विश्व स्तनपान सप्ताह: ब्रेस्ट मिल्क क्यों फॉर्मूला मिल्क से बेहतर है?

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- Author, स्नेहा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
'मैं यह मानती हूं कि मां का दूध ही बच्चे के लिए सबसे बेहतर होता है. मैं मजबूरी में बच्चे को फॉर्मूला मिल्क पिलाती हूं क्योंकि मुझे बच्चे की ज़रूरत के लिहाज़ से पर्याप्त दूध नहीं होता.''
दिल्ली की रहने वाली प्रणिता ने करीब चार महीने पहले बच्चे को जन्म दिया. यह उनका पहला बच्चा है. वह अपने बच्चे को फॉर्मूला मिल्क पिलाती हैं क्योंकि उन्हें शिशु की ज़रूरत के हिसाब से पर्याप्त दूध नहीं होता. वह डॉक्टर की मदद भी ले रही हैं ताकि उनकी इस समस्या का समाधान हो सके.
प्रणिता को इस बात का अफ़सोस है कि स्तनपान के बारे में वह जागरूक नहीं थीं और बच्चे के जन्म के तत्काल बाद दूध पिलाने में नर्स ने उनकी कुछ ज़्यादा मदद भी नहीं की.
वहीं गुरुग्राम की नितिका का कहना है कि उन्होंने अपने बच्चे को छह महीने तक स्तनपान ही कराया, जिसकी वजह से वह बच्चे के विकास को लेकर आश्वस्त हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) 0-6 महीने तक के शिशु को सिर्फ़ और सिर्फ़ मां का दूध ही पिलाने की सिफ़ारिश करता है. लेकिन फिर भी हमारे आस-पास स्तनपान और ब्रेस्ट मिल्क को लेकर बहसें होती हैं. कई बार कुछ ऐसी बातें कही जाती हैं, जिसका कोई आधार नहीं होता.
डब्ल्यूएचओ इसको लेकर जागरूकता अभियान भी चलाता है और इसी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है-वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक यानी विश्व स्तनपान सप्ताह.
ब्रेस्ट मिल्क के बारे में जानकारियों की कमी नहीं है. इसके फ़ायदे बताते हुए कई बोर्ड और होर्डिंग आप अस्पतालों, आंगनवाड़ी केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों समेत कई सार्वजनिक स्थलों पर भी देखते हैं.
वहीं डॉक्टर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ही उसे मां का पीला गाढ़ा दूध पिलाया जाना चाहिए क्योंकि इससे बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी बढ़ जाती है. लेकिन कई बार सही जानकारी नहीं होने और सहयोग की कमी की वजह से मांएं ब्रेस्ट मिल्क के विकल्प के तौर पर फॉर्मूला मिल्क का इस्तेमाल करती हैं.
वहीं, कई मांओं की शिकायत होती है कि उन्हें पर्याप्त दूध नहीं होता, जिसकी वजह से मजबूरी में उन्हें फॉर्मूला मिल्क का इस्तेमाल करना पड़ता है.

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फॉर्मूला मिल्क को बेबी फॉर्मूला या इन्फेंट फॉर्मूला के नाम से भी जाना जाता है. यह सामान्य तौर पर गाय के दूध से बनता है. इसको ट्रीट करके इसे बच्चे के लिहाज़ से उपयुक्त बनाया जाता है.
इसे ब्रेस्ट मिल्क का विकल्प माना जाता है लेकिन अगर बच्चे की सेहत की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन स्तनपान को ही बच्चों के लिए आदर्श आहार मानता है. स्तनपान और फॉर्मूला मिल्क को लेकर कई तरह के मिथक भी हैं. जानकारियों के अभाव में लोग कही-सुनी बातों पर विश्वास कर लेते हैं.
जैसे-
- फॉर्मूला मिल्क से बच्चे का विकास बेहतर होता है.
- फॉर्मूला मिल्क से बच्चा भूखा नहीं रहता.
- फॉर्मूला मिल्क में बच्चे के लिए ज़रूरी हर एक पोषक तत्व मौजूद है.
- फॉर्मूला मिल्क से ब्रेस्ट मिल्क जितना ही लाभ होता है. ब्रेस्ट मिल्क से बच्चे का पेट नहीं भरता.
- ब्रेस्ट मिल्क पिलाने से मां कमज़ोर होती है.

