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वर्ल्ड कप 2019: 11 टूर्नामेंटों के 11 वो रोमांचक मुक़ाबले जिन्हें भुलाना मुश्किल
- Author, अभिजीत श्रीवास्तव
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
क्रिकेट के महाकुंभ आईसीसी विश्व कप 2019 की शुरुआत 30 मई से हो रही है. टूर्नामेंट का ये 12वां संस्करण है.
1975 से शुरू हुए इस टूर्नामेंट में अब तक कई मुक़ाबले बेहद रोमांचक खेले गए लेकिन हम आज आपके लिए प्रत्येक विश्व कप के दौरान खेले गए कम से कम उस एक मैच के रोमांच को लेकर आए हैं जिसकी यादें आज भी क्रिकेट के चाहने वालों के ज़हन में ताजा हैं.
1975: कछुए से भी धीमी पारी और तब की सबसे बड़ी हार
पहला विश्व कप आठ टीमों वेस्ट इंडीज, भारत, पाकिस्तान, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, श्रीलंका और ईस्ट अफ़्रीका के बीच खेला गया.
टूर्नामेंट की विजेता वेस्ट इंडीज़ टीम बनी. लेकिन 44 साल पहले 7 जून को शुरू हुए इस चार सालाना टूर्नामेंट के पहले मुक़ाबले को आज भी सुनील गावस्कर की धीमी बल्लेबाज़ी के लिए याद किया जाता है.
उस मैच में इंग्लैंड ने पहले खेलते हुए 60 ओवरों में 4 विकेट पर 334 रन बनाए. लेकिन जबाव में भारतीय टीम महज 132 रन ही बना सकी.
मजेदार तो यह था कि भारत के केवल तीन विकेट ही गिरे और सलामी बल्लेबाज़ गावस्कर अंत तक पिच पर डटे रहे. लेकिन इस मैच को गावस्कर की किसी बड़ी उपलब्धि के लिए नहीं बल्कि उनकी बेहद धीमी बल्लेबाज़ी के लिए याद किया जाता है.
गावस्कर ने इस दौरान 174 गेंदों का सामना किया, यानी 60 ओवरों के लगभग आधे और उनके बल्ले से रन निकले केवल 36. भारत 202 रनों से हार गया. रन के अंतर से यह विश्व कप की सबसे बड़ी हार का रिकॉर्ड था जो 28 साल बाद टूटा.
इमरान ख़ान ने अपनी किताब में इस मैच का ज़िक्र करते हुए लिखा कि गावस्कर की पारी यह दर्शाती है कि टेस्ट मैचों से वनडे मैच कितना अलग है.
दरअसल, 1971 में एकदिवसीय क्रिकेट की शुरुआत से तब तक केवल 18 वनडे मैच खेले गए थे. कई जानकारों ने टेस्ट मैचों के हिसाब से भी इसे बेहद धीमी पारी बताया.
1979: वेस्ट इंडीज का कहर, 12 रन पर आठ विकेट झटक फिर बने चैंपियन
दूसरे विश्व कप के फ़ाइनल में भारत, न्यूज़ीलैंड और पाकिस्तान को हराकर पहुंची चैंपियन वेस्ट इंडीज की टीम का मुक़ाबला ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, पाकिस्तान और न्यूज़ीलैंड को हराकर पहली बार फ़ाइनल में पहुंची इंग्लैंड से था.
टॉस जीत कर इंग्लिश कप्तान माइक ब्रेयरली का फील्डिंग लेने का फ़ैसला तब सही होता दिखा जब गॉर्डन ग्रीनिज, डेसमंड हेंस, एड्विन कालीचरण और कप्तान क्लाइव लॉयड 99 रन बनने तक पवेलियन लौट गए. लेकिन इसके बाद विवियन रिचर्ड्स ने अपने क्रिकेट करियर की एक बेहद नायाब पारी खेली.
