कोरोना वायरस के सभी वैरिएंट के लिए क्या एक वैक्सीन संभव है? - दुनिया जहान

इमेज स्रोत, Getty Images
तारीख़ थी 24 नवंबर 2021. दक्षिण अफ़्रीका के वैज्ञानिकों ने सार्स CoV2 के एक नए और 'परेशान करने वाले' वैरिएंट के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन से जानकारी साझा की.
तब ये आशंका भी ज़ाहिर की गई कि नया वैरिएंट कोविड की मौजूदा वैक्सीन का सुरक्षा चक्र भेद सकता है.
दो दिन बाद इसे 'वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न' घोषित कर दिया गया. इसे ग्रीक अल्फ़ाबेट में इसके क्रम के मुताबिक नाम दिया गया ओमिक्रॉन.
दुनिया के तमाम देशों ने दक्षिण अफ़्रीका और उसके उन पड़ोसी देशों से आवाजाही पर रोक लगा दी जहां ओमिक्रॉन तेज़ी से फैल रहा था. कोविड की एक ओर संभावित लहर रोकने के लिए कई देश बूस्टर डोज़ की तैयारी में जुट गए.
बीते दो साल के दौरान कोविड संक्रमण की हर लहर ने दुनिया को मुश्किल में डाला है. फ़िलहाल ये दिक़्क़त चीन में दिख रही है. भारत में भी मामले बढ़ रहे हैं. मौजूदा वैक्सीन के बेअसर होने की आशंकाओं के बीच कोविड वायरस ने वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती पेश की है.
वैज्ञानिकों के सामने सवाल है कि क्या वो कोविड के लिए कोई यूनिवर्सल वैक्सीन तैयार कर सकते हैं, यानी एक ऐसा टीका जो कोविड के हर वैरिएंट के ख़िलाफ़ कारगर हो?

इमेज स्रोत, MODERNA
क्या है चुनौती?
'द कोअलिशन फ़ॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन्स' यानी सेपी के चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव रिचर्ड हैचेट कहते हैं, "मुझे लगता है कि ज़्यादातर हेल्थ एक्सपर्ट इस बात से सहमत होंगे कि हम ऐसी स्थिति हासिल नहीं कर पाएंगे जहां पूरी दुनिया का हर तीन या छह महीने टीकाकरण कर सकें. नए वैरिएंट जिस रफ़्तार से सामने आ रहे हैं, उसे देखकर हैरानी होती है."
सेपी का गठन साल 2017 में हुआ और इस संगठन का मकसद नए रोगाणुओं से मुक़ाबले के लिए वैक्सीन तैयार करना है. रिचर्ड बताते हैं कि कोरोना वायरस की वजह से महामारी के ख़तरे की आशंका है और सेपी ने यूनिवर्सल वैक्सीन तैयार करने का लक्ष्य तय किया है.
अभी जो वैक्सीन मौजूद हैं उनसे गंभीर बीमारी और मौत की दर पर काबू पाने में बहुत कामयाबी मिली है. लेकिन महामारी रोकने के लिए हर नए वैरिएंट के साथ एक और टीका लेना टिकाऊ रास्ता नहीं है.
रिचर्ड कहते हैं, "हम बात करते रहे हैं कि कोविड कहीं जाने वाला नहीं है. हमें लंबे समय के लिए सोचते हुए वैक्सीन तैयार करने की ज़रूरत है. हमें इसके लिए निवेश करना होगा और हम ये तर्क बीते एक साल से दे रहे हैं."
सेपी ने कोरोना वायरस वैक्सीन से जुड़ी रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए 2000 लाख डॉलर का फ़ंड बनाया है.
रिचर्ड बताते हैं, "पहला मक़सद ऐसी वैक्सीन तैयार करने का है जो व्यापक स्तर पर प्रतिरक्षा मुहैया कराती हो. ये ऐसी वैक्सीन होगी जो न सिर्फ़ आज मौजूद कोविड वैरिएंट ओमिक्रॉन से सुरक्षा देती हो बल्कि जो आने वाले वायरस होंगे, उनसे भी बचाव करती हो."