जब इन सवालों के बारे में हमने एम्स की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर वत्सला डढ़वाल से बात की तो उन्होंने कहा कि एक मां अपने बच्चे को अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहती है. यह जानकारी सारी मांओं के पास होती है कि बच्चे के लिए स्तनपान ही बेहतर है. समस्या यहां आती है कि गलत जानकारी की वजह से वह मान बैठती हैं कि ब्रेस्ट मिल्क उसके शिशु के लिए पर्याप्त नहीं है.
शिशु के पाचन के लिए ज़रूरी
वह कहती हैं, '' निश्चित तौर पर मां का दूध ही पहली प्राथमिकता है, क्योंकि यह ख़ास तौर पर शिशु के लिए ही बना है. फॉर्मूला मिल्क को इस तरह तैयार से किया जाता है और उसमें वो चीज़ें डाली जाती हैं, जो ब्रेस्ट मिल्क के क़रीब हो. ''
''प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट दोनों में हैं लेकिन ब्रेस्ट मिल्क की ख़ासियत है कि उसमें जो प्रोटीन है, वह सुपाच्य है. इससे बच्चे को दूध आसानी से पचाने में मदद मिलती है और उसे कब्ज़ की समस्या नहीं होती. ''
बच्चे की बेहतर इम्यूनिटी के लिए ज़रूरी
''इसके अलावा ब्रेस्ट मिल्क में कुछ ऐसे तत्व हैं, जो इम्यूनिटी को बढ़ाते हैं. संक्रमण को रोकते हैं. यह क्षमता फॉर्मूला मिल्क में नहीं है. कुछ ऐसे फैटी एसिड्स भी हैं, जो बच्चे के मस्तिष्क विकास के लिए ज़रूरी हैं. और ब्रेस्ट मिल्क में जो विटामिन हैं, वो प्राकृतिक है जबकि फॉर्मूला मिल्क में सिंथेटिक हैं. ''
जब हमने डॉक्टर वत्सला से इस मिथक के बारे में बात की कि फॉर्मूला मिल्क से बच्चे का विकास तेजी से होता है तो उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है.
वे कहती हैं, ''यह एक धारणा है. दरअसल, 0-6 महीने के बीच बच्चे को मां के दूध के अलावा किसी चीज की ज़रूरत नहीं होती है, उनके लिए यही संपूर्ण आहार है. ऐसा देखा गया है कि जिन बच्चों को स्तनपान कराया गया, उनमें आगे चलकर मोटापे की समस्या कम होती है. और फॉर्मूला मिल्क जिन बच्चों को दिया जाता है, उनका वज़न थोड़ा ज्यादा बढ़ता है. ''

संक्रमण का ख़तरा कम
वहीं, स्तनपान से डायरिया जैसी बीमारियां दूर रहती हैं. छाती का संक्रमण या कान का संक्रमण फॉर्मूला मिल्क पीने वाले बच्चे की तुलना में ब्रेस्ट मिल्क पीने वाले बच्चों में कम देखे जाते हैं.
मां-बच्चे के बीच मज़बूत भावनात्मक जुड़ाव
वहीं डॉक्टर ये भी बताते हैं कि स्तनपान कराना मां के लिए भी जरूरी है और यह बच्चे के लिए भी ज़रूरी है. यह सिर्फ़ पोषण तक ही सीमित नहीं है. जो मां अपने बच्चे को स्तनपान करा रही है, ख़ुद के करीब रख रही है, तो बच्चे की मां के साथ भावनात्मक जुड़ाव मज़बूत होता है. बच्चा रोता भी कम है.
डॉ. वत्सला कहती हैं कि गर्भावस्था के दौरान में मां का वज़न बढ़ता है और जब मां अपने बच्चे को स्तनपान कराना शुरू करती हैं तो इससे उनका वज़न कम होने में भी मदद मिलती है.

दिन में कितनी बार बच्चे को स्तनपान कराएं
उनके अनुसार, ''बच्चे को जब भूख लगे तब आप स्तनपान करा सकती हैं. जन्म के बाद शुरुआती कुछ दिनों तक बच्चे को स्तनपान करना सीखने में समय लगता है, ऐसे में हो सकता है कि कम अंतराल पर दूध पिलाना पड़े लेकिन धीरे-धीरे तीन-चार घंटे का एक चक्र बन जाता है. और रात को भी मां को कम से कम बच्चे को दो बार दूध पिलाना पड़ता है.''
जो मां किसी वजह से स्तनपान नहीं करा पाती हैं, वो क्या करें?
डॉक्टर वत्सला कहती हैं कि कई बार ऐसा होता है कि बच्चे की ज़रूरत के अनुसार मां को दूध नहीं होता है तो मां को सबसे पहले ख़ान-पान में पोषक पदार्थों की मात्रा बढ़ानी चाहिए. उन्हें ज़्यादा पानी पीना चाहिए और तनाव नहीं लेना चाहिए. इससे मां को ज़्यादा दूध बनेगा.
वहीं, कुछ दवाइयां भी हैं, जिससे मदद मिलती है. हो सकता है कि इसके बाद भी परेशानी हो लेकिन शिशु को पोषक आहार तो देना ही है न! ऐसे में डॉक्टर की सलाह पर ही फॉर्मूला मिल्क दें.
यह ध्यान रखना है कि आप जो फॉर्मूला मिल्क और पानी की मात्रा मिला रही हैं, वह जैसे बताया गया हो वैसा ही हो. क्योंकि ज़्यादा पानी मिलाने से हो सकता है कि बच्चे को ज़रूरी पोषण न मिल पाए. और जो पानी इस्तेमाल कर रहे हैं, उसको अच्छे से गर्म करके फिर ठंडा करके ही इस्तेमाल करें. बोतल या कटोरी-चम्मच की साफ़-सफ़ाई पर विशेष ध्यान रखना है. ऐसा न होने पर बच्चे को डायरिया होने का ख़तरा होता है.

