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ऐसे जीता था भारत ने 1983 का वर्ल्ड कप
- Author, रेहान फ़ज़ल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
जब 25 जून, 1983 को लॉर्ड्स के मैदान के बीचोबीच कपिलदेव निखंज और मदनलाल के बीच मंत्रणा हुई, तो उसका असर न सिर्फ़ विश्व कप के फ़ाइनल के परिणाम पर पड़ा, बल्कि उसने हमेशा के लिए भारतीय क्रिकेट की सूरत बदल दी.
विव रिचर्ड्स ताबड़तोड़ चौके लगाते हुए आनन फ़ानन में 33 के स्कोर पर पहुंच गए. वो मदनलाल की गेंदों पर तीन चौके लगा चुके थे.
इसलिए कपिलदेव किसी और को ओवर देने के बारे में सोच रहे थे. तभी मदन लाल ने उनसे एक ओवर और करने देने के लिए कहा.
मदनलाल याद करते हैं, "ये बात सही है कि मैंने कपिल देव से गेंद ली थी. जो लोग कहते हैं कि मैंने गेंद छीनी थी, ग़लत है. मुझे तीन ओवर में 20-21 रन पड़ गए थे."
"मैंने कपिल से कहा कि मुझे एक ओवर और करने दें. मैंने सोचा कि मैं रिचर्ड्स को एक 'शॉर्ट' गेंद करूँगा. मैंने पहली गेंद से कुछ तेज़ गेंद की जिसने पिच को तेज़ी से 'हिट' किया."
"उन्होंने गेंद को हुक करते समय 'मिसटाइम' किया. कपिल देव ने 20-25 गज़ पीछे भाग कर बिलकुल अपनी उँगलियों के टिप पर उस गेंद को कैच किया."
ऑक्सफ़र्ड स्ट्रीट में शॉपिंग की मंशा
25 जून 1983 को शनिवार था. लॉर्ड्स के मैदान पर बादल छाए हुए थे. जैसे ही क्लाइव लॉयड और कपिल देव मैदान पर टॉस करने आए, सूरज ने बादल को पीछे ढकेला और दर्शकों ने ख़ुशी से तालियाँ बजाईं.
भारतीय क्रिकेट के इतिहास पर हाल ही में छपी किताब 'द नाइन वेव्स- द एक्सट्राऑरडिनरी स्टोरी ऑफ़ इंडियन क्रिकेट' लिखने वाले मिहिर बोस याद करते हैं, "जब हम लॉर्ड्स के अंदर जा रहे थे तो 'बुकीज़' भारत को 50 टू 1 और 100 टू 1 का 'ऑड' दे रहे थे."
"दो भारतीय भी हाथ में एक बैनर लिए हुए थे जिसमें भारत को 'फ़ेवरेट' बताया जा रहा था मज़ाक में. लॉर्ड्स के अंदर वेस्ट इंडीज़ के बहुत से समर्थक थे. भारत के समर्थक इतने नहीं थे."
"वो पहले से ही ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे कि वो तीसरी बार विश्व कप जीतेंगे. प्रेस बॉक्स में भी इक्का-दुक्का भारतीय पत्रकार थे. मैं तो 'संडे टाइम्स' के लिए काम कर रहा था."
"अंग्रेज़ और ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार कह रहे थे कि ये ख़राब फ़ाइनल होने जा रहा है. इंग्लैंड या ऑस्ट्रेलिया फ़ाइनल में होते तो कुछ मुक़ाबला भी होता."
"जब भारतीय खेलने उतरे तो उन्होंने बहुत अच्छी बैटिंग नहीं की. जब वेस्ट इंडीज़ ने बैटिंग शुरू की तो संदीप पाटिल ने गावस्कर से मराठी में कहा कि अच्छा है कि मैच ज़ल्दी ख़त्म हो जाएगा और हम लोगों को 'ऑक्सफ़र्ड स्ट्रीट' में 'शॉपिंग' करने का वक्त मिल जाएगा. जब वेस्ट इंडीज़ की बैटिंग शुरू हुई तो मुझे अंग्रेज़ और ऑस्ट्रेलियाई पत्रकारों की बातें सुनकर इतना बुरा लगा कि मैंने प्रेस बॉक्स छोड़ दिया और लॉर्ड्स के मैदान में ये सोच कर घूमने लगा कि मेरा मन थोड़ा अच्छा हो जाएगा."