वो एक छोर से जम गए और अंत तक आउट हुए बिना टीम के कुल 286 में से लगभग आधे 138 रन बनाए. रिचर्ड्स के अलावा कॉलिस किंग ने 86 रनों का योगदान दिया. वेस्ट इंडीज के तीन पुछल्ले बल्लेबाज़ एंडी रॉबर्ट्स, जोएल गार्नर और माइकल होल्डिंग शून्य पर आउट हुए.
जवाब में इंग्लैंड की टीम महज दो विकेट गंवा कर 183 रन बना चुकी थी. लेकिन इसके बाद इंग्लैंड की टीम पर जोएल गार्नर और कोलिन क्राफ्ट ऐसे कहर बन कर टूटे कि अगले 12 रन बनाने में आठ विकेट गिर गए और पूरी टीम 194 रन पर आउट हो गई.
इंग्लैंड के पांच बल्लेबाज़ों को इन दो गेंदबाज़ों ने खाता तक नहीं खोलने दिया. गार्नर ने पांच जबकि क्राफ्ट ने तीन विकेट लिए और वेस्ट इंडीज की टीम लगातार दूसरी बार चैंपियन बनी.
1983: भारत ने फ़ाइनल से पहले ही तोड़ दिया वेस्ट इंडीज पराक्रम
जब भी 1983 विश्व कप की बात होती है तो हमेशा यह कहा जाता है कि भारत ने फ़ाइनल में वेस्टइंडीज को हराया. उस फ़ाइनल की कहानी कई बार लिखी जा चुकी है कि कैसे कप्तान कपिल देव ने क़रीब 50 गज तक दौड़ते हुए रिचर्ड्स का बेशकीमती कैच पकड़ते हुए मैच का पासा पलटा और भारत को विश्व चैंपियन बनाया था.
इतना ही नहीं कपिल देव ने अपने 11 में से 4 ओवरों में कोई रन नहीं दिया था.
1983 फाइनल मैच में कोई भी बल्लेबाज़ अर्धशतक नहीं लगा सका था और सबसे बड़ी पारी के श्रीकांत (38 रन) ने खेली थी. भारतीय गेंदबाज़ी कितनी सधी हुई थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वेस्टइंडीज के 7 बल्लेबाज़ दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच सके थे.
लेकिन उस फ़ाइनल के हीरो केवल कपिल देव नहीं बल्कि मोहिंदर अमरनाथ थे. उन्होंने 26 रन बनाने के साथ-साथ 3 विकेट भी लिए थे.
यह उस वक्त की अविजित मानी जाने वाली वेस्ट इंडीज की टीम के लिए यह इतना बड़ा आघात था कि उनके कप्तान क्लाइव लॉयड ने वर्ल्ड कप हारने के बाद कप्तानी छोड़ दी थी.
लेकिन भारत ने इस जीत की इबारत 25 जून को फ़ाइनल से पहले ही 9 जून को वेस्ट इंडीज के ख़िलाफ़ ग्रुप मैच के दौरान तैयार कर ली थी. ये वो मुक़ाबला था जब दो बार की चैंपियन वेस्ट इंडीज की टीम पहली बार विश्व कप में कोई मैच हारी थी.
इस मैच भारत ने 262 रन बनाए थे और जवाब में पूरी वेस्ट इंडीज की टीम 228 रनों पर सिमट गई थी.
भारत के जीत की नींव रखी थी 89 रनों की बेशकीमती और मैच की एकमात्र अर्धशतकीय पारी खेलने वाले बल्लेबाज़ यशपाल शर्मा ने.
1987: पहली बार 1 रन से हुआ विश्व कप में फ़ैसला
अक्तूबर-नवंबर 1987 में खेले गये चौथे विश्व कप में मैच के दौरान फेंके जाने वाले ओवरों की संख्या 60 से घटाकर 50 कर दी गई.
