न्यूयॉर्क को बचाने वाली वो महिला

    • Author, जोनाथन गलैंसी
    • पदनाम, बीबीसी कल्चर

आज नई सड़कें, ऊंची इमारतें, फ्लाईओवर वग़ैरह किसी भी शहर में तरक़्क़ी की निशानी माने जाते हैं. इन्हें बनाने के लिए पुरानी बस्तियां उजाड़ी जाती रही हैं.

विकास का ये फॉर्मूला एक सदी से भी ज़्यादा पुराना हो चला है. तरक़्क़ी की चाह में उजड़ती बस्तियों, उनमें रहने वाले लोगों या पुरानी इमारतों की किसी को परवाह नहीं होती.

पुराने शहर, पुरानी इमारतें उस जगह की पहचान होती है. अगर हम बात करें भारत की तो यहां भी हर शहर में सदियों पुरानी बस्तियां आबाद हैं. इनमें से कइयों का रंग रूप तो पूरी तरह बिगड़ चुका है.

कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और बनारस जैसे शहरों में पुरानी बस्तियों की हालत बेहद ख़राब है. इन शहरों में तरक़्क़ी भी हुई है. नई बस्तियां बसी हैं. नई इमारतें बनी हैं. नई सड़कें और फ्लाईओवर बने हैं. आज मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बनारस जैसे शहरों में एक भी ऐसा नहीं, जैसा कि वो अब से सौ साल पहले या पचास साल पहले होता था.

इसकी एक वजह बढ़ती आबादी है, तो दूसरी वजह तरक़्क़ी का अलग पैमाना भी है. यूरोप और अमेरीका में भी बहुत से पुराने शहर हैं जो उन देशों के इतिहास के गवाह रहे हैं. वहां की संस्कृति के नुमाइंदे रहे हैं. लेकिन उन्हें भी नए दौर का बनाने की कोशिशे की गई.

आज अमरीका का न्यूयॉर्क शहर जैसी चमक-दमक वाला दिखता है, वैसा हमेशा से नहीं था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद न्यूयॉर्क शहर ना आधुनिकीकरण बड़े पैमाने पर किया गया था. छोटे मकानों वाली बस्तियां उजाड़ी गईं. उनकी जगह बहुमंज़िला इमारतें खड़ी कर दी गई हैं. कहीं पार्क बने, तो कहीं फ्लाईओवर.

न्यूयॉर्क का कायाकल्प

न्यूयॉर्क के इस आधुनिकीकरण के अगुवा थे रॉबर्ट मोसेस. रॉबर्ट न्यूयॉर्क के सिटी प्लानर थे. वो पहले रियल एस्टेट के कारोबारी भी रहे थे. मोसेस का ख़्वाब था कि वो न्यूयॉर्क को एक नए तेवर और अंदाज़ में देखें. वो न्यूयॉर्क को बदलने का सिर्फ़ सपना नहीं देख रहे थे, बल्कि उनके पास इसे बदलने का पूरा प्लान और पैसा दोनों थे.

मोसेस ने अपना ख़्वाब पूर करने के लिए न्यूयॉर्क में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य कराया. शहर में बड़े-बड़े ख़ूबसूरत पार्क, स्विमिंग पूल, खेल के मैदान, लंबी चौड़ी सड़कें, पुल, फ्लाईओवर, स्टेडियम और बहुमंज़िला इमारतें बनवाईं. मोसेस के राज में ही न्यूयॉर्क का मशहूर लिंकन सेंटर और संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय की इमारत भी बनी.

मोसेस के इस सपने को साकार करने में बहुत से लोग बेघर हो रह थे. न्यूयॉर्क में बहुत बड़ी आबादी ऐसी थी जो दूसरे विश्व युद्ध के पहले शहर में आकर बस गई थी. ये लोग शहर में बेतरतीब ढंग से, अनियोजित तरीक़े से रह रहे थे. मगर इन बस्तियों में रहते हुए उन्हें कई पीढ़ियां गुज़र चुकी थी. ये बेतरतीब बस्तियां ही उनकी दुनिया थी. ये बेतरतीब बस्तियां मोसेस की आंखों में खटकती थीं. वो इस आबादी को न्यूयॉर्क के लिए बढ़ता हुआ कैंसर का मर्ज़ मानते थे. वो इन सब को शहर से बाहर कर उसे सिर्फ़ अमीरों के लिए बसने वाला शहर बनाना चाहते थे.

