विश्व थायरॉइड दिवस: थायरॉइड है क्या? क्या यह बीमारी जानलेवा है?

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- Author, रवि कुमार पनंगीपल्ली
- पदनाम, बीबीसी तेलुगू
थायरॉइड गर्दन के पास तितली के आकार की एक ग्रंथि (ग्लैंड) होती है. भारत में हर 10 में से एक शख़्स थायरॉइड की समस्या से जूझ रहा है. 2021 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में क़रीब 4.2 करोड़ थायरॉइड के मरीज़ हैं.
थायरॉइड के साथ सबसे बड़ी दिक़्क़त ये है कि क़रीब एक तिहाई लोगों को पता ही नहीं होता कि वे इससे पीड़ित हैं. वैसे यह बीमारी महिलाओं में ज़्यादा पाई जाती है. गर्भावस्था और डिलिवरी के पहले तीन महीनों के दौरान, क़रीब 44 फ़ीसदी महिलाओं में थायरॉइड की समस्या पनप जाती है.
आंध्र प्रदेश के गुंटूर के मशहूर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ बेल्लम भरणी ने इस बारे में बीबीसी से बातचीत की. उन्होंने बताया, 'यह ग्रंथि दिल, दिमाग़ और शरीर के दूसरे अंगों को सही तरीक़े से चलाने वाले हॉर्मोन पैदा करता है. यह शरीर को ऊर्जा का उपयोग करने में सक्षम बनाता है और उसे गर्म रखता है.'
वो कहते हैं, 'एक तरह से यह ग्रंथि शरीर की बैटरी की तरह काम करती है. यदि यह ग्रंथि कम या ज़्यादा हार्मोन छोड़ती है, तो थायरॉइड के लक्षण दिखाई देने लगते हैं.'
थायरॉइड ग्रंथि जब शरीर के लिए पर्याप्त हार्मोन पैदा नहीं कर पाती, तो इसे 'हाइपो-थायरॉइडिज़्म' कहा जाता है. यह उस खिलौने जैसा मामला है, जिसकी बैटरी ख़त्म हो गई हो. और तब शरीर पहले जैसा सक्रिय नहीं रहता और इसके रोगी जल्दी थक जाते हैं.
वहीं यदि थायरॉइड ग्रंथि ज़्यादा हार्मोन पैदा करने लगे, तो इस समस्या को 'हाइपर-थायरॉइडिज़्म' कहते हैं. ऐसे में मरीज़ों की दश उस इंसान जैसी होती है, जिसने बहुत ज़्यादा कैफ़ीन ले लिया हो.
तीसरी स्थिति थायरॉइड ग्रंथि की सूजन है, जिसे गॉयटर (गलगंड या घेघा) कहते हैं. दवाओं से ठीक न होने पर इसे सर्जरी करके ठीक करने की ज़रूरत पड़ सकती है.