पहली बार इंग्लैंड से बाहर निकलते हुए रिलायंस वर्ल्ड कप के नाम से खेले गये इस विश्व कप का भारत और पाकिस्तान ने संयुक्त रूप से आयोजन किया. इस टूर्नामेंट का तीसरा मैच भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया जो बेहद रोमांचक और दिल थाम कर देखने वाला मुक़ाबला था.
भारत के कप्तान कपिल देव ने टॉस जीतकर ऑस्ट्रेलिया को बल्लेबाज़ी के लिए उतारा लेकिन कंगारू टीम ने डेविड बून और ज्योफ़ मार्श की शतकीय साझेदारी के साथ शानदार शुरुआत की. मार्श एक छोर से जमे रहे और ऑस्ट्रेलिया ने 50 ओवरों में 6 विकेट के नुकसान पर 270 रन बना डाले.
इसके जवाब में भारत ने भी सधी हुई बल्लेबाज़ी की और एक वक्त के श्रीकांत के 70 और नवजोत सिद्धू के 73 रनों की बदौलत दो विकेट के नुकसान पर 207 रन बना लिये थे. लेकिन इसी स्कोर पर सिद्धू के आउट होते ही भारतीय पारी बिखरना शुरू हो गई और पूरी टीम ऑस्ट्रेलिया के 270 रनों से महज एक रन दूर 269 पर ऑल आउट हो गई.
रनों के लिहाज से यह पहली बार था कि विश्व कप में किसी मैच का फ़ैसला महज 1 रन के अंतर से हुआ था. हालांकि, इस मुक़ाबले से पहले वनडे क्रिकेट में तीन बार 1 रन से फ़ैसला हो चुका था.
1992: डकवर्थ लुईस की शुरुआत और 1 गेंद पर 22 रन बनाने का लक्ष्य
यह वो टूर्नामेंट था जब इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी के बाद पहली बार दक्षिण अफ़्रीकी टीम ने विश्व कप में शिरकत किया और सेमीफ़ाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही.
इंग्लैंड के ख़िलाफ़ इस मुक़ाबले में 253 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए दक्षिण अफ़्रीका बेहद दमदार अंदाज़ में बल्लेबाज़ी कर रही थी. उसे जीतने के लिए 13 गेंदों पर 22 रन बनाने थे. लेकिन तभी बारिश आ गई. जब खेल दोबारा शुरू हुआ तो नये नियम डकवर्थ लुईस को लागू करते हुए अफ़्रीकी टीम को असंभव लक्ष्य दिया गया. अफ़्रीकी टीम को 1 गेंद पर 22 रन बनाने थे.
इंग्लैंड सेमीफ़ाइनल तो जीत गया लेकिन फ़ाइनल मुक़ाबले में पाकिस्तान ने उसे हराकर पहली बार विश्व कप का खिताब अपने नाम किया.
यह वो ही टूर्नामेंट था जिसके ग्रुप मैच में दक्षिण अफ़्रीका ने पाकिस्तान को 20 रन से हराया था. इस मैच में फील्डिंग के दौरान जोंटी रोड्स ने जिस तरह ज़मीन के समानांतर उछलते हुए गिल्लियां बिखेरते हुए इंजमाम उल हक़ को रन आउट किया उसकी तस्वीर अगले दिन सभी अख़बारों के पन्ने पर छायी रहीं.
बेहतरीन फील्डर के रूप में जोंटी रोड्स की पहचान पहले से थी लेकिन इस रन आउट ने उन्हें विश्व प्रसिद्ध बना दिया.
1996: रोंगटे खड़े करने वाला भारत-पाकिस्तान मुक़ाबला
भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में संयुक्त रूप से आयोजित इस टूर्नामेंट में सुरक्षा कारणों से ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज की टीमों ने श्रीलंका में खेलने से मना कर दिया. आईसीसी की सुरक्षा की गारंटी देने के बावजूद दोनों टीमें वहां खेलने को राजी नहीं हुईं और श्रीलंका को इसका लाभ मिला और वो आसानी से क्वार्टर फ़ाइनल में पहुंच गए.