श्रीकांत की धुनाई
उस दिन कपिल टॉस हारे. वेस्टइंडीज ने भारत से पहले बैटिंग करने के लिए कहा. एंडी राबर्ट्स ने 'बिग बर्ड' जॉएल गार्नर के साथ गेंदबाज़ी की शुरुआत की.
रॉबर्ट्स ने भारत को पहला झटका दिया जब दो के स्कोर पर दूजों ने गावस्कर को कैच कर लिया. गावस्कर की जगह आए मोहिंदर अमरनाथ ने एक छोर संभाल लिया.
दूसरे छोर पर श्रीकांत तूफ़ानी मूड में थे. उन्होंने पहले गार्नर को 4 रनों के लिए 'स्लैश' किया, फिर रॉबर्ट्स की गेंद को 'मिड-विकेट' पर 'बाउंड्री' के बाहर मारा और थोड़ी देर बाद उन्हें 6 रन के लिए 'हुक' कर दिया.
मैंने श्रीकांत से पूछा कि जब आप बैटिंग करने गए थे तो क्या सोच कर गए थे? श्रीकांत का जवाब था, "मेरी सोच यही थी कि वहाँ जा कर अपना स्वाभाविक खेल खेलो. अगर मार सकते हो तो मारो वर्ना बाहर आओ."
वेस्ट इंडीज़ की ख़तरनाक़ गेंदबाज़ी
श्रीकांत बैटिंग करते हुए काफ़ी 'रिस्क' ले रहे थे और उधर लॉर्ड्स की मशहूर बालकनी पर बैठे हुए भारतीय खिलाड़ियों का दिल मुँह की तरफ़ आ रहा था.
लॉयड ने मार्शल को लगाया और आते ही उन्होंने श्रीकांत को पवेलियन भेजा, लेकिन उनके बनाए गए 38 रन दोनों टीमों का सर्वाधिक स्कोर था.
मोहिंदर और यशपाल शर्मा ने बहुत धीमे-धीमे 31 रन जोड़े. लेकिन वेस्ट इंडीज़ के गेंदबाज़ एक 'कंप्यूटराइज़्ड रॉकेट' की तरह बार-बार आक्रमण करते रहे.
रॉबर्ट्स जाते तो मार्शल आ जाते. मार्शल जाते तो होल्डिंग गेंदबाज़ी संभाल लेते. यशपाल और मोहिंदर दोनों जल्दी जल्दी आउट हुए.
मार्शल का बलविंदर को बाउंसर
भारत के 6 विकेट मात्र 11 रनों पर गिर गए. लॉर्ड्स में मैच देख रहे भारतीय मूल के दर्शकों के बीच सन्नाटा छाया हुआ था.
उधर, भारत में क्रिकेट प्रेमी झल्ला कर अपने रेडियो और टीवी सेट बंद कर रहे थे. लेकिन भारत के आख़िरी चार विकटों ने करो या मरो का भावना को चरितार्थ करते हुए 72 रन जोड़े.
11 नंबर पर खेलने आए बलविंदर संधु ने बहुत बहादुरी का परिचय दिया. मार्शल ने उन्हें विचलित करने के लिए एक बाउंसर फेंका जो उनके हेलमेट से टकराया.
सैयद किरमानी याद करते हैं, "जब बलविंदर और मेरी साझेदारी शुरू हुई तो मार्शल ने जो पहली गेंद उसे की, वो बाउंसर थी. वो गेंद सीधे उनके हेलमेट पर लगी थी."