इमेज स्रोत, ROGER HARRIS/SCIENCE PHOTO LIBRARY
कई वैज्ञानिकों के मन में इस आइडिया को लेकर संशय है, लेकिन कई दूसरे मानते हैं कि वैश्विक महामारी के दौर में कुछ बड़ा होने की उम्मीद लगाना बेमानी नहीं है.
रिचर्ड कहते हैं, "कुछ और वायरस हैं, जैसे कि स्मॉल पॉक्स (चेचक) जो ऑर्थोपॉक्स फ़ैमिली का वायरस है. हम इनके लिए एक वैक्सीन बनाने में कामयाब रहे हैं जो इस फ़ैमिली के किसी भी वायरस के ख़िलाफ़ असरदार है. वैक्सीनिया वैक्सीन स्मॉल पॉक्स के अलावा मंकी पॉक्स और काउ पॉक्स से भी बचाव करती है. कोरोना वायरस की बात करें तो भी ऐसे प्रमाण हैं जो इशारा करते हैं कि एक यूनिवर्सल वैक्सीन बनाना मुमकिन है."
बीते कई दशक से इन्फ्लूएंजा और एचआईवी के लिए यूनिवर्सल वैक्सीन विकसित करने की कोशिशें नाकाम हो रही हैं.
लेकिन रिचर्ड मानते हैं कि कोरोना वायरस का तोड़ जल्दी निकाल लिया जाएगा.
वो कहते हैं कि अगर कोविड के तमाम वैरिएंट से सुरक्षा देने वाली वैक्सीन ही तैयार हो गई तो ये भी अहम होगा.

इमेज स्रोत, Getty Images
नए रास्ते
बीते साल नवंबर में सेपी ने इसराइल की कंपनी मिगवैक्स को वैक्सीन के लिए मदद दी. मिगवैक्स एक स्टार्टअप है. ये पशु पक्षियों की वैक्सीन विकसित करने की क्षमता रखने वाले एक बड़े रिसर्च इंस्टीट्यूट का हिस्सा है.
संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ और मिगवैक्स के सलाहकार प्रोफ़ेसर इटमार शैलिट बताते हैं, "एक वैक्सीन चिकिन कोरोना वायरस से बचाव के लिए है. ये कोरोना वायरस के आने के कुछ हफ़्ते पहले ही तैयार हुई थी."
कोविड-19 जिस वक्त दुनिया भर में फैल रहा था तब पक्षियों ख़ासकर मुर्गों पर प्रभावी कोरोना वैक्सीन की गोली विकसित की जा रही थी.
वैज्ञानिकों को भरोसा था कि इंसानों के लिए भी ऐसी वैक्सीन बन सकती है. एक ऐसा टीका जिसके लिए इंजेक्शन ज़रूरी न हो, इसे तरक्की का नया पड़ाव माना जा रहा है. कई लोग टीके लेने से इसलिए भी बचते हैं कि उन्हें सुई से डर लगता है.
टेबलेट का एक और फ़ायदा है कि ऐसे टीके के लिए किसी प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी की ज़रूरत नहीं होगी. मिगवैक्स को जो मदद मिली उसका पहला हिस्सा इसी से जुड़ी रिसर्च के लिए था.
मदद का दूसरा हिस्सा यूनिवर्सल यानी ऐसे टीके को विकसित करने के लिए है जो हर तरह के वायरस पर प्रभावी हो.
प्रोफ़ेसर इटमार शैलिट बताते हैं, "इस बारे में विचार ये है कि क्यों न हम एस प्रोटीन को लें और ये कोशिश करें कि इसके ऊपरी सिरे पर अभी मौजूद वायरस के कुछ प्रोटीन को रखें."