सेमीफ़ाइनल में भारत को और फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हरा कर अर्जुन राणातुंगा के नेतृत्व में श्रीलंकाई टीम पहली बार चैंपियन बनी.
कई विवादों के बीच टूर्नामेंट का सबसे रोमांचक मैच था भारत और पाकिस्तान के बीच खेला गया क्वार्टर फ़ाइनल मुक़ाबला. चार साल पहले (1992 में) भारत ने पाकिस्तान को विश्व कप में हराने का जो सिलसिला शुरू किया वो 27 साल बाद भी 2019 के विश्व कप की शुरुआत तक बरकरार है.
लेकिन 1996 के क्वार्टर फ़ाइनल की शुरुआत से पहले यह रिकॉर्ड महज 1-0 से भारत के पक्ष में था. कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट के मुक़ाबले में रोमांच पहली गेंद से ही शुरू हो जाता है और यहां तो पहली गेंद फेंके जाने से पहले ही शुरू हो गया जब पाकिस्तान के कप्तान वसीम अकरम ने चोट की वजह से टॉस से कुछ देर पहले मैच में नहीं खेलने का फ़ैसला किया.
पहले बल्लेबाज़ी करते हुए भारत ने नवजोत सिंह सिद्धू के 93 रन की बदौलत 46 ओवर तक 236 रन बना लिए थे. इसके बाद अजय जडेजा ने एक अविस्मरणीय पारी खेली और पाकिस्तान के तेज़ गेंदबाज़ और इन-स्विंग यॉर्कर के महारथी वकार यूनुस के दो लगातार ओवर्स में 18 और 22 रन बटोरे. स्लॉग ओवर्स में वकार इन-स्विंग यार्कर डालेंगे जडेजा को अहसास था और उन्होंने उस गेंद का इंतजार किया और उस पर छक्के जड़े. 25 गेंदों पर जडेजा के 45 रनों की बदौलत भारत ने 287 रनों का लक्ष्य रखा.
जब पाकिस्तान बल्लेबाज़ी के लिए उतरा तो आमिर सोहेल ने जबरदस्त बैटिंग की और एक वक्त पाकिस्तान का स्कोर एक विकेट पर 113 रन था. वेंकटेश प्रसाद की गेंदों पर छक्के जड़ने के बाद आमिर के साथ मैदान पर ही उनकी नोकझोंक हुई. लेकिन इसके बाद वेंकटेश ने आमिर की गिल्लियां बिखेरते हुए उन्हें पवेलियन जाने का इशारा किया. इसके बाद पाकिस्तान की बल्लेबाज़ी देर तक नहीं टिक सकी और भारत 39 रनों से यह मुक़ाबला जीत गया.
भारत का श्रीलंका के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल मुक़ाबला भी बेहद विवादित और चर्चित रहा. श्रीलंका ने 251 रन बनाए तो भारत ने एक वक्त तक सचिन तेंदुलकर की 65 रनों की पारी की बदौलत एक विकेट पर 98 रन बना लिये थे. इसी स्कोर पर सचिन आउट हुए और इसके बाद विकेटों का पतझड़ लग गया. अगले 22 रन बनने तक भारत के सात विकेट गिर गये. 120 रन पर आठ विकेट के स्कोर पर ईडन गार्डन पर दर्शकों ने हिंसक रुख अपना लिया और आगजनी करने लगे, गुस्साये भारतीय समर्थकों ने मैदान पर बोलतें और फल फेंकने लगे. इसके बाद मैच रेफरी ने इस मुक़ाबले को श्रीलंका के नाम कर दिया.