"उस ज़माने में मार्शल दुनिया के सबसे तेज़ गेंदबाज़ थे. वो गेंद जैसे ही बल्लू (बलविंदर) के हेलमेट में लगी उन्हें दिन में तारे नज़र आ गए."
"मैं उनकी तरफ़ भागा ये पूछने के लिए कि तुम ठीक तो हो. मैंने देखा कि बल्लू हेलमेट को अपने हाथ से रगड़ रहे थे. मैंने पूछा तुम हेलमेट को क्यों रगड़ रहे हो. क्या उसे चोट लगी है?"
सैयद किरमानी आगे बताते हैं, "उसी समय अंपायर डिकी बर्ड ने मार्शल को 'टेल-एंडर' पर बाउंसर फेंकने के लिए बहुत ज़ोर से झाड़ा. उन्होंने मार्शल से ये भी कहा कि तुम बल्लू से माफ़ी मांगो."
"मार्शल उनके पास आकर बोले, 'मैन आई डिड नॉट मीन टू हर्ट यू. आई एम सॉरी.' (मेरा मतलब तुम्हें घायल करने का नहीं था. मुझे माफ़ कर दो) बल्लू बोले, 'मैल्कम डू यू थिंक दैट माई ब्रेन इज़ इन माई हेड. नो इट इज़ इन माई नी.' (मैल्कम क्या तुम समझते हो कि मेरा दिमाग मेरे सिर में है? नहीं, ये मेरे घुटने में है.) मैल्कम ये सुन कर हंस पड़े."
183 पर ख़त्म हुई भारत की पारी
भारतीय टीम 183 रन बनाकर आउट हुई और वेस्ट इंडीज़ की टीम इस तरह पवेलियन की तरफ़ भागी, मानो विश्व कप उसकी झोली में हो.
मैंने सैयद किरमानी से पूछा कि जब आप फ़ील्डिंग करने उतरे तो आप क्या सोच रहे थे कि मैच किस तरफ़ जाएगा?
किरमानी ने कहा, "हम तो यही समझे कि ये तो हमें ओपनिंग स्टैंड में ही खा जाएंगे और विवियन रिचर्ड्स की तो बारी ही नहीं आएगी. लेकिन हमने ये भी सोचा कि हम अपना हौसला हारेंगे नहीं और सब के सब पॉज़िटिव माइंड के साथ खेलेंगे."
ग्रीनिज का ऑफ़ स्टंप उड़ा
वेस्ट इंडीज़ की ओर से हेंस और ग्रीनिज बैटिंग करने के लिए उतरे.
चौथे ओवर में बलविंदर संधू की एक गेंद पर ग्रीनिज ने ये सोच कर अपना बल्ला ऊपर उठा लिया कि गेंद बाहर जा रही है.
गेंद सहसा अंदर आई और ग्रीनिज का ऑफ़ स्टंप ले उड़ी. रिचर्ड के आउट होने की कहानी आप पढ़ ही चुके हैं.
अब भारतीय खिलाड़ियों के कदमों में तेज़ी आ गई थी. लॉयड ने बिनी को 'ड्राइव' किया और 'शॉर्ट मिड विकेट' पर खड़े कपिल देव के हाथों में करारा शॉट आ कर चिपक गया.
मोहिंदर ने लिया आख़िरी विकेट
गोम्स और बैकस के आउट हो जाने के बाद दूजों और मार्शल जम गए और उन्होंने सातवें विकेट के लिए 43 रन जोड़े.
मोहिंदर ने दूजों को आउट किया. वेस्ट इंडीज़ की अंतिम जोड़ी गार्नर और होल्डिंग स्कोर को 140 तक ले गई.
लेकिन मोहिंदर ने तय किया कि अब बहुत हो चुका. लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर चारों तरफ़ दर्शक ही दर्शक थे.
मैंने कीर्ति आज़ाद से कहा कि वो दृश्य याद कीजिए जब मोहिंदर ने होल्डिंग को आउट किया था.