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फॉर्मूला मिल्क के बारे में डॉक्टर से सलाह लेना बेहद ज़रूरी
देश में स्तनपान सुरक्षा, बढ़ावा एवं सहायता के लिए जो क़ानून है, उसके तहत शिशु आहार एवं बोतलों के प्रयोग को बढ़ावा देने पर पाबंदी है. इसके लिए डब्ल्यूएचओ ने 1981 में 'इंटरनेशनल कोड ऑफ मार्केटिंग ब्रेस्टमिल्क सब्सटीट्यूट्स' तैयार किया.
इस संहिता के आधार पर भारत में 1992 में आईएमएस एक्ट लागू हुआ. इस बारे में डब्ल्यूएचओ का कहना है कि स्तनपान की जगह पर बाज़ार में इसके विकल्प के तौर पर अनुचित तरीके से जो चीज़ें बताई जाती हैं और उसकी मार्केटिंग की जाती है, उससे दुनिया भर में स्तनपान में सुधार की कोशिशों में बाधा पैदा होती है. मांओं को गलत जानकारी मिलती है.
यूनिसेफ के अनुसार, वैसे शिशु जिन्हें केवल स्तनपान कराया जाता है, उनकी मृत्यु की आशंका उन शिशुओं की तुलना में 14 गुना कम होती है, जिन्हें स्तनपान नहीं कराया जाता है. हालांकि, मौजूदा समय में सिर्फ़ 41 प्रतिशत शिशुओं को ही 0-6 महीने के बीच सिर्फ़ स्तनपान ही कराया जाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देशों ने 2025 तक इस दर को बढ़ाकर कम से कम 50 प्रतिशत करने की प्रतिबद्धता जताई है.
डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ के अनुसार, शिशुओं को उनके पहले 6 महीनों के लिए मां के दूध के अलावा कुछ भी नहीं देना चाहिए, जिसके बाद उन्हें 2 साल या उससे अधिक उम्र तक स्तनपान जारी रखना चाहिए और इसके साथ अन्य पौष्टिक और सुरक्षित खाद्य पदार्थ देना चाहिए.

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वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक कब से और क्यों मनाया जाता है?
इसकी शुरुआत 1992 से हुई और हर साल इसे एक से सात अगस्त के बीच मनाया जाता है. दरअसल, इटली के फ्लोरेंस के स्पेडेला डेगली इनोसेंटी में 30 जुलाई- एक अगस्त, 1990 के बीच 'ब्रेस्टफीडिंग इन द 1990: ए ग्लोबल इनीशिएटिव' विषय पर एक बैठक आयोजित की गई.
इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)/यूनिसेफ के अधिकारी और सदस्य देशों के अधिकारी मौजूद थे. यहीं पर 'इनोसेंटी डेक्लेरेशन' पर हस्ताक्षर हुए. इसमें यह माना गया कि स्तनपान कराना बच्चे और मां दोनों के लिए एक ज़रूरी प्रक्रिया का हिस्सा है.
इस दूध में शिशु के विकास से जुड़े अहम तत्व मौजूद हैं. इसमें यह भी माना गया कि स्तनपान कराना न केवल शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है बल्कि मां के स्वस्थ रहने में भी इसकी भूमिका है. इससे स्तन और गर्भाशय का कैंसर होने का खतरा कम होता है.
'इनोसेंटी डेक्लेरेशन' का लक्ष्य स्तनपान के लिए सुरक्षा, प्रोत्साहन और सहयोग प्रदान करना रखा गया. हर साल स्तनपान सप्ताह का एक थीम होता है. इस साल का थीम-स्टेप अप फॉर ब्रेस्टफीडिंग एजुकेट एंड सपोर्ट है. इसका मकसद ऐसे लोगों का एक चेन (श्रृंखला) तैयार करना है जो इस विषय पर काम करते हैं.
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