1999: "दोस्त तुमने तो वर्ल्ड कप गिरा दिया"
ये बांग्लादेश का पहला वर्ल्ड कप टूनामेंट था. न्यूज़ीलैंड, वेस्ट इंडीज और ऑस्ट्रेलिया से हार कर इस टीम ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ शानदार जीत दर्ज की. पाकिस्तान को उन्होंने 62 रनों से हराया. हालांकि पाकिस्तान ने वेस्ट इंडीज, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड से जीत दर्ज कर नॉक आउट दौर में पहले ही अपनी जगह बना ली थी और फिर सेमीफ़ाइनल जीतते हुए फ़ाइनल तक पहुंचा.
लेकिन इस टूर्नामेंट की विजेता बनी ऑस्ट्रेलियाई टीम को सेमीफ़ाइनल में बड़ी मुश्किल से दक्षिण अफ़्रीका पर रोमांचक जीत मिली थी. लांस क्लूज़नर की यादगार पारियों की बदौलत सेमीफ़ाइनल तक पहुंची.
दक्षिण अफ़्रीकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को निर्धारित 50 ओवर्स के खेल में 4 गेंद शेष रहते 213 पर ऑल आउट कर दिया. इसके बाद शेन वार्न ने अपनी सधी हुई फिरकी पर अफ़्रीकी बल्लेबाज़ों को नचाते हुए शुरुआती तीन विकेट झटके. पहले चार विकेट गिरने तक अफ़्रीका का स्कोर 61 रन था.
इसके बाद कैलिस, रोड्स और फिर क्लूजनर की पारियों की बदौलत अफ़्रीकी टीम जीत के मुहाने तक पहुंच गई. लेकिन यहां तक पहुंचते-पहुंचते उसके 9 विकेट गिर गये. टूर्नामेंट में मैन ऑफ़ द सिरीज़ रहे लांस क्लूजनर एक छोर से जमे हुए थे और आखिरी ओवर में केवल 9 रन बनाने थे. दूसरे छोर से उनका साथ दे रहे थे अनुभवी एलेन डोनल्ड.
अंतिम ओवर की पहली दो गेंदों पर क्लूज़नर ने चौका जड़ा. लिहाजा दोनों टीमों का स्कोर बराबर हो गया. अब चार गेंदे बची थीं. तीसरी गेंद सीधी फील्डर के हाथों में गई और डोनल्ड रन आउट होते-होते बचे.
चौथी गेंद पर शॉट खेल कर क्लूज़नर दूसरे छोर पर जा पहुंचे लेकिन डोनल्ड अपनी क्रीज से बाहर तक नहीं निकले और जब तक वो दौड़ते दूसरे छोर पर गिल्लियां बिखेरी जा चुकी थीं. एलेन डोनल्ड रन आउट हो गये और एक बार फिर दक्षिण अफ़्रीकी टीम फ़ाइनल में पहुंचने से चूक गई.
इसी टूर्नामेंट के अंतिम लीग मैच में भी इन्हीं दोनों टीमों का मुक़ाबला हुआ था. अफ़्रीकी टीम ने पहले खेलते हुए हर्शल गिब्स की 101 रनों की पारी की बदौलत 271 रन बनाए. जवाब में ऑस्ट्रेलिया ने दो गेंद शेष रहते जीत दर्ज की. इसमें कप्तान स्टीव वॉ की 110 गेंदों पर खेली गई 120 रनों की पारी का बहुमूल्य योगदान था.
वॉ की पारी की शुरुआत में ही गिब्स ने उनका एक आसाना कैच गिरा दिया था. ऑस्ट्रेलिया यदि यह मैच हार जाता तो विश्व कप से बाहर हो जाता. उसी मसय वॉ ने गिब्स से कहा था, "दोस्त तुमने तो वर्ल्ड कप गिरा दिया."
गिब्स के आसान कैच गिराने को लेकर विवाद भी हुआ था लेकिन विवाद ये नहीं था कि वह कैच कैसे गिरा बल्कि बात ये सामने आई कि शेन वार्न ने पहले ही कह रखा था कि गिब्स कैच गिराएगा और वैसा ही हुआ.
