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फिरन पहनी तस्वीरें सोशल मीडिया में क्यों छाईं
सोशल मीडिया पर कई लोग कश्मीर की पारंपरिक पोशाक में अपनी तस्वीरें साझा कर रहे हैं. यह बात सुनने या पढ़ने में भले ही आम सी लगे लेकिन इसके पीछे एक खास वजह है.
दरअसल भारत प्रशासित कश्मीर के शिक्षा विभाग ने काम के समय अपने कर्मचारियों पर पारंपरिक पोशाक पहनने पर प्रतिबंध लगाया था.
इसी प्रतिबंध के विरोध स्वरूप या यूं कहें कि शिक्षा विभाग के इस फ़ैसले को जवाब देने के मकसद से अधिकारियों ने सोशल मीडिया पर पारंपरिक पोशाक में अपनी तस्वीरें साझा की.
11 दिसंबर को जारी एक सर्कुलर में कहा गया था, "सभी अधिकारी जब ऑफ़िस आएं तो वे अपने निर्धारित ड्रेस कोड में ही आएं. कोई भी अधिकारी ऑफ़िस के समय फिरन (कश्मीरी ड्रेस), पारंपरिक पतलून और चप्पल या प्लास्टिक के जूते पहनकर न आए."
इसके बाद ये मुद्दा सोशल मीडिया पर छा गया और कश्मीरी फिरन पहने अपनी तस्वीरें साझा करने लगे. फिरन एक लंबे कोट की तरह होता है जिसे महिला और पुरुष दोनों पहनते हैं. ये कश्मीर की पारंपरिक पोशाक मानी जाती है.
हालांकि इस विरोध के बाद स्थानीय सरकार ने फिरन पहनने पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया है लेकिन यह नियम श्रीनगर शहर के सिविल सचिवालय में अभी भी लागू है.
जून में कश्मीर की मुख्यमंत्री ने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया था जिसके बाद से वहां राज्यपाल शासन लगाया गया था जो अब राष्ट्रपति शासन में तब्दील हो गया है.
अपनी सांस्कृतिक विरासत पर इस तरह के हमले पर कई कश्मीरी लोगों ने सोशल मीडिया पर लंबी बहस की है.
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस प्रतिबंध की आलोचना की है.
उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, ''मुझे समझ नहीं आया कि फिरन पर प्रतिबंध क्यों लगाया जाना चाहिए. यह एक ऐसा आदेश है जो बिल्कुल समझ में नहीं आता है. ठंड में गर्मी बनाए रखने के लिए फिरन बहुत ही सही तरीका है. इसके अलावा ये हमारी पहचान का हिस्सा भी है. यह आदेश वापस लेना चाहिए.''
कुछ लोगों ने फिरन पहने अपनी तस्वीरें साझा करने के साथ ही इसका महत्व भी बताया है.
एक टीवी चैनल की पत्रकार लिखती हैं कि मैं पार्टी से लेट आई लेकिन मैं काम के समय फिरन पहनती हूं और ये मुझे बहुत पसंद है.
सोशल मीडिया पर एक अन्य यूज़र ने इस प्रतिबंध को उनकी संस्कृति पर हमला बताया है और कहा है कि ये सर्दियों में पहनने वाली पोशाक है और सर्दियों में ही इस पर प्रतिबंध क्यों?
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