मोसेस के इस आइडिया को न्यूयॉर्क के रईसों और बुद्धिजीवी वर्ग का समर्थन भी मिल रहा था.

न्यूयॉर्क के गरीबों की मसीहा

लेकिन कहते हैं ना कि हर दौर में कोई ना कोई मसीहा ज़रूर आता है. तो न्यूयॉर्क में भी इन गरीबों का मसीहा बनकर आईं एक पत्रकार जिनका नाम था जेन जैकब. अगर जैकब ने संघर्ष ना किया होता तो न्यूयॉर्क में आज सिर्फ़ अथाह पैसे वाले ही रह पाते. जिनकी पीढ़ी दर पीढ़ी इस शहर में अपनी ज़िंदगी गुजार चुकी थी, वो लोग ना जाने किस शहर के किस गली-कूचे में ज़िंदगी बसर कर रहे होते.

अगर आप न्यूयॉर्क शहर के पुराने अवतार को बचाने के लिए किए गए जैकब के संघर्ष को देखना चाहते हैं, तो आप मैट टायरन्यूर की नई डॉक्यूमेंट्री ज़रूर देखिए जिसका नाम है 'सिटिज़न जेन:बैटल फॉर द सिटी'. इस डॉक्यूमेंट्री में मोसेस जैसे ताक़तवर सिटी प्लानर और एक बस्तिया उजड़ने से बचाने की कोशिश करती एक महिला के बीच जंग को दिखाया गया है.

मोसेस न्यूयॉर्क को आधुनिक युग की तरफ़ ले जाने के ख़्वाहिशमंद हैं. और जेन उन्हें हज़ारों लोगों को बेघर करने और शहर की पुरानी पहचान को उजाड़ने से रोकने लिए लड़ती है.

दरअसल ये डॉक्यूमेंट्री जेन जैकब की लिखी क़िताब 'द डैथ एंड लाइफ़ ऑफ़ ग्रेट अमेरिकन सिटीज़' पर बनाई गई है. जेन ने ये किताब साल 1961 में लिखी थी. इस किताब के बारे में कहा जाता है कि जो भी सियासी नेता, शहर प्लान करने वाले डेवेलपर और आर्किटक्ट ये जानना चाहते हैं कि किसी शहर की आबादी को नुक़सान पहुंचाए बिना उसे नया कैसे बनाया जाए, तो उन्हें ये किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए.

जेन जैकब पेशे से पत्रकार थीं. उन्हों ने अपनी लड़ाई सड़कों पर उतर कर नहीं बल्कि क़लम से लड़ी थी. वो शहर के आधुनिकीकरण या वहां बनने वाली ऊंची इमारतों के ख़िलाफ़ नहीं थी. लेकिन शहर को जिस नीयत से नया रूप देने की चर्चा हो रही थी उन्हें उस पर एतराज़ था.

उनका कहना था कि शहर इंसानों के लिए बसाए जाते हैं, ना कि सिर्फ़ ख़ूबसूरती के लिए. उन्हें शहर के आसपास बसे ग़रीबों की ज़िंदगी में दिलचस्पी थी. उन्हें लगता था न्यूयॉर्क को ज़िंदादिल बनाए रखने वाले तो ये छोटे छोटे कारोबारी और उनके परिवार हैं. शहर के चारों तरफ़ फ़ैली उनकी मसरूफ़ ज़िंदगी ही न्यूयॉर्क की पहचान है. अगर उन्हें ही उजाड़ दिया जाएगा तो फिर बचेगा क्या. शहर की ख़ूबसूरती किसके लिए बढ़ाई जाएगी.

जैकब की नज़र में बड़ा शहर वो होता है जहां अमीर ग़रीब सब एक साथ नज़र आते हैं. जहां हरेक वर्ग के लोगों का संघर्ष नज़र आता है, जहां हरेक बाज़ार, थिएटर, पार्क सब कुछ सबके लिए होता है. दूसरे विश्व युद्ध से पहले न्यूयॉर्क ऐसा ही शहर था.

