मीराबाई चानू ने कॉमनवेल्थ गेम्स की वेटलिफ्टिंग स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर रचा इतिहास

मीराबाई चानू ने 49 किलोग्राम भार वर्ग में वजन उठाकर कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीत लिया है. चानू ने स्नैच राउंड के बाद 12 किलो की भारी-भरकम बढ़त बना ली थी.

चानू इस बार शुरू से ही विश्वास से भरी नजर आ रही थीं. उन्होंने कुल 201 किलो वजन उठाया. स्नैच में उन्होंने 88 किलो वजन उठाया. जबकि क्लीन और जर्क में 113 किलो वजन उठाया. उन्होंने इस कैटेगरी में रिकार्ड बनाया है.

अपनी पहली कोशिश में ही उन्होंने 84 किलो वेट उठाया था. दूसरी कोशिश में उन्होंने 88 किलो वेट उठा कर पर्सनल बेस्ट की बराबरी कर ली थी.

वो शुरू से ही गोल्ड मेडल पोजीशन पर बनी हुई थीं. ये इस कैटेगरी में स्नैच का गेम्स रिकॉर्ड भी है. तीसरे प्रयास में उन्होंने 90 किलो उठाने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो सकीं.

मीराबाई टोक्यो ओलिंपिक की सिल्वर मेडलिस्ट हैं. यहां 49 किलो वेट कैटेगरी में यहां उनसे गोल्ड की उम्मीद थी.

इससे पहले शनिवार को भारत के मेडल का खाता खुल गया. वेटलिफ्टर संकेत महादेव ने शनिवार को मेंस 55 किलो वेट कैटेगरी में देश को सिल्वर मेडल दिलाया.

प्रधानमंत्री ने दी बधाई

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर के ज़रिए मीरा बाई चानू को पदक जीतने पर बधाई दी है.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "असाधारण मीराबाई चानू ने एक बार फिर से भारत को गर्वित किया है. हर भारतीय उनके बर्मिंघम खेलों में नया रिकॉर्ड बनाने और स्वर्ण पदक जीतने से हर्षित है. उनकी कामयाबी कई भारतीयों के लिए प्रेणा हैं, ख़ासकर उभरते हुए खिलाड़ियों के लिए."

गृहमंत्री अमित शाह ने भी चानू को बधाई देते हुए ट्वीट किया है.

उन्होंने लिखा, "स्वर्ण पदक. भारतीय भारोत्तोलक भारतीय झंडे को ऊंचा किए हुए हैं. शानदार मीराबाई चानू, आपने उल्लेखनीय धैर्य और तप दिखाया है. आपकी उपलब्धि पर देश को गर्व है."

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के अलावा केंद्र सरकार के कई अन्य मंत्रियों ने भी चानू को बधाई देते हुए ट्वीट किए हैं.

वर्ल्ड वेटलिफ़्टिंग चैंपियनशिप में जीता था गोल्ड

48 किलोग्राम के अपने वज़न से क़रीब चार गुना ज़्यादा वज़न यानी 194 किलोग्राम उठाकर मीरा ने 2017 में वर्ल्ड वेटलिफ़्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था.

पिछले 22 साल में ऐसा करने वाली मीराबाई पहली भारतीय महिला बन गई थीं.

48 किलो का वज़न बनाए रखने के लिए मीरा ने उस दिन खाना भी नहीं खाया था. इस दिन की तैयारी के लिए मीराबाई पिछले साल अपनी सगी बहन की शादी तक में नहीं गई थीं.

भारत के लिए पदक जीतने वाली मीरा की आँखों से बहते आँसू उस दर्द के गवाह थे जो वो 2016 से झेल रही थीं.

11 साल में वो अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन. जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में चैंपियन बनने का सपना जागा था, अपनी उसी आइडल के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने 2016 में तोड़ा- 192 किलोग्राम वज़न उठाकर.

2016 रियो ओलंपिक में बेहद ख़राब प्रदर्शन से लेकर टोक्यो ओलंपिक में मेडल तक चानू का सफ़र ज़बरदस्त रहा.

'डिड नॉट फ़िनिश'

जब पिछली बार वो रियो ओलंपिक गई थीं तो कहानी एकदम अलग थी. ओलपिंक जैसे मुकाबले में अगर आप दूसरे खिलाड़ियों से पिछड़ जाएँ तो एक बात है, लेकिन अगर आप अपना खेल पूरा ही नहीं कर पाएँ तो ये किसी भी खिलाड़ी के मनोबल को तोड़ने वाली घटना हो सकती है.

2016 में भारत की वेटलिफ़्टर मीराबाई चानू के लिए ऐसा ही हुआ था. ओलंपिक में अपने वर्ग में मीरा सिर्फ़ दूसरी खिलाड़ी थीं जिनके नाम के आगे ओलंपिक में लिखा गया था 'डिड नॉट फ़िनिश'.

जो भार मीरा रोज़ाना प्रैक्टिस में आसानी से उठा लिया करतीं, उस दिन ओलंपिक में जैसे उनके हाथ बर्फ़ की तरह जम गए थे. उस समय भारत में रात थीं, तो बहुत कम भारतीयों ने वो नज़ारा देखा.

सुबह उठ जब भारत के खेल प्रेमियों ने ख़बरें पढ़ीं तो मीराबाई रातों रात भारतीय प्रशंसकों की नज़र में विलेन बन गईं. नौबत यहाँ तक आई कि 2016 के बाद वो डिप्रेशन में चली गईं और उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लेने पड़े.

इस असफलता के बाद एक बार तो मीरा ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ज़बरदस्त वापसी की.

मीराबाई चानू ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोवर्ग के भारोत्तोलन में गोल्ड मेडल जीता था और अब ओलंपिक मेडल.

बाँस से ही की वेटलिफ्टिंग की प्रैक्टिस

8 अगस्त 1994 को जन्मी और मणिपुर के एक छोटे से गाँव में पली बढ़ी मीराबाई बचपन से ही काफ़ी हुनरमंद थीं. बिना ख़ास सुविधाओं वाला उनका गांव इंफ़ाल से कोई 200 किलोमीटर दूर था.

उन दिनों मणिपुर की ही महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं.

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बस वही दृश्य छोटी मीरा के ज़हन में बस गया और छह भाई-बहनों में सबसे छोटी मीराबाई ने वेटलिफ़्टर बनने की ठान ली.

मीरा की ज़िद के आगे माँ-बाप को भी हार माननी पड़ी. 2007 में जब प्रैक्टिस शुरु की तो पहले-पहल उनके पास लोहे का बार नहीं था तो वो बाँस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं.

गाँव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं. डाइट में रोज़ाना दूध और चिकन चाहिए था, लेकिन एक आम परिवार की मीरा के लिए वो मुमकिन न था. उन्होंने इसे भी आड़े नहीं आने दिया.

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