इमेज स्रोत, Getty Images
एस प्रोटीन वही स्पाइक प्रोटीन है जिसके बारे में हमने बहुत कुछ सुना है. मिगवैक्स मल्टी वेरिएंट वैक्सीन बनाने की कोशिश में है. ये उन वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न के ख़िलाफ़ उपयोगी हो सकती है जिनके नाम ग्रीक वर्णमाला के आधार पर रखे गए हैं.
प्रोफ़ेसर इटमार शैलिट कहते हैं, "इसे ऐसे समझें कि मान लीजिए कि हमारे पास वुहान की तरह का वायरस है. अब क्या हम इसके ऊपरी सिरे पर अल्फा, बीटा, डेल्टा, ओमिक्रॉन वायरस के एक या दो प्रोटीन रख सकते हैं. इसके बाद हम इस प्रोटीन को ना सिर्फ़ एंटी वुहान एंटीबॉडी, एंटी डेल्टा एंटीबॉडी बल्कि एंटी ओमिक्रॉन एंटीबॉडी देते हैं. इससे यूनिवर्सल वैक्सीन नहीं बल्कि मल्टी वैरिएंट वैक्सीन तैयार होगी. ये लगभग यूनिवर्सल यानी हर वैरिएंट पर कारगर रहेगी क्योंकि हम मौजूदा दौर में फैल रहे हर तरह के वायरस से बचाव हासिल कर लेंगे."
एंटीबॉडी हमारे इम्यून सिस्टम (प्रतिरोधक तंत्र) की पहली रक्षा पंक्ति है. उनका काम है कि वायरस जैसे बाहरी हमलावर जब हमें बीमार करें, उसके पहले उन्हें पहचान कर नष्ट करना.
इस वैक्सीन का लक्ष्य हमारे इम्यून सिस्टम को ये सिखाना है कि वो सार्स COV2 के हर एक वैरिएंट से कैसे लड़े.
उनके वैज्ञानिक भविष्य में सामने आ सकने वाले वायरसों के हिसाब से तैयारी कर रहे हैं ताकि ख़तरा बनने के पहले उनसे बचाव के लिए वैक्सीन बनाई जा सके.
प्रोफ़ेसर इटमार शैलिट कहते हैं, "मल्टी वैरिएंट वैक्सीन के लिए हम अभी मौजूद वैरिएंट का इस्तेमाल कर रहे हैं. हम आगे के लिए लगातार अनुमान लगा रहे हैं. हो सकता है कि अगला वैरिएंट चार, पांच या छह महीने में दिखाई दे. नया वैरिएंट आए और डेल्टा की तरह संक्रमण फैलाए, हम उसके पहले ही वैक्सीन बना सकेंगे."
मिगवैक्स की टैबलेट वैक्सीन के ट्रायल में अभी एक और साल का वक़्त लग सकता है. लेकिन ये बात साफ है कि यूनिवर्सल वैक्सीन पर काम जारी है.

इमेज स्रोत, Getty Images
अब तक का सफ़र
इंसानों को प्रभावित करने वाले सात कोरोना वायरस हैं. इनमें से चार की वजह से मामूली सर्दी ज़ुख़ाम होता है. लेकिन बाकी तीन सार्स COV1, 2 और मर्स जानलेवा हो सकते हैं.
सार्स COV2 के मूल वायरस की पहचान साल 2019 के अंत में चीन में की गई थी. इसके बाद सिर्फ़ दो साल के अंदर पांच म्यूटेशन ऐसे हैं, जिन्हें 'वायरस ऑफ़ कंसर्न' बताया गया.
ये हैं अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा और ओमिक्रॉन.
स्वास्थ्य से जुड़े मामलों की इतिहासकार डॉक्टर लारा मार्क्स बताती हैं, "पहले कोरोना वायरस की पहचान 1930 के दशक में की गई थी. तब चूज़ों में सांस से जुड़ी बीमारी फैल गई थी. कई साल तक कोरोना वायरस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया. तब ज़्यादातर लोग मानते थे कि इस वायरस का असर सिर्फ़ जानवरों पर होता है. ये इंसानों के स्वास्थ्य को नुक़सान नहीं पहुंचाता."
डॉक्टर लारा बताती हैं, "साल 1962 में इंसानों में पहली बार कोरोना वायरस की पहचान हुई. ये वायरस उन लोगों में देखा गया जिन्हें आम सर्दी जुकाम था. 1960 से 70 के दशक की तरफ बढ़ते समय बहुतेरे लोगों की कोरोना वायरस में दिलचस्पी नहीं थी. तब मान लिया गया कि ये इंसानों के लिए नुक़सानदेह नहीं है. इससे बस सर्दी जुकाम होता है. इसलिए इस पर ज़्यादा निवेश नहीं किया गया. ज़्यादातर काम 1970 और 80 के दशक में हुआ. जानवरों के स्वास्थ्य पर नज़र रखने वालों ने कोरोना वायरस पर नज़र रखनी शुरू की. इंसानों के नज़रिए से इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी."

