पहलवान बनाम कुश्ती महासंघ अध्यक्ष, क्या हैं मुद्दे और क्यों मचा है घमासान?

    • Author, अमनप्रीत सिंह
    • पदनाम, खेल पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए

भारतीय खेलों के हालिया इतिहास पर नज़र डाली जाए तो पिछले एक दशक में एक बार ऐसा मामला आया था, जब नामी खिलाड़ियों ने एकजुट होकर अपने खेल संघ के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर मोर्चा खोल दिया था.

बीच-बीच में खिलाड़ियों के खेल संघों के साथ मतभेद सामने आते रहे हैं, चाहे वह बैडमिंटन खिलाड़ी हों, टेनिस प्लेयर हों या टेबल टेनिस प्लेयर.

लेकिन इससे पहले बड़े स्तर पर जो लड़ाई लड़ी गई थी, वो 2013 में हुई थी. उस समय भारत के चोटी के टेनिस खिलाड़ियों ने बुनियादी सुविधाओं के अभाव में दक्षिणी कोरिया के ख़िलाफ़ दिल्ली में डेविस कप मैच खेलने से मना कर दिया था.

भारतीय टेनिस महासंघ को मुक़ाबले में दोयम दर्जे की टीम उतारनी पड़ी और हार का सामना करना पड़ा.

आख़िकार टेनिस महासंघ को खिलाड़ियों की लगभग सभी शर्तों को मानना पड़ा.

लेकिन जंतर मंतर पर जो हो रहा है, वो कई मायनों में अभूतपूर्व है.

ऐसा कभी नहीं देखने को मिला कि तीन ओलंपिक मेडलिस्ट और दो विश्व चैंपियनशिप मेडल विजेता पहलवान धरने पर बैठे हों.

ये लोग ना केवल कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह पर "तानाशाही रवैए" का आरोप लगा रहे हैं, बल्कि उनके ख़िलाफ़ यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं.

कैसे बनी टकराव की स्थिति?

2008 बीजिंग ओलंपिक्स में सुशील कुमार के ऐतिहासिक कांस्य पदक जीत के बाद भारत में कुश्ती का स्तर लगातार बेहतर होता चला गया.

फिर 2012 के लंदन खेलों में सुशील कुमार ने रजत और योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीता. इससे पहलवानों की छवि में काफ़ी सुधार आया.

अब पहलवानों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा, क्योंकि कुश्ती ही ऐसा खेल था जो ओलंपिक स्तर पर भारत का परचम लहरा रहा था.

2016 में रियो ओलंपिक में साक्षी मलिक ने कांस्य पदक जीत कर ये सिलसिला जारी रखा.

फिर एक दौर आया, जब बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट ने विश्व चैंपियनशिप जैसे बड़े टूर्नामेंट्स में मेडल जीतने शुरू किए.

शायद ही कोई मुक़ाबला हो, जहाँ इन दो खिलाड़ियों ने मेडल ना जीते हों. कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियाई खेल या एशियाई चैंपियनशिप, कामयाबी लगातार इन्हें मिलती रही.

पहलवानों की कामयाबी के साथ ही अब कॉरपोरेट जगत की भी इस खेल में रुचि बढ़ी. प्रो रेसलिंग लीग जैसी प्रतियोगिता भारत में आनी शुरू हुई.

इससे खिलाड़ियों को आर्थिक मदद के अलावा विदेशों में जाकर तैयारी करने के रास्ते खुलने लगे और विदेशी कोचों के साथ ट्रेनिंग करने का मौक़ा भी मिलने लगा.

JSW और OGQ जैसे ग़ैर-सरकारी संगठन चुनिंदा पहलवानों को मदद करने लगे. इसके अच्छे नतीजे भी मिले क्योंकि अब खिलाड़ी विदेशों में रह कर उन्हीं पहलवानों के साथ ट्रेनिंग करने लगे, जिनके साथ उनको टूर्नामेंट्स में भिड़ना होता था.

