'असली टाइटैनिक' देखने की कीमत 78 लाख रुपये

टाइटैनिक

इमेज स्रोत, Getty Images

    • Author, पीटर रुबिनस्टेन
    • पदनाम, बीबीसी फ़्यूचर

मेक्सिको की रेनाटा रोहास को समंदर बचपन से ही बहुत दिलकश लगता था. बचपन में वो अपने पिता के साथ मेक्सिको में कोज़ुमेल तट के पास तैराकी किया करती थीं. उस वक़्त वो केवल पांच बरस की थीं. तब उन्हें समुद्र तट से ज़्यादा दूर जाने की इजाज़त नहीं थी.

अब वक़्त बदल गया है. अब रेनाटा दूर तलक जाकर समंदर में गोते लगा लेती हैं. समंदर की तलहटी उन्हें अपनी ओर खींचती मालूम होती है.

वहां का मंज़र रेनाटा को सपनों सरीखा लगता है. एक नई दुनिया नज़र आती है. जो सुकून देने वाली है. दुनिया के शोर-शराबे से दूर ऐसी जगह, जहां वक़्त ठहरा हुआ है.

ऐसी ही एक जगह है, उत्तर अटलांटिक महासागर में. जहां पर सौ साल से भी ज़्यादा पहले विशाल जहाज़ टाइटैनिक डूबा था.

टाइटैनिक

इमेज स्रोत, Getty Images

रेनाटा बचपन से ही समंदर में गोता लगाकर टाइटैनिक के मलबे को देखने का ख़्वाब पाले हुए हैं. अगले साल उनका सपना पूरा होने वाला है.

जल्द ही टाइटैनिक नहीं रहेगा...

ये ऐसा सपना है जिसे जल्द पूरा न किया गया, तो ये हक़ीक़त नहीं बन पाएगा.

असल में समुद्र के पानी के साथ जंग लड़ते हुए टाइटैनिक का मलबा बडी तेज़ी से गल रहा है.

जानकार कहते हैं कि यही रफ़्तार रही तो अगले बीस सालों में टाइटैनिक का मलबा गल कर पूरी तरह से समंदर के पानी में विलीन हो जाएगा.

रेनाटा उन गिने-चुने क़िस्मत वाले लोगों में से हैं, जो 2005 के बाद टाइटैनिक का मलबा देखने वाले पहले इंसान होंगे.

रेनाटा के साथ कुछ और लोग भी अटलांटिक की गहराई में उतरकर टाइटैनिक का मलबा देखेंगे. ये लोग शायद वो आख़िरी इंसान हों, जो ये मंज़र देख पाएं.

टाइटैनिक देखने के लिए करना होगा खर्च

ये एक कॉमर्शियल मिशन होगा.

रेनाटा और दूसरे लोगों को टाइटैनिक को देखने के लिए मोटी रक़म ख़र्च करनी होगी.

मगर इस दौरान वैज्ञानिक तजुर्बों को भी अंजाम दिया जाएगा.

जो लोग समुद्र के भीतर टाइटैनिक का मलबा देखने जाएंगे, वो थ्री-डी मॉडल की मदद से टाइटैनिक की तस्वीर और पूरा मंज़र तैयार करेंगे. ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए इसका संरक्षण किया जा सके.

लाइन
लाइन

जब बर्फ के पहाड़ से टकराया टाइटैनिक

आरएमएस टाइटैनिक 14 अप्रैल 1912 को उत्तर अटलांटिक महासागर में एक हिमखंड से टकरा गया था.

ये जहाज़ ब्रिटेन के साउथैम्पटन बंदरगाह से न्यूयॉर्क जा रहा था.

हिमखंड से टकराने के बाद टाइटैनिक दो टुकड़ों में टूट गया था.

टाइटैनिक

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, वो हिमखंड जिससे टकराकर क्षतिग्रस्त हुआ टाइटैनिक

इसका मलबा 3.8 किलोमीटर की गहराई में समा गया था. जहां ये हादसा हुआ, वो कनाडा के न्यूफाउंडलैंड तट से क़रीब 600 किलोमीटर दूर है.

इस हादसे में 1500 लोग मारे गए थे. भयंकर सर्द समंदर में अंधेरे से घिरा टाइटैनिक का मलबा क़रीब 70 साल तक अनछुआ ही पड़ा रहा था.

इस दौरान बैक्टीरिया इसके मेटल के बने ढांचे को कुतरते रहे. नतीजा ये हुआ कि इसके मलबे के ऊपर बर्फ़ की छोटे-छोटे नरम सी बूंद जैसी आकृतियां बन गईं.

इकोलॉजिस्ट लोरी जॉन्सटन कहते हैं कि, 'आज की तारीख़ में टाइटैनिक के मलबे में उस वक़्त से ज़्यादा ज़िंदगी आबाद है, जब वो डूबा था.'