इमेज स्रोत, Reuters
लेकिन अब ये स्थिति बदल गई है और वो भी हमेशा के लिए. अब थोड़े-थोड़े वक्त के बाद कोरोना वायरस फैल रहा है. लारा मार्क्स सार्स COV3 से जुड़ी आशंकाओं को लेकर भी राय रखती हैं.
डॉक्टर लारा मार्क्स कहती हैं, "अगर अगले कुछ सालों में ऐसा कोई वायरस न आए तो मुझे बड़ी हैरानी होगी. कई वैज्ञानिक और हेल्थ एक्सपर्ट इसे लेकर चिंतित भी हैं. दिक़्क़त ये है कि अब स्थिति ऐसी है कि इंसान जानवरों के बहुत क़रीब रह रहे हैं. वायरसों के ट्रांसमिट होने का ख़तरा भी काफी ज़्यादा है. इसके बहुत आसार हैं कि हम इंसानों के लिए ख़तरा पैदा करने वाले किसी वायरस को पैदा होते देखें."
लेकिन कोरोना वायरस वैक्सीन में पैसे और मेहनत का जो निवेश हुआ, वो काफ़ी कामयाब रहा. इससे अगली पीढ़ी की वैक्सीन तैयार करने में मदद मिल सकती है.
डॉक्टर लारा कहती हैं, "कोरोना वायरस वैक्सीन की कामयाबी से जुड़ी एक अहम बात बीमारी से जुड़ा ख़तरा भी है. अगर आप इससे पहले के टीकों को देखें चाहे वो पोलियो की वैक्सीन हो या फिर खसरे या मम्स का टीका हो, और ये भी याद कीजिए कि इनके प्रति लोगों का रुख़ कैसा रहा. तमाम लोग इन बीमारियों को ख़तरे के तौर पर नहीं देखते. इसकी एक वजह वैक्सीन की कामयाबी भी रही. मैं समझना चाहती हूं कि क्या ऐसा कोरोना वायरस के साथ भी हो सकता है. एक बार कामयाब वैक्सीन मिलेगी और बीमारी काबू में आएगी और लोग भूल जाएंगे कि ऐसे वायरसों के लिए वैक्सीन होना कितना ज़रूरी है."
पहले क्या हुआ है ये भूल जाना इंसान के स्वभाव का हिस्सा है.
लारा कहती हैं कि वैक्सीन के साथ भी यही दिक़्क़त है, उनकी कामयाबी के साथ हम भूल जाते हैं कि इस दिशा में कितनी मेहनत और पैसे का निवेश हुआ है.

इमेज स्रोत, Getty Images
प्रयास है ज़रूरी
वैक्सीन तैयार करना एक मुश्किल काम है. इसमें कई साल का वक़्त और बहुत धन लगता है.
कई वैक्सीन नाकाम हो जाती हैं. अगर हम कोरोना वायरस की यूनिवर्सल वैक्सीन की बात करते हैं तो जो पहली बाधा सामने आती है, उसका विज्ञान से ज़्यादा लेना-देना नहीं है. अगर वैक्सीन से जुड़ी दुनिया की बात करें तो यहां यूनिवर्सल का मतलब वैसा नहीं होता जैसा शायद आप सोचते हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सस प्रोफ़ेसर जैसन मैक्लेलान कहते हैं, "इसे लेकर किसी के पास कोई सटीक परिभाषा नहीं है. किसी के पास सटीक लक्ष्य भी नहीं है. ऐसे में कोई तुलना करना दिक़्क़त भरा काम है."
जैसन बताते हैं कि यूनिवर्सल वैक्सीन बनाने की कोशिश क्यों एक बड़ी चुनौती है? हमारे इम्यून सिस्टम को ऐसे अलग-अलग वायरस को पहचानना होगा जो एक दूसरे से जुड़े हुए भी हैं. मान लीजिए कि परिवार के तमाम लोग किसी कार्यक्रम में जुटे हों और आपको वहां मौजूद हर रिश्तेदार को नाम से पहचानना हो. भले ही उनमें से कोई ऐसा भी हो जिसे आपने पहले कभी नहीं देखा हो.
जैसन कहते हैं, "यूनिवर्सल के मायने होंगे कि इसके जरिए सार्स COV2 के सभी वैरिएंट के ख़िलाफ़ सुरक्षा मिले. इसके भी आगे सार्स की तरह के सभी कोरोना वायरस, मर्स की तरह के कोरोना वायरस और बाकी वो सभी कोरोना वायरस जिनकी वजह से सर्दी ज़ुख़ाम होता है, यूनिवर्सल की परिभाषा में हर तरह के कोरोना वायरस आ जाएंगे. इनमें से हर एक को जोड़ते हुए वैक्सीन हासिल करना और मुश्किल होता जाएगा."
जैसन बताते हैं कि वो अपनी प्रयोगशाला में वायरल प्रोटीन की थ्री डी संरचना तय करने की कोशिश करते हैं. इसके ज़रिए वो थ्री डी प्रिंट हासिल करते हैं. कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन की सरंचना से जुड़ी जानकारी वैक्सीन तैयार करने में काम आती है. स्पाइक प्रोटीन ही वो चाबी है जिसके ज़रिए कोरोना वायरस दाखिल होने का रास्ता बनाता है. प्रोटीन के इस हिस्से को अणु के स्तर तक माप लें तो वैज्ञानिक इसे इतना स्थिर कर सकते हैं कि ये एक कोरोना वैक्सीन के लिए टार्गेट बन सके.

