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स्पिन के जादूगर हैं मुथैया मुरलीधरन | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
क्रिकेट में एक कहावत चलती हैः फॉर्म आता है जाता है मगर शैली यानी क्लास नहीं बदलते. लेकिन श्रीलंका के ऑफ़स्पिनर मुथैया मुरलीधरन पर ये कहावत फिट नहीं बैठती. मुरलीधरन की शैली तो एक जैसी रही ही, उनके फ़ॉर्म में भी एकरूपता बनी रही. उन्होंने औसतन हर टेस्ट मैच में छह विकेट लिए हैं और वे बिना किसी शक के श्रीलंका के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी कहे जा सकते हैं. भारत में क्रिकेट के शौकीन अक्सर मुरली के बारे में कुछ ऐसे कहते मिलेंगे - भई ग़ज़ब का गेंदबाज़ है, शीशे पर भी गेंद घुमा सकता है! शुरूआत और करियर
मुरलीधरन का जन्म 17 अप्रैल 1972 को कैंडी शहर में एक तमिल परिवार में हुआ. सेंट एंथनी कॉलेज में अपनी स्कूल की पढ़ाई करते वक़्त क्रिकेट से उनका परिचय हुआ. मगर पहले वे तेज़ गेंदबाज़ बनना चाहते थे. फिर स्कूल के कोच की सलाह पर 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने स्पिन को अपना हथियार बनाया. उन्होंने अपना पहला टेस्ट मैच खेला 1992 में कोलंबो में ऑस्ट्रेलिया के विरूद्ध खेला. पहले मैच में उन्होंने तीन विकेट लिए और मार्क वॉ को शून्य पर चलता कर दिया.
उन्होंने एक साल बाद दक्षिण अफ़्रीका के साथ एक मैच में पहली बार पाँच विकेट लिए. इसके बाद उन्होंने पलटकर नहीं देखा. वे टेस्ट मैचों में अब तक 43 बार पाँच विकेट और 13 बार 10 विकेट ले चुके हैं. एक दिवसीय क्रिकेट में उन्होंने क़दम रखा 1993 में. कोलंबो में भारत के खिलाफ़ खेले गए मैच में उन्होंने एक विकेट लिया. मुरलीधरन अभी तक 151 एक दिवसीय मैचों में 360 विकेट ले चुके हैं. मुरली की ख़ासियत
मुरलीधरन वैसे तो अपनी लचकदार कलाई से ऑफ़स्पिनर गेंदें डालते हैं मगर उनकी कुछ गेंदें ख़तरनाक मानी जाती हैं. उनका पहला हथियार हैं विकेट की बाहरी छोर पर टप्पा खाकर विकेट की ओर आती ऑफ़ ब्रेक गेंदें. इनके अलावा वे दो तरह की टॉप स्पिन गेंदें भी डालते हैं. पहली टॉप स्पिन तो बिल्कुल सीधी जाती है और दूसरी गेंद उल्टी दिशा में घूमती है. इस दूसरी टॉप स्पिन गेंद को ख़ास नाम दिया गया - दूसरा. इसे लेकर ख़ासा बावेला मचा था. विवाद मुरलीधरन के एक्शन को लेकर विवाद उठते रहे. सबसे पहले विवाद सामने आया 1995-96 में उनके ऑस्ट्रेलिया दौरे के वक़्त. फिर 1998-99 में भी उनके एक्शन पर ऑस्ट्रेलियाई अंपायरों ने उंगली उठाई. उनके एक्शन का वैज्ञानिक परीक्षण हुआ और इसके बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने 1996 में उन्हें क्लीनचिट दे दी. लेकिन इस वर्ष जब श्रीलंका की टीम ऑस्ट्रेलिया गई तो एक बार फिर उनकी गेंदबाज़ी पर टेढ़ी नज़र पड़ी. मगर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने उन्हें गेंदबाज़ी करते रहने की अनुमति दे दी है जिसके बाद आठ मई 2004 को मुरलीधरन दुनिया में सबसे ज़्यादा विकेट लेनेवाले गेंदबाज़ बन गए. तुलना में बेहतर मुरली ने 520 विकेट लेने में सिर्फ़ 89 टेस्ट मैच लगाए जबकि वॉल्श को इतने विकेट हासिल करने के लिए 132 मैच खेलने पड़े थे. शेन वॉर्न ने टेस्ट क्रिकेट में 517 विकेट लिए हैं और वे 110 टेस्ट मैच खेल चुके हैं. वॉर्न के अलावा मुरली ही अकेले स्पिनर हैं जिन्होंने 500 विकेट की सीमारेखा को पार किया है. |
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