बुधवार, 31 जनवरी, 2007 को 14:50 GMT तक के समाचार
आलोक कुमार
बीबीसी संवाददाता
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ चौथे एकदिवसीय पारी में शतक के साथ टीम को जीत दिलाकर तीन साल से चले आ रहे 'अपशकुन' को भी तोड़ दिया.
दरअसल सचिन के एकदिवसीय क्रिकेट कैरियर से पिछले तीन साल से एक अज़ीब सी बात जुड़ी हुई थी. जब भी वह शतक बनाते थे, ज़्यादातर टीम को जीत नसीब नहीं होती थी.
सचिन ने वडोदरा में कैरीबियाई टीम के ख़िलाफ़ नाबाद शतकीय पारी खेलकर न केवल अपने एकदिवसीय कैरियर का 41वाँ शतक बनाया, बल्कि इस मिथक को भी तोड़ दिया कि उनका शतक टीम की जीत में काम नहीं आता.
ऐसा आख़िरी बार नवम्बर 2003 में हुआ था कि सचिन ने शतक बनाया था और भारत को जीत भी हासिल हुई थी.
न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध टीवीएस कप के मैच में उन्होंने 102 रन की पारी खेली थी और भारत को 145 रन से जीत दिलाई थी.
नज़र लगी
लेकिन इसके बाद तो मानो इस 'शतकवीर' के सैंकड़ों को किसी की नज़र ही लग गई.
उन्होंने इसके बाद एक-दो नहीं चार शतक लगाए, लेकिन टीम जीत दर्ज करने में नाकाम रही.
मार्च 2004 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ पेशावर में उन्होंने 141 रन की शानदार पारी खेली, लेकिन भारत 12 रन से मैच हार गया.
इसके बाद उन्होंने अप्रैल 2005 में अहमदाबाद में पाकिस्तान के विरुद्ध 123 रन बनाए, लेकिन टीम के हिस्से पराजय ही आई और भारत तीन विकेट से मैच गँवा बैठा.
फ़रवरी 2006 में उन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध पेशावर में कैरियर का 39वां शतक बनाया, लेकिन टीम की सात रन से पराजय न टाल सके.
सितंबर 2006 में ही कुआलालम्पुर में वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध सचिन ने 141 रनों की नाबाद पारी खेली, लेकिन भारत 29 रन से हार गया.
आखिरकार सचिन इस मिथक को तोड़ने में तीन साल लगे और वडोदरा में उन्होंने शतक लगाकर न केवल मैन ऑफ़ द मैच का पुरस्कार पाया, बल्कि उन्हें मैन ऑफ़ द सिरीज़ के खिताब से भी नवाजा गया.
सचिन ने 378 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में 53वीं बार मैन ऑफ़ द मैच का पुरस्कार हासिल किया है और यह विश्व रिकॉर्ड है.
सचिन वडोदरा मैच के बाद अपने आलोचकों पर भी जमकर बरसे और कहा कि उन्हें पता है कि बल्लेबाज़ी किस तरह से करनी है.