इमेज स्रोत, EPA/JAGADEESH NV
सार्स COV2 के मूल वायरस में म्यूटेशन का अनुमान लगाना आसान था. वायरस ऐसा ही करते हैं. बीते साल नवंबर में वैज्ञानिकों ने पाया कि ओमिक्रॉन वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में 30 ज़्यादा म्यूटेशन हुए हैं. इसने ख़तरे की घंटी बजा दी कि ओमिक्रॉन हमारी मौजूदा वैक्सीन से मिलने वाली प्रतिरक्षा को धता बता सकता है.
तमाम तरह के कोरोना वायरसों पर प्रभावी वैक्सीन तैयार करने के लिए जेसन मैक्लॉलेन का डिजायन स्पाइक प्रोटीन के ज़्यादा स्थिर हिस्से को टार्गेट करता है.
जैसन कहते हैं, "हम जिस वैक्सीन पर काम कर रहे हैं उसका फ़ोकस स्पाइक प्रोटीन के बेस यानी निचले हिस्से पर है. स्पाइक कुछ कुछ मशरूम जैसा दिखता है. इसके ऊपरी हिस्से में एक कैप होती है. नीचे डंडी जैसी होती है. अभी जो वैक्सीन मौजूद हैं, उनमें से ज़्यादातर पूरे मशरूम का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन इसका कैप यानी ऊपरी हिस्सा बदलता रहता है. नीचे का हिस्सा नहीं बदलता. इसलिए हम एक ऐसा स्पाइक बना रहे हैं जिसमें कैप न हो. हमारा सारा फ़ोकस नीचे के हिस्से पर है."
अगर उनकी वैक्सीन कामयाब होती है तो ये भविष्य में सामने आने वाले वेरिएंट के ख़िलाफ़ प्रतिरक्षा दे सकती है.
जैसन बताते हैं, "अगले किसी वायरस के आने के पहले यूनिवर्सल वैक्सीन तैयार करने का लक्ष्य है. एक तरह से देखा जाए तो ये दस साल का चक्र है. 2002 में सार्स था. 2012 में मर्स और 2020 में सार्स COV 2 सामने आया. हमारे पास तैयारी के लिए शायद आठ से दस साल हों."

इमेज स्रोत, Getty Images
दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में यूनिवर्सल कोरोना वायरस वैक्सीन तैयार करने के प्रयास जारी हैं.
जेसन मैकलेलान कहते हैं कि ये तमाम प्रोजक्ट चाहे कामयाब हों या नाकाम, लेकिन इनके ज़रिए हमें जो जानकारी हासिल होगी वो बहुत काम की होगी.
अभी जो कोविड वैक्सीन हैं वो गंभीर बीमारी और मौत के ख़तरे से बचा रही हैं. लेकिन अभी से ही चौथी डोज़ की बात होने लगी है. ये भी तय ही है कि आने वाले सालों में और भी वैरिएंट आएंगे.
सभी कोरोना वायरस के लिए एक यूनिवर्सल वैक्सीन बन सकेगी या नहीं, इस बारे में एक वैज्ञानिक ने पते की बात कही, ये अहम नहीं है कि आप कौन सा तरीका आज़माते हैं, ज़रूरी ये है कि आप कोशिश करें.
हो सकता है कि ग्रीक वर्णमाला पूरी होने तक इनमें से कोई प्रयास कामयाब हो जाए.
प्रोड्यूसर: वात्सल्य राय
ये भी पढ़ें:-
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)















