You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
वर्ल्ड कप हॉकी: भारतीय टीम अपने घर में चमत्कार कर पाएगी?
- Author, आदेश कुमार गुप्त
- पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए
भारत अपनी मेजबानी में बुधवार से भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में शुरू होने जा रहे 14वें विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट के लिए पूरी तरह से तैयार है.
इस बार विश्व कप में भारत सहित 16 टीमें हिस्सा ले रही है. इन टीमों को चार पूल में बांटा गया है. साल 1975 का चैंपियन मेंज़बान भारत पूल सी में बेल्ज़ियम, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका के साथ है.
पूल ए में अर्जेंटीना, न्यूज़ीलैंड, स्पेन और फ्रांस, पूल बी में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, आयरलैंड और चीन शामिल है. वहीं पूल डी में नीदरलैंड्स, जर्मनी, मलेशिया और पाकिस्तान शामिल है.
इस पूल को हॉकी विशेषज्ञों की नज़र में ग्रुप ऑफ़ डेथ माना जा रहा है. पाकिस्तान रिकार्ड चार बार की चैंपियन है. वहीं नीदरलैंड्स तीन बार की चैंपियन है. मलेशिया अपने दिन किसी भी टीम को हराने की क्षमता रखती है.
जर्मनी भी दो बार की चैंपियन है. ऐसे में कौन किसका खेल ख़राब करेगा कहना मुश्किल है. हर पूल की टॉप टीम को सीधे क्वार्टर फ़ाइनल में जगह मिलेगी. इसके अलावा हर पूल में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाली टीम को भी दूसरे पूल की टीमों से जीतकर क्वार्टर फ़ाइनल में जगह बनाने का मौक़ होगा.
इसे लेकर साल 1975 में विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य रहे एच जे एस चिमनी का मानना है कि इससे शुरूआती दौर में किसी बेहतर टीम को बाहर होने से बचने का दूसरा मौक़ा मिलेगा. कई बार एस्ट्रो टर्फ़ पर अच्छी टीम भी लय बनाने में चूकने से हल्की टीम से भी हार जाती है.
इस विश्व कप में भारत की कप्तान मनप्रीत सिंह संभाल रहे हैं. उनके अलावा टीम में सबसे भरोसेमंद और अनुभवी गोलकीपर पी श्रीजेश भी है.
पी श्रीजेश ख़ुद कुछ समय पहले तक टीम के कप्तान थे. क्या विश्व कप के बेहद दबाव वाले मैचों में युवा मनप्रीत सिंह अपना सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन दे सकेंगे.
इस आशंका का समाधान किया हॉकी इंडिया के चयनकर्ता और पूर्व ओलंपियन हरबिंदर सिंह ने. उनका मानना है कि मनप्रीत सिंह इससे पहले भी भारत की कमान संभाल चुके है, इसके अलावा पी श्रीजेश भी उन्हें अपनी सलाह देते रहेंगे.
भारत की रणनीति
टीम में कई अनुभवी खिलाड़ियो को शामिल नहीं किया गया है.
पूर्व कप्तान सरदार सिंह ने तो ख़ैर अंतरराष्टीय हॉकी को ही अलविदा कह दिया है. उनके अलावा एसवी सुनील और रूपिंदर पाल सिंह चोट के कारण हटाए गए हैं.
अनुभवी खिलाड़ियो की कमी को लेकर कोच हरेन्दर सिंह का मानना है, "चोटिल खिलाड़ी के भरोसे टीम आगे नहीं बढ़ सकती. आज का युग युवाओं का है. किसी भी टूर्नामेंट में टीम की जीत का आधार खिलाड़ियों की फ़िटनेस है. आधी-अधूरी फ़िटनेस के साथ अनुभवी खिलाड़ियों को खेलाने से बेहतर है कि युवा खिलाड़ी को मौक़ा दिया जाए."
इस विश्व कप में कोच हरेन्दर सिंह और कप्तान मनप्रीत सिंह की जुगलबंदी को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. दरअसल दो साल पहले हरेन्दर सिंह उस भारतीय हॉकी टीम के कोच थे जिसने मनप्रीत सिंह की कप्तानी में जूनियर विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट जीता था.
अब यह दोनों सीनियर टीम के कोच और कप्तान हैं. इसके अलावा जूनियर विश्व कप जीतने वाली टीम के गोलकीपर रहे कृष्ण बहादुर पाठक, हरमनप्रीत सिंह, वरूण कुमार, नीलकंठ शर्मा, मनदीप सिंह और सिमरनजीत सिंह भी इस टीम में शामिल हैं. तो क्या कोच और कप्तान का पूर्व अनुभव सीनियर टीम के काम आएगा और क्या यह टीम नया इतिहास बना सकती है.
क्या है भारत की कमजोरी
इसे लेकर कोच हरेन्दर सिंह का कहना है, "मैंने जूनियर विश्व कप में एक-एक मैच और तीन अंकों के साथ आगे बढ़ने की रणनीति बनाई थी. ऐसा ही इस बार भी होगा. रही बात इतिहास बनाने और दोहराने की तो उसका पूरा श्रेय टीम के खिलाड़ियों को जाता है. कोच तो बस एक छोटी सी भूमिका निभा सकता है."
कप्तान मनप्रीत सिंह के लिए इस विश्व कप में किसी पदक को पाना आसान नहीं होगा. इसकी सबसे बड़ी वजह टीम का इसी साल राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में किया गया निराशाजनक प्रदर्शन है.
राष्ट्रमंडल खेलों में तो भारतीय टीम इस बार कोई पदक तक नहीं जीत सकी. वह चौथे स्थान पर रही. एशियाई खेलों में भी भारतीय टीम जैसे-तैसे कांस्य पदक ही जीत सकी.
क्या भारतीय टीम विश्व कप और ओलंपिक में पदक जीतने की चाहत में दूसरे टूर्नामेंट भी नहीं जीत पाती. इस सवाल को लेकर कप्तान मनप्रीत सिंह ने बीबीसी को बताया, "ऐसा नहीं है. पिछले दिनों एशियन चैंपियंस ट्रॉफ़ी के फ़ाइनल में पहुंचकर भारत ने अपना दमख़म दिखाया. फ़ाइनल बारिश के कारण नहीं हो सका और पाकिस्तान के साथ संयुक्त विजेता बनना पड़ा."
इस टीम की सबसे बड़ी कमज़ोरी अंतिम क्षणों में गोल खाने की पुरानी बीमारी है. इसके अलावा काउंटर अटैक पर भी भारतीय रक्षण गडबड़ा जाता है और विरोधी टीम आसानी से गोल कर जीत जाती है.
इस विश्व कप में भारत को कितना कामयाबी मिलेगी यह गोलकीपर पी श्रीजेश के अनुभव और रक्षा पंक्ति पर निर्भर करेगा.
भारत का पूल वैसे दूसरी टीमों के मुक़ाबले बेहद आसान है. क्वार्टर फ़ाइनल तक तो भारत को कोई विशेष परेशानी नहीं होनी चाहिए. इसके बावजूद उसे कनाडा और बेल्ज़ियम से सर्तक रहना होगा.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)