जेन जैकब का जन्म पेंसिल्वेनिया के स्क्रैंटन में हुआ था. साल 1935 में वो न्यूयॉर्क में आकर बसी थीं. उन्हों ने स्क्रैंटन ट्रिब्यून के वुमेन पेज के लिए बिना पैसे के काम किया. वोग और संडे हेराल्ड ट्रिब्यून के लिए उन्हों ने फ्रीलांस काम भी किया. दूसरी आलमी जंग के दौरान वो ऑफ़िस ऑफ़ वॉर इंफ़ोर्मेशन के लिए एक फ़ीचर राइटर के तौर पर काम कर रही थीं. किसी पॉश इलाक़े में रहने के बजाए उन्होंने न्यूयॉर्क के ग्रीनविच विलेज में रहना ज़्यादा बेहतर समझा.

इसी दौरान जेन को यहां के बाशिंदों से, शहर के इस पहलू से प्यार हो गया. जब रॉबर्ट मोसेस ने अपने शानदार प्लान से न्यूयॉर्क को पूरी तरह बदल डालने का अभियान शुरू किया, तो जेन को इन छोटी-छोटी बस्तियों की फिक्र हुई और उन्होंने रॉबर्ट के अभियान के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी.

जैकब ने आर्किटेचरल फोरम और फ़ॉर्चून पत्रिका के ज़रिए अपनी आवाज़ बुलंद की. और बड़े बड़े अर्बन प्लानर को अपने ख़्यालात पर एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया. जब मोसेस ने वॉशिंगटन स्क्वॉयर पार्क से एक एक्सप्रेस वे बनाने की योजना बनाई, तो, जैकब ने इसके ख़िलाफ़ तमाम घरेलू महिलाओं को इकट्ठा करके प्रदर्शन किया. और उनके आगे मोसेस को झुकना ही पड़ा.

जैकब ख़ालिस तौर पर एक कामकाजी महिला होने के साथ साथ अर्बन प्लानिंग की अच्छी समझ भी रखती थी. और ये वो दौर था जब महिलाएं एक पेशेवर करियर के लिए पहचान बनाने की कोशिश कर रही थीं. क़लम से लड़ाई लड़ने वाली इस महिला ने मोसेस जैसे बड़े रसूखदार को अपने कई फ़ैसले बदने पर मजबूर कर दिया.

शहर की प्लानिंग

साल 1980 तक जेकब का शहर की प्लानिंग का आइडिया उनकी किताब के ज़रिए सारी दुनिया में फैल चुका था. साल 2005 तक उनकी किताब की क़रीब ढाई लाख कॉपी बिक चुकी थीं. जिस वक्त चीन में कई पुराने शहरों को तोड़कर बड़े फ्लाइओवर बनाए जा हे थे. सड़कें चौड़ी की जा रही थीं उस समय चीनी भाषा में भी इस किताब का तर्जुमा किया गया.

जेन जैकब और मोसेस के संघर्ष पर डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले मैट टायरन्यूर को इन दोनों की कहानी हीरो और विलेन की कहानी नज़र आती है. वो दोनों को अपना अपना नज़रिए रखने का मौक़ा देती है. नए शहरों के बसाए जाने पर दोनों को कोई ऐतराज़ नहीं. लेकिन इसके तरीक़े पर दोनों के ख़याल मुख़्तलिफ़ हैं. एक लोगों को उजाड़ कर शहर बसाना चाहता है, तो, दूसरा शहरों में रह रहे लोगों के लिए शहर को नए अंदाज़ में बसाना चाहता है.

शायद आज हमारे शहरों के लिए इनके बीच का रास्ता अपनाने की ज़रूरत है. हमें बढ़ती आबादी और दौर के हिसाब से शहरों का आधुनिकीकरण भी करना चाहिए. लेकिन इसके लिए पुरानी बस्तियों का शहर की पुरानी पहचान मिटाने के बजाय उन्हें सहेजने की कोशिश भी करनी चाहिए. इससे शहर नए भी होंगे और उनकी पुरानी ज़िंदादिली भी बची रहेगी.

अगर दुनिया भर में शहरों के विकास का ये फॉर्मूला अपना लिया जाए, तो, शायद ये जेन जैकब के संघर्ष को सबसे अच्छा सलाम होगा.

(मूल लेख अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, जो बीबीसी कल्चर पर उपलब्ध है.)

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