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कॉमनवेल्थ डायरी: मनु भाकर के चेहरे से इमोशन बिल्कुल ग़ायब थे
- Author, रेहान फ़ज़ल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट से
जब बेलमॉन्ट शूटिंग रेंज में सभी 10 मीटर एयर पिस्टल की सभी निशानेबाज़ों को दर्शकों से मिलवाया जा रहा था तो सभी लोग हाथ हिला कर दर्शकों का अभिवादन स्वीकार कर रही थीं, सिवाय मनु भाकर के जो आँख मूंदे किसी चीज़ पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही थीं.
तालियों की ज़ोरदार गड़गड़ाहट ने भी उनका ध्यान विचलित नहीं किया और वो अपनेआप में खोई रहीं. पूरी स्पर्धा के दौरान वो एक बार भी नहीं मुस्कराईं.
उनके चेहरे पर पहला इमोशन तब दिखाई दिया जब ये तय हो गया कि उन्होंने स्वर्ण पदक जीत लिया है. तब भी उन्होंने हिना सिद्धू को बिना कुछ कहे गले लगाया बिल्कुल रोबोटिक स्टाइल में.
हरियाणा के झज्जर ज़िले के गोरिया गाँव की रहने वाली मनु ने दो साल पहले ही निशानेबाज़ी करनी शुरू की है. फ़ाइनल में उन्होंने अपने सारे 24 निशाने अपना बाँया हाथ अपनी पैंट की पिछली जेब में डाल कर लगाए. इन 24 में से 14 निशाने 10 प्लस वाले थे. हर आठवें शॉट पर उन्होंने पास रखी बोतल से एक घूंट पानी पिया.
सोना जीतने के बाद मैंने उनसे पूछा कि ये तो आप के लिए 'केक वॉक' रही, आपको तो कुछ मेहनत ही नहीं करनी पड़ी? मनु ने जवाब दिया, ''मैं एक एक शॉट लगाते अपना इतना ध्यान केंद्रित कर रही थी कि मुझे पता ही नहीं था कि बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है.''
उन्होंने कहा, ''आप को बाहर बैठे बैठे भले ही ये लग रहा हो कि ये आसान था, लेकिन ऐसा नहीं था. शूटिंग में सारा खेल इस बात का होता है कि निशाना लेते समय आपका शरीर कितना स्थिर है.''
मनु इस कला की मास्टर हैं. मनु के कोच जसपाल राणा और ओलिंपिक स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा दोनों मानते हैं कि मनु में ग़ज़ब की प्रतिभा है, लेकिन विशव स्तर पर लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उन्हें अपने पैर हमेशा ज़मीन पर रखने होंगे. दूसरी तरफ़ हिना सिद्धू एक समय पर सातवें स्थान पर थीं और उनके मुक़ाबले से बाहर जाने का ख़तरा मंडरा रहा था.
लेकिन तभी वो संभली और लगातार कई 10 प्लस स्कोर कर दूसरे स्थान पर पहुंच गईं. बाद में उन्होंने मुझे बताया कि उनकी ट्रिगर दबाने वाली उंगली में चोट लगी हुई थी जिसकी वजह से उन्हें ट्रिगर दबाते समय काफ़ी जलन हो रही थी.
पिछले साल भी उनको इसी तरह की समस्या हुई थीं जब उनकी तर्जनी में कंपकंपाहट शुरू हो गई थी. अंतिम शॉट्स में उन्होंने अपना सब कुछ झोंक दिया जिसकी वजह से भारत को 10 मीटर एयर पिस्टल में दो पदक मिले, एक स्वर्ण और एक रजत.
मेरी कॉम भी ला सकती हैं सोना
मेरी कॉम ने स्कॉटलैंड की मेगान गार्डन को आसानी से 5-0 से हरा कर 48 किलोग्राम बॉक्सिंग के सेमी फ़ाइनल में प्रवेश कर लिया. इस तरह उनका कांसे का पदक तो पक्का हो गया. लेकिन वो सोने से कम में नहीं मानेंगी, क्योंकि उनके अब तक के ज़बर्दस्त करियर में सिर्फ़ यही पदक है जो उन्हें नहीं मिला है.
