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क्या अर्जुन तेंदुलकर 'सचिन तेंदुलकर' बन पाएंगे?
कहते हैं जब बाप का जूता बेटे के फ़िट होने लगे तो रिश्ता पिता-पुत्र के बजाय दोस्ती का बन जाता है. और जब बाप का पैड बेटे के फ़िट आने लगे तो क्या कहा जाए.
यहां बात हो रही है दुनिया के सबसे महान बल्लेबाज़ माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर और उनके बेटे अर्जुन तेंदुलकर की.
अर्जुन भी प्रोफेशनल क्रिकेट में दिलचस्पी रखते हैं, ये बात ज़्यादातर लोग पहले से जानते हैं लेकिन अब उन्होंने बड़ी छलांग लगाई है.
बड़ौदा में टूर्नामेंट खेलेंगे अर्जुन
ईएसपीएन के मुताबिक उन्हें बड़ौदा में खेले जाने वाले जे वाई लेले इंविटेशनल टूर्नामेंट में हिस्सा लेने वाली मुंबई अंडर-19 टीम के लिए चुना गया है.
हालांकि ये बीसीसीआई का टूर्नामेंट नहीं है लेकिन टीम मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन की नुमाइंदगी करेगी. बीसीसीआई की अंडर 19 टीम में चुने जाने की दिशा में ये अहम कदम साबित हो सकता है.
अर्जुन बाएं हाथ से गेंदबाज़ी करते हैं और बल्ला थामने पर टिककर भी खेलना जानते हैं. लेकिन क्या अपने पिता के बड़े जूतों में उनके पांव फ़िट हो पाएंगे?
सचिन ने क्या कहा था?
ख़ुद उनके पिता सचिन मानते हैं कि अर्जुन की राह आसान नहीं है. सचिन ने अप्रैल 2016 में एक आर्थिक अख़बार को दिए इंटरव्यू में कहा था, ''बदक़िस्मती से उनके (अर्जुन के) कंधों पर उनके उपनाम का अतिरिक्त भार है और मैं जानता हूं कि ये आगे भी रहेगा. और ये आसान नहीं होगा.''
सचिन ने कहा था, ''मेरे लिए चीज़ें अलग थीं क्योंकि मेरे पिता लेखक थे और किसी ने क्रिकेट पर मुझसे सवाल नहीं किया. मेरा मानना है कि मेरे बेटे की तुलना मुझसे नहीं होनी चाहिए और वो जो है, उस पर फ़ैसला होना चाहिए.''
लेकिन तुलना होनी तय है. अतीत में भी कई बड़े खिलाड़ियों के बेटे क्रिकेट में उतरे और उन्हें भी तुलना का सामना करना पड़ा. इनमें से कुछ ऐसे थे जिन्होंने शुरुआत तो अच्छी की लेकिन जल्द ही राह खो बैठे.
इनमें से कुछ ये रहे:
रोहन गावस्कर
पिता टेस्ट क्रिकेट में दस हज़ार रन बनाने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज़ और नाम सुनील गावस्कर, तो दबाव अपने आप बन जाता है. रोहन से काफ़ी उम्मीदें थीं और साल 2004 में टीम इंडिया में जगह बनाकर उन्होंने इन उम्मीदों को हवा भी दी.
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ अपने पहले मैच में गेंदबाज़ी करते हुए उन्होंने एंड्रयू साइमंड्स का बेहतरीन कैच लपका और ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ 50 बनाए तो लगा रोहन लंबे जाएंगे. लेकिन वो इस फॉर्म को आगे जारी रखने में नाकाम रहे और सिर्फ़ 11 वनडे में उनका इंटरनेशनल करियर सिमट गया.
माली रिचर्ड्स
जब दुनिया ने सचिन तेंदुलकर और सनथ जयसूर्या जैसे आतिशी बल्लेबाज़ों को नहीं देखा था, तब क्रिकेट की दुनिया में सर विवियन रिचर्ड्स का नाम चलता था. वो दुनिया के बेस्ट बल्लेबाज़ कहे जाते थे. लेकिन उनके बेटे माली इस विरासत को नहीं संभाल सके.
माली इंग्लैंड में यूनिवर्सिटी लेवल पर खेले और काउंटी क्रिकेट में मिडलसेक्स की नुमाइंदगी भी की लेकिन इंटरनेशनल क्रिकेट में वेस्टइंडीज़ टीम में शामिल होने का मौका उन्हें कभी नहीं मिला. प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कुछ जलवे ज़रूर दिखे लेकिन दुनिया में वो अपने पिता सा नाम नहीं बना सके.
रिचर्ड हटन
सर लेन हटन इंग्लैंड की तरफ़ से खेलने वाले महान बल्लेबाज़ों में शुमार हैं. ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ साल 1938 में उनकी 324 रनों की पारी 20 साल तक टेस्ट की सबसे बड़ी पार रही. उनके बेटे रिचर्ड ने साल 1971 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ पहला मैच खेला.
पिता से उलट वो गेंदबाज़ी में महारत रखते थे और पहले मैच में उन्होंने विकेट भी चटकाए. हालांकि उनका इंटरनेशनल करियर काफ़ी छोटा रहा. वो अपने देश की तरफ़ से सिर्फ़ चार मैच खेल सके जिनमें से आख़िर भारत के ख़िलाफ़ था.
क्रिस काउड्री
कॉलिन काउड्री के बेटे क्रिस को साल 1984 में पहली बार इंग्लैंड टीम में शामिल किया गया. उन्होंने मुंबई में पहला टेस्ट खेला और अपने पहले ही ओवर में कपिल देव की बड़ी विकेट ली. साल 1988 में एक बार फिर उन्हें मौका मिला.
लेकिन उनका सफ़र कोई ख़ास लंबा नहीं रहा. अपने छोटे से करियर में उन्होंने कुल 6 टेस्ट और 3 वनडे मैच खेले.
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