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'भागीरथी का उदगम पीछे हट सकता है'
तापमान बढ़ने की वजह से उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की बर्फ़ पिघल रही है जिससे समुद्रों के जल का स्तर बढ़ने और कई द्वीपों के डूब जाने का ख़तरा है. लेकिन तापमान के बढ़ने से पहाड़ों की चोटियों पर जमे हज़ारों साल पुराने ग्लेशियर के पिघलने की रफ़्तार भी तेज़ हो गई है. इतनी तेज़ कि इन ग्लेशियरों के एकदम सूख जाने की भी आशंका है. दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ राजेश कुमार एक ऐसे शोध दल का नेतृत्व कर रहे हैं जो पिछले पंद्रह वर्षों से गंगा को जन्म देने वाले गंगोत्री ग्लेशियर में आ रहे बदलाव का अध्ययन करने में जुटा है. लंदन की यात्रा पर आए डॉ राजेश कुमार ने बीबीसी से बातचीत के दौरान बताया कि अध्ययनों से पता चला है कि गंगोत्री से जुड़े ग्लेशियर दो शताब्दियों से 10 मीटर प्रति वर्ष की रफ़्तार से घट रहा था. अब ये 30 मीटर प्रति वर्ष रफ़्तार से पीछे खिसक रहा है. डॉ राजेश कुमार का कहना था कि हज़ारों साल पहले भागीरथी का उदगम जो गंगोत्री से शुरू होता था, वो अब गोमुख तक पहुँच गया है. उनका कहना है कि अब ये उदगम और पीछे हट सकता है. महत्व हिमालय में लगभग एक हज़ार ग्लेशियर हैं.
इसके अनेक सहायक ग्लेयशियर भी है जिनमें से भृगुपंथ, रक्तवन, चतुरंगी और मेरू जैसे ग्लेशियर तो अब पीछे खिसक गए हैं. लेकिन दुनियाभर में बढ़ते तापमान के कारण ये पिघल रहे हैं. इनसे गर्मियों के दिनों में भी गंगा को लगातार पानी मिलता रहता है. डॉक्टर राजेश कुमार का कहना है कि इसका असर ये हो सकता है कि भागीरथी से गंगा तक कम पानी पहुँचने लगेगा और गंगा की धारा क्षीण पड़ सकती है. |
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