18 साल की गार्डन अपने से लगभग दोगनी उम्र की मेरी कॉम के सामने बिल्कुल भी नहीं टिक पाईं. फ़ाइनल में जगह बनाने के लिए अब उनका मुकाबला श्रीलंका की अनूशा दिलरुक्शी से होगा. 35 साल की मेरी कॉम तीन बच्चों की माँ के साथ साथ संसद की सदस्य भी हैं.
मेरी कॉम को गोल्डकोस्ट काफ़ी रास आ रहा है. उन पर बनी फ़िल्म की वजह से वो यहाँ काफ़ी मशहूर हैं. जब वो खेल गाँव के बाहर कहीं जाने के लिए ग्रिफ़िथ यूनिवर्सिटी के ट्राम स्टेशन पर पहुंचीं तो उन्हें ऑस्ट्रेलियाई प्रशंसकों ने घेर लिया और उन्हें ऑटोग्राफ़ कई देने पड़े.
यहाँ के मशहूर अख़बार 'द ऑस्ट्रेलियन' ने भी उनकी एक तस्वीर के साथ उन पर एक लेख छापा है.
हर दूसरा टैक्सी ड्राइवर भारतीय या पाकिस्तानी
गोल्ड कोस्ट में टैक्सी के पेशे पर भारतीय और पाकिस्तानियों ने कब्ज़ा किया हुआ है. गोल्ड कोस्ट ही नहीं दूसरे ऑस्ट्रेलियाई शहरों जैसे सिडनी और मेलबर्न में भी अधिक्तर टैक्सी ड्राइवर भारतीय है. ज़्यादातर लोग पंजाब से हैं. टैक्सी में बैठते ही वो हिंदी या पंजाबी मे बात करना शुरू करते हैं और गोल्डकोस्ट के बारे में बिना पूछे ही सारी टिप्स देना शुरू कर देते हैं.
मसलन आप क्या देखें, कहाँ से ख़रीदारी करें और कहां खाना खाएं. हमारे टैक्सी ड्राइवर रुपिंदर सिंह तो इतने दरियादिल थे कि जब हम उनकी टैक्सी से उतरे तो बारिश हो रही थी. उन्होंने अपना छाता हमें पेश कर दिया. हमने उनसे पूछा कि हम इसे आपको कैसे लौटाएंगे तो उनका जवाब था, उसको लौटाने की ज़रूरत नहीं है.
ऑस्ट्रेलिया आने वाले अधिक्तर भारतीय टैक्सी चला कर ही अपने करियर की शुरुआत करते हैं और बाद में दूसरे पेशों में चले जाते हैं. टैक्सी चलाने के लिए आपको अंग्रेज़ी आना बहुत ज़रूरी है. जब ये लोग पंजाब के देहातों से यहाँ आते हैं है तो इनको बिल्कुल अंग्रेज़ी नहीं आती, लेकिन बहुत जल्द ही ये लोग अंग्रेज़ी में बात करना सीख जाते हैं.
यहाँ पढ़ने आए बहुत से भारतीय छात्र भी अतिरिक्त पैसों के लिए टैक्सी चलाना शुरू कर देते हैं. जब हमने उनकी तस्वीर लेनी चाही तो उन्होंने ये कह कर इनकार कर दिया कि भारत में उनके घर वाले ये देख कर ख़ुश नहीं होंगे कि उनका बेटा ऑस्ट्रेलिया में टैक्सी चला रहा है.
मुझे याद है कई साल पहले जब ऑस्ट्रेलिया में हो रही चैंपियंस ट्रॉफ़ी में भारत और पाकिस्तान की टीमें फ़ाइनल में पहुंची थीं तो एक ऑस्ट्रेलियन अख़बार ने सुर्ख़ी लगाई थी, 'टैक्सी ड्राइवर्स वरसेज़ ट्राम ड्राइवर्स!'