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BBC ISWOTY- मेहुली घोषः गुब्बारे फोड़ने वाली लड़की जो मेडल जीत रही हैं
मेहुली घोष जब पश्चिम बंगाल के नादिया ज़िले में पल-पढ़ रहीं थी तब उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो पेशेवर निशानेबाज़ बनेंगी.
वो हमेशा से ही बंदूक और गोलियां पसंद थीं और वो मेले में गुब्बारे फोड़ने की दुकान को देखकर उत्साहित हो जाती थीं. उन दिनों चर्चित टीवी सीरियल सीआईडी से भी वो प्रभावित थीं.
लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो अपने देश का दुनियाभर में प्रतिनिधित्व करेंगी और किशोरावस्था में ही इंटरनेशनल मेडल जीत लेंगी.
घोष को पहली लोकप्रियता तब मिली जब वो सिर्फ़ 16 साल की थीं. 2016 में वो भारत की जूनियर टीम के लिए चुनी गईं थीं और पुणे में हुई नैशनल शूटिंग चैंपियनशिप में 9 मेडल जीतकर उन्होंने सबको चौंका दिया था.
अगले ही साल जापान में हुई एशियन एयरगन चैंपियनशिप में उन्होंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय गोल्ड मेडल जीता.
दुर्घटना से शुरुआत
घोष की पहली प्रेरणा भारत के निशानेबाज़ अभिनव बिंद्रा थे. उन्होंने बिंद्रा को 2008 बीजिंग ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतते हुए देखा था. अपने छोटे से टीवी पर बिंद्रा को देखकर घोष ऐसी ही कामयाबी हासिल करने के लिए प्रेरित हुई थीं.
उनके परिवार के पास संसाधन सीमित थे. उनके पिता दिहाड़ी मज़दूर थे और मां गृहिणी. परिवार के आर्थिक हालात को देखते हुए उनके लिए पेशेवर प्रशिक्षण हासिल करना लगभग नामुमकिन था.
उन्हें अपने परिवार को यह समझाने में एक साल लग गया कि उन्हें पेशेवर ट्रेनिंग की ज़रूरत है. आख़िरकार उनके घरवाले उनकी ट्रेनिंग पर पैसा ख़र्च करने के लिए तैयार हो गए. परिवार के राज़ी हो जाने के बाद घोष ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
लेकिन एक और चुनौती थी जो उनका इंतज़ार कर रही थी.
साल 2014 उन्होंने दुर्घटानवश एक व्यक्ति को पेलेट मार दिए और वो घायल हो गया. नतीजतन उन पर अस्थाई प्रतिबंध लग गया और वो डिप्रेशन में चली गईं.
इस दौरान उनके परिजन उनके साथ खड़े रहे और उन्हें चर्चित निशानेबाज़ और अर्जुन अवॉर्ड विजेता जॉयदीप करमाकर के पास लेकर गए.
ये उनकी ज़िंदगी का टर्निंग प्वाइंट बन गया.
गोल्ड मेडल जीतना
इस वक़्त तक घोष के पास कोई पेशेवर कोच नही था. करमाकर की अकेडमी में मिले प्रशिक्षण ने उनके विश्वास को बहाल कर दिया और वो फिर से मैदान में आ गईं.
लेकिन अकेडमी में ट्रेनिंग हासिल करने के लिए घोष को रोज़ाना चार घंटे यात्रा करनी होती थी. इसका मतलब ये था कि उन्हें घर पहुंचते-पहुंचते आधी रात हो जाती थी.
लेकिन आख़िरकार उनकी मेहनत रंग लाई और 2017 में उन्होंने जापान में हुई एशियन एयर गन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. इसके बाद कामयाबी मिलती चली गई. अगले साल उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में सिल्वर और गोल्ड मेडल जीते.
2018 में उन्होंने यूथ ओलंपिक में सिल्वर और फिर कॉमनवेल्थ खेलों में सिल्वर मेडल जीते. उसी साल वर्ल्ड कप में उन्होंने रजत पदक भी जीता. दक्षिण एशियाई खेलों में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता.
अब वो ओलंपिक और वर्ल्ड कप में गोल्ड मेडल पर निशाना लगाना चाहती हैं.
घोष कहती हैं कि भारत में चर्चित खेलों के खिलाड़ियों की कामयाबी का तो खूब जश्न मनाया जाता है लेकिन कम चर्चित खेलों में कामयाब होने वाले खिलाड़ी नज़रअंदाज़ ही रहते हैं. वो उम्मीद करती हैं कि चीज़ें जल्द ही बदलेंगी क्योंकि इन खिलाड़ियों की उपलब्धियां किसी से कम नहीं है.
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