बाद में शेन वार्न ने कहा कि वह उसकी बहुत जल्दी ख़ुशी मनाने की प्रवृति से वाक़िफ़ थे और उसी की बुनियाद पर उन्होंने यह बात कही थी.
लेकिन आज तक ये विवाद ख़त्म नहीं हो सका कि गिब्स ने जान-बूझ कर कैच छोड़ा था या फिर शेन वार्न क्रिकेट के इतने महान खिलाड़ी हैं जो दूसरे खिलाड़ियों के प्रवृति को इस क़दर जानते हैं कि उसकी बुनियाद पर भविष्यवाणी कर सकें.
2003: सचिन-शोएब और गेंद-बल्ले की जंग
1983 के बाद पहली बार भारतीय टीम इस विश्व कप के फ़ाइनल में पहुंची लेकिन हार गई. हालांकि भारतीय दर्शकों के लिए टूर्नामेंट के दौरान खेला गया भारत-पाकिस्तान मुक़ाबला ज़्यादा अहम था.
यह वो दिन था जब भारतीय बल्लेबाज़ों ने पाकिस्तान के गेंदबाज़ों की बहुत धुनाई की थी. यह उस वक्त के सबसे तेज़ गेंदबाज़ शोएब अख्तर और सबसे बेहतरीन बल्लेबाज़ों में से एक सचिन तेंदुलकर के बीच मुक़ाबला था और मैच के दौरान सचिन शोएब की गेंदों को बार-बार बाउंड्री के पार पहुंचा रहे थे.
पाकिस्तान ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए 273 रन बनाए थे. लक्ष्य का पीछा करने उतरी सहवाग और सचिन की जोड़ी. सहवाग 21 रन बनाकर जल्दी आउट हो गए लेकिन सचिन एक छोर पर डट गए और 75 गेंदों पर 12 चौके और एक छक्के की बदौलत 98 रनों की मैच जिताउ पारी खेली. अंत में राहुल द्रविड़ और युवराज सिंह ने भी शतकीय साझेदारी की और भारत 26 गेंद शेष रहते यह मैच जीत गया. सचिन उस टूर्नामेंट के मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट थे.
सचिन ने अपने रिटायरमेंट के बाद भी कहा था कि विश्व कप का उनका सबसे बेहतरीन मैच 2003 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ खेला गया मुक़ाबला था.
2007: भारत-पाकिस्तान पहले दौर से बाहर, बॉब वूल्मर की मौत
2007 का विश्व कप अपनी सबसे दुखद घटना पाकिस्तान के दक्षिण अफ़्रीकी कोच बॉब वूल्मर की उनके होटल के कमरे में मौत के लिए याद की जाती है. यह विश्व कप वेस्टइंडीज़ में खेला गया.
वूल्मर की मौत उसी रात हुई जिस दिन पाकिस्तान की आयरलैंड के हाथों शर्मनाक हार के साथ विश्व कप से विदाई हुई.
पाकिस्तान के साथ ही भारत भी पहले ही दौर में प्रतियोगिता से बाहर हो गया. दोनों ही सुपर-8 में भी नहीं पहुंच सकीं. भारत की टीम अपने तीन लीग मैचों में से दो हार गई. उसे बांग्लादेश और श्रीलंका ने हरा दिया.
आखिर में 1996 की ही तरह एक बार फिर इस विश्व कप के फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका आमने-सामने थे. 1996 में श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया को हरा कर ख़िताब पर कब्ज़ा किया था. लेकिन इस बार अलग कहानी लिखी गई.
बारिश के कारण मैच सिर्फ़ 38 ओवर का कर दिया गया. ऑस्ट्रेलिया के कप्तान रिकी पोंटिंग ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी चुनी. एडम गिलक्रिस्ट ने धमाकेदार पारी खेली. सिर्फ़ 104 गेंद पर उन्होंने 149 रन बनाए और ऑस्ट्रेलिया ने 38 ओवर में चार विकेट पर 281 रन बनाए.