असल में बर्फ़ और ज़ंग के ये छोटे-छोटे बुलबुले बैक्टीरिया की उपज हैं. ये बैक्टीरिया लोहा खाते हैं. इसके एवज़ में इनसे एसिड निकलता है, जो ज़ंग में तब्दील हो जाता है. जीवों की इस क़िस्म को समंदर की गहराई में ही देखा जा सकता है.

पहली बार टाइटैनिक के मलबे को 1985 में अन्वेषक रॉबर्ट बलार्ड और उनकी टीम ने खोजा था.

उस वक़्त तक ज़ंग के ये बुलबुले पूरी तरह से टाइटैनिक के मलबे पर कब्ज़ा जमा चुके थे.

ज़ंग पैदा करने वाले ये बैक्टीरिया, रोज़ाना क़रीब 180 किलो मलबा चट कर जाते हैं.

इसीलिए वैज्ञानिक कह रहे हैं कि टाइटैनिक के मलबे की उम्र अब ज़्यादा नहीं बची है.

टाइटैनिक

इमेज स्रोत, Getty Images

लोरी जॉन्सटन कहते हैं कि अगले 20 से 50 साल में बैक्टीरिया, टाइटैनिक के मलबे को पूरी तरह से खा जाएंगे.

कैसे नज़र आएगा टाइटैनिक का मलबा

यानी घड़ी की सुई टिक-टिक कर रही है. टाइटैनिक को वैज्ञानिक तजुर्बे के लिए देखना हो या फिर यूं ही शानदार मंज़र देखने का शौक़ पूरा करना हो, वक़्त बहुत कम बचा है.

इस मौक़े का फ़ायदा उठाने के लिए ओशनगेट नाम की कंपनी ने क़दम बढ़ाया है. कंपनी ने एलान किया है कि वो छोटी-छोटी पनडुब्बियों में बैठाकर लोगों को समंदर की तलहटी में ले जाएगी. इस मिशन का मक़सद वैज्ञानिक भी होगा और मौज मस्ती भी. लोग ओशनगेट की छोटी पनडुब्बी में सवार होकर टाइटैनिक के मलबे का दीदार कर सकेंगे.

ओशनगेट कंपनी 2009 में बनी थी. अब तक ये समुद्र के भीतर के 13 मिशन को अंजाम दे चुकी है.

अब 2019 में ओशनगेट ने कुछ लोगों को टाइटैनिक के मलबे के क़रीब ले जाने का बीड़ा उठाया है.

इसके लिए दुनिया भर से आवेदन मंगाए गए हैं. चुने गए लोगों को 11 दिन के इस ख़तरनाक मगर बेहद रोमांचक मिशन पर ले जाया जाएगा. एक बार में 9 लोग ओशनगेट की पनडुब्बी में सवार होकर समुद्र के भीतर जा सकेंगे.

इन लोगों को न्यूफाउंडलैंड के सेंट जॉन्स तट से हेलीकॉप्टर से समंदर में एक जहाज़ पर ले जाया जाएगा. फिर पनडुब्बी में बैठाकर समुद्र की गहराई में उतारा जाएगा.

पनडुब्बी में बैठे हुए ही ये लोग सोनार और लेज़र की मदद से टाइटैनिक के मलबे का सही थ्री-डी मॉडल बना सकेंगे.

टाइटैनिक

इमेज स्रोत, Getty Images

11 दिन के मिशन का टिकट है 1 लाख पांच हज़ार 129 डॉलर यानी क़रीब 78 लाख रुपए. ये रक़म उतनी ही है, जितने का टिकट टाइटैनिक पर सवार लोगों ने न्यूयॉर्क पहुंचने के लिए ख़रीदा था.

लाइन
लाइन

टाइटैनिक तक पहुंचना बेहद मुश्किल

समुद्र की गहराई में तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. इतनी गहराई में किसी आम इंसान का जाना और वापस आना अचरज से कम नहीं होगा.

लेकिन, ओशनगेट के अध्यक्ष जोएल पेरी कहते हैं कि यात्रियों की सुरक्षा तो कोई मसला ही नहीं है. ख़तरा उतना है नहीं, जितना लोग दावा करते हैं. फिर, जिन लोगों को चुना जाएगा उन्हें सख़्त पैमानों पर कसने के बाद ही समंदर में गोता लगाने का टिकट मिलेगा.

अर्ज़ी लगाने वालों का दिमाग़ी तौर पर दुरुस्त होना उतना ही ज़रूरी है, जितना सेहतमंद होना. इन लोगों को हेलीकॉप्टर के क्रैश होने पर बचाव की ट्रेनिंग भी दी जाएगी. जिनको तैराकी का तजुर्बा होगा उन्हें तरज़ीह दी जाएगी. जैसे रेनाटा रोहास. उन्हें जोएल पेरी माइटी माउस यानी ताक़तवर चुहिया कह कर बुलाते हैं. रेनाटा इस मिशन के लिए चुनी गई पहली शख़्स हैं.

