इंसान की तरह ही फ़ैसला करते और खीझते हैं बंदर

अपने किसी फ़ैसले का उचित प्रतिफल न मिलने पर जैसे कई <link type="page"><caption> इंसान</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2012/11/121121_what_makes_us_intelligent_sdp.shtml" platform="highweb"/></link> बेहद उत्तेजित होकर प्रतिक्रिया करते हैं ठीक उसी तरह चिंपाज़ी और बोनोबो (बौना चिंपाज़ी) भी करते हैं.
यह कहना है अमरीका के ड्यूक विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं के एक दल का जिसने एक ऐसा खेल तैयार किया जिसमें फ़ैसले लेने होते थे और जीतने पर खाने की चीज़ें मिलती थीं
इसमें खेल में हारने वाले बंदरों को स्वादिष्ट केले के बजाय हल्का खीरा दिया गया तो उन्होंने ऐसी <link type="page"><caption> प्रतिक्रिया</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/04/120413_tiger_government_property_jk.shtml" platform="highweb"/></link> की जिसे बंदरों की झल्लाहट कहा जा सकता है.
शोध के निष्कर्ष ‘प्लोस वन’ में छपे हैं.
बच्चे जैसे
शोधकर्ताओं ने कॉन्गो के दो वानर अभ्यारण्यों में 23 चिंपांज़ियों और 15 बोनोबो का अध्ययन किया.
येल विश्वविद्यालय में कार्यरत, शोध प्रमुख अलेक्जेंड्रा रोसाटी कहती हैं, “सभी <link type="page"><caption> जानवर</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/03/130301_wildlife_protest_ia.shtml" platform="highweb"/></link> शिकारियों से बचाए गए अनाथ थे. वह एक किस्म की अर्ध कैद जैसी स्थिति में थे लेकिन उनके साथ खेला जाना संभव था.”
डॉ रोसाटी बंदरों की दिक्कतें दूर करने का अध्ययन कर रही हैं ताकि इंसानों में उनकी उत्पत्ति को समझा जा सके.
उन्होंने दो खेल तैयार किए.
पहले में तो जानवर तुरंत एक छोटा खाद्य पदार्थ पाने या इंतज़ार के बाद बड़ा खाद्य पदार्थ पाने के बीच में से एक चुन सकते थे.
दूसरे खेल में एक ‘सुरक्षित’ और ‘जोखिम’ भरे विकल्पों के बीच चुनाव करना था.
सुरक्षित चुनाव में एक कटोरी के नीचे छुपे मूंगफली के छह दाने थे. दूसरी कटोरी के नीचे या तो खीरे का एक टुकड़ा था या फिर पसंदीदा केले का टुकड़ा.

कई चिंपाज़ी और बोनोबो तब बेहद उत्तेजित हो गए जब उन्हें इंतज़ार करना पड़ा या उन्होंने कोई दांव खेला और उसका फ़ायदा नहीं मिला.
शोधकर्ताओं ने बंदरों की कई झल्लाहट भरी हरकतें रिकॉर्ड कीं, जैसे कि “खीझ भरी आवाज़ें” और “चीखें”. इसके अलावा बाड़े की सलाखों को पीटना और रगड़ना.
डॉ रोसाटी कहती हैं, “कई हरकतें तो एकदम किसी बच्चे जैसी लगती हैं जो ‘नहीं मुझे यह चाहिए ही’ चिल्ला रहा हो.”
मनःस्थिति और प्रेरणा
डॉ रोसाटी कहती हैं कि फ़ैसला करने के भावनात्मक परिणाम- निराशा और दुख दोनों ही बंदर प्रजाति में भी मूलभूत रूप से मौजूद हैं और यह सिर्फ़ इंसानों का आद्वितीय गुण नहीं है.
शोधकर्ताओं ने दोनों प्रजातियों में खेल के प्रति अंतर भी देखा. चिंपाज़ी जोखिम उठाने को अधिक तैयार थे और बोनोबो के मुकाबले उनमें ज़्यादा सब्र भी था.
इससे यह माना जा सकता है कि भावनाओं पर नियंत्रण की बंदरों की क्षमता ने उनके रहने के तरीके को प्रभावित किया हो.
डॉ रोसाटी कहती हैं, “इस अंतर से यह पता लग सकता है कि बंदर जंगल में अपना खाना कैसे ढूंढते हैं.”
उनके अनुसार शोध से पता चलता है कि फ़ैसला करने की बंदरों की क्षमता हमारी तरह ही मनःस्थिति और प्रेरणा पर निर्भर करती है.
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