कीर्ति ने कहा, "आप मुझसे विश्व कप की बात कर रहे हैं और वो दृश्य बिल्कुल मेरे सामने आ गया है. मेरे शरीर में सिहरन दौड़ रही है और मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं."
"आप कोई भी खेल खेलते हैं, उसके शिखर पर पहुंचना चाहते हैं. वो एक ऐसा अनुभव था जिसे शायद मैं कभी नहीं भुला पाउंगा."
शशि कपूर लॉर्ड्स पहुंचे
जब ये जश्न मन रहा था, तभी मशहूर अभिनेता शशि कपूर वहाँ पहुंच गए.
कपिलदेव अपनी आत्मकथा 'स्ट्रेट फ़्रॉम द हार्ट' में लिखते हैं, "जब हम 'ड्रेसिंग रूम' से बाहर निकले तो वहाँ 'साउथ हॉल' से आए कुछ पंजाबी नाचने लगे."
"फिर किसी ने आ कर मुझसे कहा कि शशि कपूर बाहर खड़े हैं और अंदर आना चाहते हैं. मैं टीम के दो सदस्यों के साथ उन्हें लेने बाहर गया."
"उस दिन हमने लॉर्ड्स के सारे क़ायदे-क़ानून तोड़ डाले. लॉर्ड्स के मुख्य स्वागत कक्ष में कोई भी बिना कोट टाई पहने घुस नहीं सकता."
"हमने शशि कपूर के लिए टाई का इंतज़ाम तो कर लिया, लेकिन वो इतने मोटे हो चुके थे कि हम में से किसी का कोट उन्हें 'फ़िट' नहीं आया."
"लेकिन शशि कपूर 'स्मार्ट' शख़्स थे. उन्होंने एक 'स्टार' की तरह कोट अपने कंधे पर डाला और टाई बाँधे हुए अंदर घुस आए. फिर उन्होंने हम सब के साथ जश्न मनाया."
कपिलदेव और मदनलाल की पत्नियाँ नहीं थीं लॉर्ड्स पर
दिलचस्प बात ये है कि जब भारत को जीत मिली तो कपिलदेव और मदनलाल की पत्नियाँ लॉर्ड्स के मैदान पर मौजूद नहीं थीं.
कपिल देव लिखते हैं, "जैसे ही भारतीय खिलाड़ी आउट होने लगे, दर्शकों के बीच बैठी मेरी पत्नी रोमी ने मदन लाल की पत्नी अनु से कहा, 'मुझसे यहाँ नहीं बैठा जा रहा. मैं वापस होटल जा रही हूँ.' थोड़ी देर में अनु भी होटल पहुंच गई. जब उन्हें पास ही स्टेडियम से शोर की आवाज़ सुनाई दी तो उन्होंने टीवी खोल दिया."
"टीवी खोलते ही उन्होंने मुझे रिचर्ड्स का कैच लेते हुए देखा. दोनों औरतें ख़ुशी से पलंग पर ही उछलने लगीं. इतना शोर हुआ कि नीचे से होटल के कर्मचारी ऊपर आ गए. इन दोनों ने किसी तरह से उन लोगों को विदा किया. उधर जीत के बाद मैंने अंदाज़े से उस तरफ़ शैंपेन 'स्प्रे' करनी शुरू कर दी, जहाँ मैं उन दोनों के होने की उम्मीद कर रहा था."
"तभी मदन ने मुझसे फुसफुसा कर कहा, 'मुझे अनु और रोमी कहीं नहीं दिखाई दे रहीं.' ये दोनों महिलाएं चाह कर भी दोबारा स्टेडियम में नहीं आ पाईं. बाद में जब हम मिले तो उन्हें मुझे ये बताने की हिम्मत नहीं पड़ी कि जब भारत जीता तो वो लॉर्ड्स के मैदान पर मौजूद ही नहीं थीं."