इसकी बड़ी वजह उनका गोताख़ोरी का लंबा अनुभव है.

रेनाटा बताती हैं कि, 'जब मैंने अपने पिता के बग़ैर पहली बार गोता लगाया था, तो एक हादसा पेश आया. मैं गहराई में एक छेद में घुस गई. मेरे ऑक्सीजन सिलेंडर का एक वॉल्व खुल गया.'

टाइटैनिक

इमेज स्रोत, Getty Images

रेनाटा जब 60 मीटर की गहराई में थीं, तब ये दुर्घटना हुई थी. वो अपने निर्देशक के पास गईं और उनसे ऑक्सीजन लेकर अपने टैंक में डाली. ऐसे मामलों में अक्सर लोग बेहोश हो जाते हैं. मगर, रेनाटा ने बड़ी सूझ-बूझ से ख़ुद को सुरक्षित निकाल लिया.

टाइटैनिक देखने का जुनून

रेनाटा रोहास के चुने जाने की दूसरी वजह टाइटैनिक के प्रति उनका जुनून है. जिस भी चीज़ का नाम टाइटैनिक होता है, उन्हें उससे लगाव हो जाता है.

पहली बार उन्होंने 1953 की एक ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म देखी थी, जो टाइटैनिक हादसे पर आधारित थी.

तब से ही टाइटैनिक के प्रति रेनाटा के दिल में जुनून पैदा हो गया. उन्होंने टाइटैनिक से जुड़ी सैकड़ों किताबें पढ़ डाली हैं. उस दौर के अख़बारों की सुर्ख़ियां जमा की हैं. रेनाटा ने टाइटैनिक पर बनी हर फ़िल्म देख डाली है.

जब 1985 में टाइटैनिक का मलबा खोजा गया था, तब से ही रेनाटा ने टाइटैनिक की एक झलक देखने के लिए पैसे बचाने शुरू कर दिए थे. रेनाटा ने टाइटैनिक का मलबा खोजने वाले रॉबर्ट बलार्ड से भी मुलाक़ात की थी.

टाइटैनिक

इमेज स्रोत, Getty Images

लेकिन बलार्ड ने कहा कि अब कोई भी मिशन टाइटैनिक के मलबे के पास जाने वाला नहीं है. इसके बाद रेनाटा ने समुद्र से जुड़ा करियर छोड़कर वापस बैंकिंग की राह पकड़ ली.

दो साल बाद रेनाटा रोहास को पता चला कि अरबपति विलियम एफ बकले अपनी निजी पनडुब्बी में टाइटैनिक के मलबे तक गोता लगाकर आए हैं.

यानी रॉबर्ट बलार्ड की बात ग़लत साबित हुई थी. रेनाटा को लगा कि सही संस्था से जुड़कर टाइटैनिक को देखने का अपना ख़्वाब वो पूरा कर सकती हैं.

टाइटैनिक का मलबा खोजे जाने के क़रीब तीस साल बाद यानी 2012 में रेनाटा को इस मिशन पर जाने का टिकट मिला. उन्होंने डीप ओशन एक्सपेडिशन्स के टिकट पर जाने को लेकर ज़बरदस्त उत्साह था.

मगर, बाद में कंपनी ने वो मिशल कैंसिल कर दिया. रेनाटा का सपना फिर टूट गया था. वो बताती हैं कि इसके सदमे से उबरने में उन्हें एक साल लगे थे.

लाइन
लाइन

टाइटैनिक के मलबे पर किसका अधिकार

जब रॉबर्ट बलार्ड ने टाइटैनिक का मलबा खोजा, तो वो उस पर एकाधिकार का दावा करने लगे.

लंबी मुक़दमेबाज़ी के बाद तय हुआ कि मलबे से कोई भी छेड़खानी नहीं करेगा. मगर फ्रांस ने इस समझौते की अनदेखी कर दी.

तब से ही ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस और अमरीका की सरकारें इसके मलबे को लेकर क़ानूनी जंग में मुब्तिला हैं.

इन देशों की सरकारें नहीं चाहतीं कि ओशनगेट जैसी कंपनियां टाइटैनिक का मलबा दिखाने को कारोबार बनाएं.

ओशनगेट के वक़ील डेविड कॉनकैनन कहते हैं कि, 'पूरा झगड़ा कब्ज़े का है. किसके हाथ में समुद्र की गहराई में पड़ा वो मलबा होगा. कौन इसके आस-पास शूटिंग की इजाज़त देगा. कौन उस जहाज़ में लदे सामान पर हक़ जता सकता है. इन सवालों के जवाब पिछले तीस साल से तलाशे जा रहे हैं.'

