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एड्स: दुनिया के सामने बड़ी चुनौती

एड्स की वजह से दुनिया में हर रोज़ लगभग आठ हज़ार लोग मौत का शिकार हो रहे हैं और इस तरह इसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी समस्या का रूप ले लिया है.

दिसंबर महीने की पहली तारीख़ को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है मगर इसके बावजूद जागरूकता की इतनी कमी है कि इसका शिकंजा कसता ही जा रहा है.

दुनिया में जो लगभग चार करोड़ लोग एड्स का शिकार हैं उनके और उनके संबंधियों के लिए तो हर दिन शायद एड्स दिवस ही बन चुका है.

स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इसने मानवता के लिए सबसे बड़ी महामारी का रूप ले लिया है.

भारत में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के आँकड़ों के अनुसार लगभग 45 लाख लोग एड्स का शिकार हो चुके हैं और इससे ज़्यादा मामले सिर्फ़ दक्षिण अफ़्रीका में ही सामने आए हैं.

लगभग तीन दशक पहले एड्स के बारे में लोगों को पता चला और तब से अब तक लगभग साढ़े छह करोड़ लोग इसका शिकार भी हो चुके हैं.

हर मिनट पाँच और हर दिन लगभग 8,000 लोगों की जान ये ले रहा है. पिछले साल लगभग 30 लाख लोग इसकी भेंट चढ़ गए.

सहारा से लगे अफ़्रीकी देशों के लिए एड्स ही लोगों की जान लेने वाला सबसे बड़ा कारण है मगर ये सिर्फ़ वहीं तक सीमित नहीं है और अब डर ये बन गया है कि एड्स जल्दी ही एशिया को भी अपनी चपेट में ले लेगा.

स्थिति नियंत्रण से कितनी बाहर है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यदि अफ़्रीका में पूरी क्षमता से भी अभियान चलाया जाए तब भी मौत की दर सिर्फ़ धीमी ही हो पाएगी बंद नहीं.

दुनिया भर के एड्स के मामलों में से लगभग 15 प्रतिशत तो दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में ही हैं.

जिस तरह इसने विकासशील देशों में अपने पैर फैलाए हैं और इसकी वजह से कई मानवीय समस्याओं के साथ ही आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास को भी ख़तरा पैदा हो गया है.

बात सिर्फ़ रोग के फैलने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके रोगी को समाज में लोगों की नज़रों का जिस तरह सामना करना पड़ता है वह उसे रोज़ एक मौत देता है.

लोगों में जागरूकता भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है.

आज भी स्थिति ऐसी है कि कहीं-कहीं तो पढ़े-लिखे डॉक्टर तक एड्स के रोगियों के पास फटकने से घबराते हैं.

लोगों को इतनी छोटी सी बात नहीं मालूम कि वे कॉन्डम के इस्तेमाल से या साफ़-सुथरी सुई के इस्तेमाल से इस भयानक रोग से बच सकते हैं.

युवा पीढ़ी जिस तरह इस रोग का शिकार बन रही है उससे भविष्य काफ़ी ख़तरनाक रुख़ ले सकता है.

अधिकतर 15 से 24 वर्ष की आयु के बीच के लोग इसकी भेंट चढ़ रहे हैं.

सहारा से लगे अफ़्रीकी देशों में तो महिलाएँ और बच्चे ज़्यादातर इससे प्रभावित हैं और वे ही वहाँ के 80 प्रतिशत तक खाद्य उत्पादन के लिए ज़िम्मेदार हैं. ऐसे में एड्स सिर्फ़ लोगों की जान ही नहीं ले रहा है बल्कि उन्हें खाने से भी महरूम कर रहा है.