इससे पहलवानों की झिझक भी कम हुई और विदेशों में बेहतर सुविधाओं के कारण उनका प्रदर्शन एक अच्छे लेवल पर रहने लगा.

इधर सरकार ने भी टॉप्स स्कीम के ज़रिए खिलाड़ियों की मदद करना शुरू किया.

लेकिन भारतीय कुश्ती महासंघ को ग़ैर-सरकारी संगठनों का पहलवानों के साथ 'डायरेक्ट कॉन्टैक्ट' रास नहीं आया.

WFI ने 2022 में इस तरह की सारी मदद पर रोक लगा दी और एलान कर दिया कि उसे ग़ैर सरकारी संस्थानों का हस्तक्षेप पसंद नहीं और ये संस्थान अब पहलवानों की मदद WFI की अनुमति के बिना नहीं कर सकते.

इसके बाद पहलवानों को मिलने वाली सुविधाएँ जैसे मनपसंद विदेशी कोच, फिज़ियो और विदेशों में ट्रेनिंग भी बंद हो गई.

ग़ौरतलब है कि टोक्यो गेम्स के बाद भारतीय पहलवान एक भी विदेशी दौरे पर नहीं गए हैं. इनके साथ जो विदेशी कोच थे, उन्हें भी हटा दिया गया.

बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट और रवि दहिया भारतीय कोचों से साथ तैयारी कर रहे थे. लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें संस्थानों से मिलने वाली मदद बंद होने और मनचाही ट्रेनिंग करने की आज़ादी ख़त्म होने का मलाल भी था.

साथ ही WFI ने 150 पहलवानों को BCCI की तर्ज़ पर 2018 में जो कॉन्ट्रैक्ट बाँटे थे, उनका भी सम्मान नहीं किया.

WFI ने उसी वर्ष टाटा मोटर्स जैसे बड़े कॉरपोरेट को कुश्ती का नेशनल स्पॉन्सर बनाया था. ज़ाहिर था अब खेल में पैसा आने लगा था.

उस कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक़ A ग्रेड के पहलवानों को, जिनमें बजरंग और विनेश शामिल थे, 30 लाख रुपए सालाना मिलने थे, लेकिन कुश्ती महासंघ ने 2-3 त्रैमासिक किश्तों के बाद ये पैसा देना भी बंद कर दिया.

अब खिलाड़ियों को ना तो प्राइवेट स्पॉन्सरशिप से पैसे मिल रहे थे और ना ही WFI उन्हें अनुबंध के पैसे दे रहा था.

लिहाज़ा पहलवानों के अंदर धीरे-धीरे आक्रोश भरता चला गया.

बुरा बर्ताव, बुनियादी सुविधाओं की कमी

कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह की छवि एक बाहुबली नेता की है.

अब कई खिलाड़ी उन पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगा रहे हैं. आरोप ये है कि जब भी ट्रायल्स का आयोजन होता है, तो उसका दिन और समय अक्सर उनके हिसाब से तय होता है.

एक आरोप ये भी है कि नेशनल चैंपियनशिप के लिए जब खिलाड़ी जुटते हैं, तो वहाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी होती है.

ट्रेनिंग एरिया के नाम पर केवल एक टेंटनुमा जगह पर मैट डलवा दिए जाते हैं. हाल ही में एक चैंपियनशिप में बारिश होने पर इतना भी इंतज़ाम नहीं था कि खिलाड़ी साफ़ जगह पर बैठ सकें.

चारों तरफ कीचड़ बिखरा था. कभी भी कुश्ती रोक कर आने वाले अतिथियों को फ़ाइट एरीना में ले जाया जाता रहा है.

पिछले साल दिसंबर में बृज भूषण शरण सिंह ने एक जूनियर पहलवान को सबके सामने थप्पड़ मार दिया था.

खिलाड़ियों का ये भी आरोप है कि इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए विदेश जाना हो, तो अंतिम समय तक टिकट और वीज़ा के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी खिलाड़ियों को नहीं दी जाती.

क्या कुश्ती महासंघ में सब कुछ बुरा है?

