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कॉमनवेल्थ डायरी: नमन तंवर के तेवर और अकड़
- Author, रेहान फ़ज़ल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, गोल्ड कोस्ट (ऑस्ट्रेलिया) से
गोल्डकोस्ट की असली कहानी भारतीय मुक्केबाज़ों की कहानी है. अब तक पाँच भारतीय मुक्केबाज़ सेमीफ़ाइनल में प्रवेश कर चुके हैं यानि उनका कम से कम कांस्य पदक पक्का हो चुका है.
ये उपलब्धि उस समय हासिल हुई है जब खेल शुरू होने से पहले भारतीय मुक्केबाज़ निडिल विवाद के कारण ख़बरों में आ गए थे और उन सब के दो दो बार डोप टेस्ट कराए गए थे. भिवानी के नमन तंवर का अभी भारतीय बॉक्सिंग प्रेमियों ने अधिक नाम नहीं सुना है.
लेकिन जब ऑक्सनफ़ोर्ड स्टूडियो की रिंग में नमन समोआ के बाक्सर फ़्रैंक मैसो के ख़िलाफ़ उतरे तो उनका तेवर और अकड़ देखते ही बनती थी. वो रस्से के बीच से हो कर रिंग में नहीं गए, बल्कि उन्होंने छलांग भर कर रिंग में प्रवेश किया.
एक दो मिनट तक समोआई बॉक्सर की थाह लेने के बाद उन्होंने उस पर जो मुक्कों की बरसात की, वो देखने लायक थी. नमन सिर्फ़ 19 साल के हैं और करीब साढ़े छह फ़ीट लंबे हैं. उनके पंच इतने शक्तिशाली थे कि समोआ के बाक्सर की आंख के ऊपर एक कट लग गया और उसमें से खून बहने लगा.
रेफ़री ने उन्हें स्टेंडिंग काउंट दिया. मैं तो ये मना रहा था कि जल्दी से ये मुक़ाबला ख़त्म हो और फ़्रैंक मैसो की परेशानियों का अंत हो.
नमन 'ओपेन चेस्ट स्टाइल' में मुक्केबाज़ी करते हैं और उनके प्रतिद्वंदी को ये गुमान हो जाता है कि वो उनके रक्षण को भेद सकते हैं. लेकिन यहीं वो ग़लती करते हैं. बदले में उन्हें जिस तरह के 'जैब्स' और 'अपर कट्स' का सामना करना पड़ता है जिसकी वो कल्पना भी नहीं कर सकते.
ऐसा करने में नमन को मदद मिलती है लंबे डीलडौल के कारण उनकी बेहतर पहुंच से. नमन ने अपने से कहीं मशहूर सुमित सांगवान को हरा कर भारत की राष्ट्रमंडल टीम में जगह बनाई है. लेकिन उनकी बॉक्सिंग कला से कहीं ज्यादा बेहतर है उनका आत्मविश्वास. उनका 'फुट वर्क' ग़ज़ब का है जिसकी वजह से कई बार उनके प्रतिद्वंदियों के मुक्के उन तक पहुंच नहीं पाते. उनमें तगड़े मुक्के झेलने की ताक़त भी है.
बीजिंग ओलंपिक के क्वार्टर फ़ाइनल में पहुंचने वाले अखिल कुमार उनके आदर्श हैं. देख कर साफ़ लगता है कि उनके स्वीडिश कोच सेंटियागो निएवा ने उन पर काफ़ी मेहनत की है.
मोहम्मद अनास का कारनामा
शुरू में मोहम्मद अनास को भारतीय एथलेटिक्स की टीम में चुना तक नहीं जा रहा था. लेकिन वो न सिर्फ़ 400 मीटर की दौड़ के फ़ाइनल में पहुंचे, बल्कि उन्होंने गोल्डकोस्ट में अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रीय रिकार्ड भी बनाया.
अनास को इस दौड़ में चौथा स्थान मिला. वो मिल्खा सिंह के बाद पहले भारतीय एथलीट बने जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों की 400 मीटर की दौड़ के फ़ाइनल में प्रवेश किया है. 1958 के कार्डिफ़ खेलों में मिल्खा सिंह न सिर्फ़ फ़ाइनल में पहुंचे थे, बल्कि उन्होंने वहाँ स्वर्ण पदक भी जीता था.
अनास ने इस दौड़ में 45.31 सेंकेड का समय निकाला. जब दौड़ ख़त्म हुई तो अनास ट्रैक पर ही गिर गए. उन्होंने हाँफते हुए कहा कि वो अपने प्रदर्शन से बहुत ख़ुश हैं. उन्होंने ये दौड़ सिर्फ़ अनुभव लेने के लिए दौड़ी थी. मैं जकार्ता एशियन खेलों तक अपनी 'पीक फ़ॉर्म' में पहुंच जाउंगा. तब आप मुझसे पदक की उम्मीद कर सकते हैं.
मज़े की बात ये है कि अनास को मिल्खा की इस उपलब्धि के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. दौड़ से ठीक पहले थोड़ी बूंदाबाँदी से भी अनास के प्रदर्शन पर थोड़ा असर पड़ा. उन्होंने माना कि गीले ट्रैक की वजह से उनके पैरों में 'क्रैम्प्स' हो गए वो आख़िरी 50 मीटर में थोड़े धीमे पड़ गए. सूखा ट्रैक होने पर वो अपनी टाइमिंग में थोड़ा और सुधार कर सकते थे. बारिश के कारण मौसम भी ठंडा हो गया जिससे उनका शरीर 'स्टिफ़' हो गया.
खुले में पेशाब करने पर 500 डॉलर का फ़ाइन
भारत में आपको बहुत से लोग खुले में पेशाब करते मिल जाएंगे. ऑस्ट्रेलिया में इसके लिए बहुत सख़्त कानून है. अगर आप ऐसा करते हुए पाए जाते हैं, तो आप पर 500 डॉलर का जुर्माना लगाया जा सकता है.
पूरे ऑस्ट्रेलिया में सार्वजनिक शौचालयों का जाल बिछा हुआ है, लेकिन तब भी ख़बरें मिलती रहती हैं कि फ़लाँ जगह पर कुछ लोग सार्वजनिक जगह पर पेशाब करते हुए पकड़े गए. इसकी वजह है ऑस्ट्रेलियंस का बेइंतहा बियर पीना और फिर पेशाब पर नियंत्रण न रख पाना.
लेकिन अगर आप के आसपास कोई टायलेट न हो तो आप क्या करेंगे? ऐसे में एक रियायत ये है कि आप अपनी कार के पिछले बाएं टायर पर पेशाब कर सकते हैं. लेकिन उन लोगों का क्या जो स्वीमिंग करते हुए स्वीमिंग पूल में पेशाब कर देते हैं. ऑस्ट्रलियाई अख़बारों में इश्तेहार छप रहे हैं कि अब ऐसे रसायन उपलब्ध हैं कि स्वीमिंग पूल में पेशाब करते ही वहाँ का पानी लाल हो जाता है.