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थायरॉइड के क्या हैं लक्षण?
हाइपो-थॉयरायड के लक्षण: वज़न बढ़ना, चेहरे, पैरों में सूजन, कमज़ोरी, आलस होना, भूख न लगना, बहुत नींद आना, बहुत ठंड लगना, महिलाओं के मामले में माहवारी चक्र का बदल जाना, बालों का झड़ना, गर्भधारण में समस्या आदि.
हाइपर-थायरॉइड के लक्षण: डॉ बेल्लम भरणी के अनुसार, चूंकि इसमें ज़रूरत से ज़्यादा हार्मोन निकलता है, इसलिए भूख लगने और पर्याप्त भोजन करने के बाद भी वज़न घटने लगता है और दस्त होती है. साथ ही बेचैनी होती है, हाथ और पैर कांपते हैं और गर्मी ज़्यादा लगती है. मूड स्विंग करने और नींद न आने की समस्या भी होती है. धड़कन में उतार-चढ़ाव होता है और नज़र कमज़ोर होती है.
थायरॉइड की समस्या पहचानने के कोई ख़ास लक्षण नहीं हैं. स्पेनिश सोसाइटी ऑफ़ एंडोक्राइनोलॉजी के डॉ फैंसिस्को जेवियर सैंटामारिया ने थोड़ा पहले बीबीसी को बताया था कि थायरॉइड वाक़ई एक बीमारी है.
उदाहरण के लिए, कई बार हाइपो-थायरॉइडिज़्म को ग़लती से गंभीर अवसाद की समस्या मान लिया जाता है. यह समस्या बहुत लोगों को होती है. कई लोग इसके इलाज में देर कर देते हैं.
थायरॉइड के 10 फ़ीसदी रोगी हाइपो-थायरॉइडिज़्म से पीड़ित हैं, लेकिन उनमें से आधे को अपनी समस्या मालूम भी नहीं होती.
डॉ सैंटामारिया कहते हैं कि पुरुषों और महिलाओं में इसके लक्षण हालांकि समान होते हैं, लेकिन महिलाओं में इसका पता जल्दी चल जाता है. लगभग 80 फ़ीसदी महिलाएं थायरॉइड से पीड़ित होती हैं.
वो कहते हैं, 'आम तौर पर 80 से 90 फ़ीसदी थायरॉइड मरीज़ इलाज के बाद ठीक हो जाएंगे. लेकिन कई पूरी तरह ठीक नहीं होंगे. कुछ मामले तो बेहद जटिल होंगे. हाइपो-थायरायडिज़्म के ज्यादातर मामलों में ऑटो-इम्यून सिस्टम जैसी कोई चीज़ बनी रहती है. इलाज के बाद भी ऑटो-इम्यूनिटी दूसरे अंगों पर असर डालती है.'

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T3-T4-TSH टेस्ट से क्या पता चलता है?
डॉ भरणी का कहना है कि डायबिटीज़ की तरह हम थायरॉइड का हाल भी ठीक से पता नहीं कर सकते.
वो बताते हैं कि हाइपो-थायरॉइडिज़्म का मतलब T3, T4 का स्तर कम हो जाना होता है. वहीं TSH यानी थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन का स्तर बढ़ जाता है. दूसरी ओर, हाइपर-थायरॉइडिज़्म में T3, T4 का स्तर बढ़ जाता है और TSH का स्तर कम हो जाता है.
TSH की जहां तक बात है तो स्टार हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी का मानक है कि एक लीटर ख़ून में थायरॉइड इकाई 0.5 से 5 मिली होनी चाहिए. TSH से यह पता चलता है कि थायरॉइड ग्रंथि ठीक से काम कर रही है या नहीं.
हालांकि इसके वैल्यू उम्र और अवस्था के अनुसार बदलते रहते हैं यानी बच्चों, वयस्कों और गर्भवती महिलाओं में ये बदलते रहते हैं.
डॉ भरणी का कहना है कि यदि परिवार के किसी सदस्य को थायरॉइड की समस्या है, तो उनके बच्चे भी इसकी चपेट में आ सकते हैं. दुर्भाग्य की बात है कि इससे बचने के लिए कोई एहतियाती उपाय नहीं किए जा सकते और केवल रोग होने पर इसका इलाज ही हो सकता है.

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क्या यह समस्या जानलेवा है?
यदि हाइपो-थायरॉइडिज़्म की समय पर पहचान नहीं होती, तो कई बार दिमाग़ में समस्याएं पैदा हो सकती हैं. वहीं हाइपर-थायरॉइडिज़्म के चलते धड़कन बढ़ती-घटती है, जिससे दिल की बीमारियां पैदा हो सकती हैं.
हाइपो-थायरॉइडिज़्म के मामले में सोडियम का स्तर गिरने से मरीज़ कोमा में जा सकता है. बच्चों के पैदा होने के बाद यदि यह समस्या पहचानी नहीं जाती, तो उनका मानसिक विकास रूक सकता है. उनका आईक्यू लेवल कम हो सकता है.
चूंकि इलाज से यह समस्या आसानी से ठीक हो सकती है, तो इस बीमारी को नज़रअंदाज करना उचित नहीं है. अन्यथा बच्चों का भविष्य ख़तरे में पड़ सकता है. स्कूल जाने वाले बच्चों में ऐसा होने पर उनकी वृद्धि रूक सकती है.
यदि थायरॉइड की इन दोनों समस्याओं की समय पर पहचान नहीं होती, तो कभी-कभी वे जानलेवा भी बन सकते हैं.
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