इन सभी गंभीर आरोपों के बावजूद ये भी कहा जाता है कि भारतीय कुश्ती महासंघ ने कई आवश्यक क़दम भी उठाए हैं.

टाटा मोटर्स जैसे बड़े कॉरपोरेट हाउस के साथ साझेदारी इसका एक उदाहरण है.

उत्तर प्रदेश ने कुश्ती को अडॉप्ट करने का जो निर्णय लिया था, उसमें भी संघ के अध्यक्ष के रूप में बृज भूषण शरण सिंह की भूमिका मानी जाती है.

हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार ने घोषणा के बाद अब तक कुछ ख़ास नहीं किया.

कुश्ती के खेल को भारत के अलग-अलग राज्यों में ले जाने के लिए एक नियम लागू किया गया. इसके तहत नेशनल चैंपियनशिप में एक राज्य केवल एक ही टीम भेज सकेगा.

इससे हरियाणा जैसे राज्य को, जिनका कुश्ती में दबदबा है, काफ़ी चोट पहुँची.

हरियाणा के जो पहलवान नेशनल चैंपियनशिप में डॉमिनेट करते थे, उनके खिलाड़ियों की शिरकत अब कम हो गई.

इस कारण हरियाणा की कुश्ती लॉबी कुश्ती महासंघ के ख़िलाफ़ हो गई. हरियाणा की स्टेट एसोसिएशन की मान्यता भी ख़त्म करके अब एक नई एसोसिएशन बना दी गई, जिससे काफ़ी लोग बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ हो गए.

WFI ने नामी खिलाड़ियों को नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लेने को कहा, लेकिन चोटी के खिलाड़ी बार-बार वज़न कम करने के हक़ में नहीं थे.

WFI ने अपनी तरफ़ से ये सही फ़ैसला ही लिया था, ताकि सभी खिलाड़ियों को बराबरी का मौक़ा मिले. लेकिन बड़े खिलाड़ी इससे ख़ुश नहीं थे.

साथ ही कुश्ती महासंघ ने उभरते खिलाड़ियों को पूरा मौक़ा दिया है.

अगर ऐसा न होता तो सोनम मालिक कभी टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफ़ाई नहीं कर पातीं.

उन्हें WFI ने जूनियर पहलवान के होने के बावजूद ट्रायल्स में मौक़ा दिया और सोनम ने साक्षी मालिक जैसी बड़ी खिलाड़ी को लगातार चार बार मात देकर भारतीय टीम में अपनी जगह बनाई.

अंशु मलिक को भी कुश्ती संघ ने आगे आने का मौक़ा दिया, उनकी तरक्की रोकी नहीं गई.

यौन शोषण के गंभीर आरोप

बृज भूषण शरण सिंह के काम के तरीक़े को लेकर तो सवाल उठ ही रहे हैं, खिलाड़ियों ने यौन शोषण के गंभीर आरोप भी लगाए हैं.

ग़ौरतलब है कि साक्षी मालिक WFI की उस समिति की सदस्या हैं, जो यौन शोषण जैसे मुद्दों को देखती है.

इस समिति के पाँच सदस्य हैं.

विनेश फोगट ने फ़िलहाल उन महिला पहलवानों के नाम नहीं बताए हैं, जिनका कथित तौर पर यौन शोषण हुआ है.

खेल मंत्रालय ने इस मामले में भारतीय कुश्ती महासंघ से जवाब मांगा है. खिलाड़ियों ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से भी मुलाक़ात की है.

दूसरी ओर बृज भूषण शरण सिंह ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है. उन्होंने उल्टे खिलाड़ियों पर ही सवाल उठाए हैं.

उनका कहना है कि एसोसिएशन में अपने पसंद के लोगों को जगह नहीं मिलने से हरियाणा के खिलाड़ी नाराज़ हैं.

अब देखने वाली बात होगी कि ये मामला कहाँ तक जाता है और क्या खिलाड़ी जो मुद्दे उठा रहे हैं, उनका कोई समाधान निकलता है या नहीं.

(लेखक समाचार एजेंसी पीटीआई के लिए काम करते हैं)

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