. इससे उनके शरीर से वो केमिकल निकलते हैं, जो इन बैक्टीरिया के ख़िलाफ़ माहौल तैयार करते हैं, ताकि वो मर जाएं.

अब तक कुछ गिने चुने जानवरों जिन मे भेड़ें और गायें शामिल हैं, को ये वैक्सीन दी गई है. इसे तैयार करने के लिए जो एंटीबॉडी चाहिए, उसे वैज्ञानिक जानवरों की लार और पेट से निकालते हैं.

अब जिन जानवरों को टीका लगाया गया है. उन्हें गैस चैम्बर में रखकर ये देखा जा रहा है कि उनके शरीर से मीथेन गैस का उत्सर्जन कम हुआ है या नहीं.

जानवरों के चारा खाते वक़्त भी उनकी नाक से निकलने वाली गैसों को मापा-जोखा जा रहा है. कुछ जानवरों की पीठ पर एक मशीन लगाई जाती है, जो उनकी नाक से निकलने वाली हवा के नमूने इकट्ठा करती है.

हालांकि अब तक इस बात के पक्के सबूत नहीं जुटाए जा सके हैं कि टीका लगने के बाद से गायें या भेड़ों ने मीथेन गैस छोड़ना कम कर दिया है.

पीटर जैनसेन और उनके साथी पहले नहीं हैं जो मीथेन गैस बनाने वाले बैक्टीरिया के ख़िलाफ़ टीकाकरण कर रहे हों. 1990 के दशक में ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने भी ऐसा टीका ईजाद किया था.

मगर वो अपने प्रयोग में असफल रहे थे. लेकिन, एगरिसर्च के वैज्ञानिकों को भरोसा है कि वो अपने मक़सद में कामयाब होंगे. क्योंकि उन्होंने टीका बैक्टीरिया के जीनोम को बनाकर तैयार किया है.

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गायों का चारा बदलने की तरक़ीब

स्कॉटलैंज के रूरल कॉलेज की एईलीन वॉल कहती हैं कि गायों और दूसरे पालतू जानवरों के डीएनए में बदलाव कर के ऐसे जानवर पैदा किए जा सकते हैं, जो कम मीथेन गैस छोड़ेंगे.

एईलीन कहती हैं कि पिछले दो दशक में ब्रिटेन में दूध और मांस उत्पादन की वजह से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 20 फ़ीसद तक कम किया गया है.

अब एईलीन और उनके सहयोगी इसे और घटाने के लिए काम कर रहे हैं.

लेकिन, एईलीन के प्रयोग से सभी लोग सहमत नहीं हैं. ब्रिटेन की हार्पर एडम्स यूनिवर्सिटी के लियाम सिनक्लेयर कहते हैं कि ऐसे जानवरों को तैयार करना ख़र्चीला भी है और इस में समय भी बहुत लगता है.

वो एक और विकल्प सुझाते हैं. जानवरों को ऐसा चारा खिलाया जाए, जो उनके पेट में मौजूद आर्किया नस्ल के बैक्टीरिया के लिए मुफ़ीद न हो. ब्रिटेन की नॉटिंघम यूनिवर्सिटी के फिल गार्न्सवर्थी इस बात से इत्तिफ़ाक़ रखते हैं.

वो कहते हैं कि जानवरों का खान-पान बदल कर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 20-25 प्रतिशत की कमी की जा सकती है. गायों का खाना बदलकर दुनिया की कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 15 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है.

केवल मक्के का चारा इस्तेमाल करना कम कर के ही मीथेन का उत्सर्जन 10 प्रतिशत कम किया जा सकता है.

भेड़

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रेशेदार चारे से बनती है मीथेन गैस

पालतू जानवर जितना रेशेदार चारा खाएंगे, उतनी ही मीथेन गैस छोड़ेंगे. जानवरों के खाने में समुद्री घास शामिल करके मीथेन गैस का उत्सर्जन कम किया जा सकता है.

लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ़ आर्ट के छात्रों ने एक ऐसा यंत्र तैयार किया है, जो जानवरों की नाक से निकलने वाली गैसों को इकट्ठा करेगा, ताकि उन्हें कम ख़तरनाक गैसों में तब्दील किया जा सके.

जानवरों से निकलने वाली मीथेन कम करने के लिए उन्हें आयोनोफोर्स नाम के एंटीबायोटिक भी दिए जाते हैं. लेकिन यूरोपीय यूनियन में इनका इस्तेमाल प्रतिबंधित है.

इसके अलावा 3-नाइट्रोऑक्सीप्रोपैनेल जैसे कई और केमिकल हैं, जो जानवरों को दिए जाते हैं, ताकि वो कम मीथेन गैस छोड़ें.

टेक्सस की एऐंडएम यूनिवर्सिटी की एलिज़ाबेथ लैथम जानवरों को प्रोबायोटिक खिलाने की सलाह देती हैं, जिससे मीथेन गैस के उत्सर्जन में 50 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है.

लेकिन, इन्हें जानवरों को रोज़ाना देना होगा. केवल घास पर निर्भर जानवरों को रोज़ ऐसा खाना देना मुश्किल है.

चारा

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वैसे भी आंत के बैक्टीरिया, किसी भी जीव की अच्छी सेहत से जुड़े होते हैं. इन में बदलाव के नुक़सान भी हो सकते हैं.

मीथेन गैस कम करने के चक्कर में अगर जानवर डिप्रेशन के शिकार हो गए, तो इससे उनके दूध की क्वालिटी पर असर पड़ेगा.

पीटर जैनसेन कहते हैं कि अब तक के प्रयोग में उन्हें इस बात के संकेत नहीं मिले हैं, जो दूध की गुणवत्ता पर असर डालने वाले हों.

लेकिन, जब तक जानवरों की आंतों में पल रहे मीथेन उत्पादक बैक्टीरिया से निपटने का कोई ठोस तरीक़ा नहीं ईजाद होता, तब तक हमें जानवरों की डकार और गैस झेलनी होगी.

यह लेख मूल रूप से बीबीसी फ़्यूचर पर प्रकाशित हुआ था. मूल लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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