वेस्ट इंडीज़ के 'ड्रेसिंग रूम' से आई थी शैंपेन
लॉर्ड्स की बालकनी पर कपिल ने शैंपेन की बोतल खोली और नीचे नाच रहे दर्थकों को उससे सराबोर कर दिया.
मज़े की बात ये है कि कपिल ये शेंपेन की बोतलें वेस्ट इंडीज़ के 'ड्रेंसिंग रूम' से लाए थे, क्योंकि भारतीय खिलाड़ियों ने तो जीत की उम्मीद ही नहीं की थी, इसलिए उनके 'ड्रेसिंग रूम' में एक भी शैंपेन की बोतल का इंतज़ाम नहीं था.
मिहिर बोस बताते हैं, "कपिल देव वेस्ट इंडियन कैप्टेन से बात करने उनके 'ड्रेसिंग रूम' गए. वहाँ उन्होंने देखा कि वेस्ट इंडियन खिलाड़ी बहुत दुखी थे. वहाँ उन्होंने कुछ शैंपेन बोतलें देखीं. उन्होंने लॉयड से पूछा क्या मैं इन्हें ले सकता हूँ? लॉयड ने कहा तुम इन्हें ले जाओ. इस तरह भारतीय खिलाड़ियों ने न सिर्फ़ वेस्ट इंडीज़ को हराया, बल्कि उनकी शैंपेन भी पी."
भारतीय ड्रेसिंग रूम में 11 दूल्हे
मैंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष राज सिंह डूंगरपुर से पूछा था कि उस समय भारतीय 'ड्रेसिंग रूम' में कैसा माहौल था?
उन्होंने कहा, "ऐसा लग रहा था कि कोई शादी हो रही हो. लेकिन शादी में एक दूल्हा होता है लेकिन उस दिन भारतीय 'ड्रेसिंग रूम' में 11 दूल्हे थे."
"मैं ये कभी नहीं भूल सकता कि भारतीय टीम को बधाई देने उसके 'ड्रेसिंग रूम' में पूरी वेस्ट इंडियन टीम आई सिवाए उनके चार तेज़ गेंदबाज़ों के. उन्हें दुख इस बात का था कि उन्होंने तो अपना काम कर दिया था लेकिन धुरंधर बल्लेबाज़ों के होते हुए भी वेस्ट इंडीज़ की टीम मात्र 184 रन बनाने में नाकामयाब रही."
इंदिरा गाँधी की टीम से मुलाकात
जब भारतीय टीम मुंबई पहुंची तो मूसलाधार बारिश के बीच पचास हज़ार लोगों ने वानखेड़े स्टेडियम में उनका स्वागत किया.
दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 'हैदराबाद हाउस' में टीम का स्वागत किया. कपिलदेव अपनी आत्मकथा 'स्ट्रेट फ़्रॉम द हार्ट' में लिखते हैं, "इंदिरा गाँधी से मिलने से पहले गावस्कर ने श्रीकांत से कहा, देखो तुम्हें आंख मारने और नाक हिलाने की बुरी आदत है."
"इंदिरा जी के सामने अपने पर क़ाबू रखना और ढंग से पेश आना. श्रीकांत ने कहा, 'ठीक है.' जब इंदिरा गावस्कर से बात कर रही थीं तो श्रीकांत इस बात की पूरी कोशिश कर रहे थे कि उनकी आँख और नाक कोई हरकत न करे. तभी मैंने देखा कि इंदिरा गांधी को भी श्रीकांत की तरह आँख झपकने की आदत है."
"जब वो श्रीकांत के सामने पहुंची तो उन्होंने अपनी आँखें झपकाईं. तब तक श्रीकाँत अपने ऊपर सारा नियंत्रण खो चुके थे. उनकी भी आँख झपकी और उन्होंने अपनी नाक भी चढ़ाई. हम सब लोग ये सोच कर परेशान हो गए कि कहीं इंदिरा गाँधी ये न समझ लें कि श्रीकांत उनकी नकल कर रहे हैं."
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