जब तक कुमार संगकारा और सनथ जयसूर्या पिच पर थे, मैच में जान लग रही थी. लेकिन उसके बाद श्रीलंका की हार तय हो गई. बारिश के कारण फिर मैच रुका और इसे 36 ओवर का कर दिया गया और लक्ष्य 269 का दिया गया. श्रीलंका की टीम 36 ओवर में 215 रन ही बना सकती और 53 रनों से मैच हार गई.
2011: पाकिस्तान को हराया, विश्व कप भी जीते
1983 में पहली बार विश्व कप जीतने के बाद महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व में 28 साल बाद भारतीय टीम ने 2011 का विश्व कप खिताब अपने नाम किया. फ़ाइनल मुक़ाबले में श्रीलंका के ख़िलाफ़ कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (91 नॉट आउट) और गौतम गंभीर (97) की पारियों की बदौलत भारत ने एक बार फिर वर्ल्ड कप अपने नाम किया. मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट रहे युवराज सिंह.
इस टूर्नामेंट का सेमीफ़ाइनल मुक़ाबला भारत और पाकिस्तान के बीच खेला गया जो बेहद रोमांचक था.
भारत ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए सचिन तेंदुलकर की 85 रनों की बदौलत 9 विकेट पर 260 रन बनाए. सचिन के बाद सर्वाधिक रन सहवाग (38) और धोनी (36) ने बनाए.
हालांकि मैच जीतने के लिए इतने रन पर्याप्त नहीं थे लेकिन भारत के सभी पांच गेंदबाज़ों (ज़हीर ख़ान, आशीष नेहरा, मुनफ पटेल, हरभजन सिंह और युवराज सिंह) ने सधी हुई गेंदबाज़ी करते हुए दो-दो विकेट लिए.
पाकिस्तान के विकेट लगातार गिरते रहे और पूरी टीम 231 रनों पर आउट हो गई.
इसके साथ ही भारतीय टीम ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ न केवल वर्ल्ड कप में जीत का रिकॉर्ड बरकरार रखा बल्कि दूसरी बार विश्व कप जीतने के क़रीब भी पहुंची.
2015: पाकिस्तान के मुक़ाबले भारत 6-0 से आगे
अब तक के विश्व कप मुक़ाबलों में पाकिस्तान पर भारत की जीत कोई नई बात नहीं रह गयी थी. 2015 में एक बार फिर भारत ने पाकिस्तान पर जीत दर्ज की और विश्व कप में जीत के अंतर को 6-0 किया. लेकिन यह वो टूर्नामेंट था जिसमें किसी एक मैच की बात नहीं की जा सकती बल्कि टूर्नामेंट के कई मैच यादगार थे.
भारतीय टीम पहली बार दक्षिण अफ़्रीका से विश्व कप में जीती और लगातार सात बार विपक्षी टीम को ऑल आउट करने का कारनामा किया.
श्रीलंका के संगकारा के चार लगातार मैचों में शतक. न्यूज़ीलैंड की ऑस्ट्रेलिया पर एक विकेट से जीत हो या अंतिम ओवर में दक्षिण अफ़्रीका पर जीत. मिशेल स्टार्क का न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ 28 रन पर 6 विकेट लेना और इसी मैच में ट्रेंट बोल्ट का 27 रन पर 5 विकेट झटकना.
डिविलियर्स की 66 गेंदों पर 166 रनों की पारी. आयरलैंड की वेस्ट इंडीज पर जीत. क्रिस गेल और मार्टिन गप्टिल का दोहरा शतक. कई यादगार पल थे और सबसे अहम तो यह कि माइकल क्लार्क के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया ने रिकॉर्ड पांचवी बार यह खिताब अपने नाम किया.
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