टाइटैनिक

इमेज स्रोत, Getty Images

डेविड कहते हैं कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय नियम बेतुके हैं. जो ये कहते हैं कि टाइटैनिक का मलबा समंदर के भीतर मौजूद एक विरासत है. इससे छेड़खानी नहीं होनी चाहिए.

अच्छी बात ये है कि इन नियमों को सख़्ती से लागू नहीं किया जाता. ओशनगेट को इसी बात में उम्मीद दिखती है. डेविड कहते हैं कि सख़्ती होगी भी तो कोई उसे मानेगा नहीं.

टाइटैनिक की उम्र का आकलन

इसकी बड़ी वजह ये है कि टाइटैनिक का मलबा खुले समंदर की गहराई में है. किसी भी देश की समुद्री सीमा उसके तट से 19 किलोमीटर दूर तक मानी जाती है. आर्थिक अधिकार 160 किलोमीटर दूर तक होते हैं. टाइटैनिक का मलबा कनाडा के तट से 600 किलोमीटर दूर है.

ओशनगेट के जोएल पेरी कहते हैं कि 2019 का उनका मिशन टाइटैनिक के मलबे की थ्री-डी मैपिंग करेगा. ऐसा पिछले दस सालों में नहीं हुआ है. और उच्च तकनीक से लैस सोनार और लेज़र किरणें भी टाइटैनिक के ऊपरी हिस्से का ही नक़्शा बना सकेंगी. इसके अंदर का नक़्शा बनाने में तो कई बरस और लगेंगे.

टाइटैनिक

इमेज स्रोत, Getty Images

मिशन के दौरान ओशनगेट की पनडुब्बी कई बार टाइटैनिक के मलबे के आस-पास से गुज़रेगी. इससे ये भी पता चलेगा कि बैक्टीरिया किस रफ़्तार से टाइटैनिक का मलबा हजम कर रहे हैं. मिशन से ये भी अंदाज़ा लग सकेगा कि टाइटैनिक के मलबे के गुम होने में कितने साल और बचे हैं.

जोएल पेरी कहते हैं कि ओशनगेट के मिशन से जो भी डेटा इकट्ठा होगा, उसे सब को मुफ़्त में मुहैया कराया जाएगा.

ओशनगेट का इरादा इस मिशन पर आधारित वीडियो गेम बनाने का भी है. रेनाटा कहती हैं कि वो मिशन के हर पहलू से जुड़ना चाहती हैं. मगर ये संभव नहीं. हालांकि उन्हें उम्मीद है कि इस बार उन्हें क़िस्मत दग़ा नहीं देगी. उन्हें लगता है कि इस मिशन पर जाकर वो टिकट की क़ीमत की पाई-पाई वसूल लेंगी.

गहराई में छलांग

सब कुछ ठीक रहा तो अगले साल जून में रेनाटा रोहास ओशनगेट के जहाज़ से पनडु्बबी में सवार होकर समुद्र में क़रीब 4 किलोमीटर की गहराई में उतरेंगी.

सोनार की मदद से जब वो मलबे के पास पहुंचेंगी, तो लाइट जल जाएगी. रेनाटा अपने ख़्वाब से मुख़ातिब होंगी. रेनाटा इस बात को सोच-सोचकर ही दीवानी हुई जा रही हैं. वो कहती हैं कि टाइटैनिक हादसा भयानक था, इसलिए वो वहां पहुंचकर जोश में नाचने से बचेंगी.

लोरी जॉन्सटन कहते हैं कि वो एक क़ब्रगाह है. टाइटैनिक हादसे में मारे गए लोगों के वारिस मानते हैं कि उस जगह पर जाना उनके पुरखों का अपमान है.

लेकिन लोरी कहते हैं कि इस मिशन से ऐसे आंकड़े इकट्ठे होंगे, जो आने वाली पीढ़ियों के काम आएंगे. ख़ास तौर से उन लोगों के, जिनके पैदा होने तक जहाज़ का मलबा भी पूरी तरह से मिट चुका होगा.

रेनाटा भी मिशन के अपने तजुर्बे को बच्चों से साझा करने का इरादा रखती हैं. वो कहती हैं कि बच्चों को इससे ये सबक़ मिलेगा कि कोई भी ख़्वाब ऐसा नहीं है, जो पहुंच से परे हो. 'मैंने भी टाइटैनिक को देखने का सपना बचपन में ही देखा था. मैं बच्चों को बताऊंगी कि कैसे चाहत होने पर हर ख़्वाब पूरा किया जा सकता है.'

(मूल लेख अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, जो बीबीसी फ़्यूचर पर उपलब्ध है.)

लाइन

ये भी पढ़ें -

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)