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कुछ खट्टी, कुछ मीठी रही चौदहवीं लोकसभा
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भारत की 14वीं लोकसभा अच्छी-बुरी यादों के साथ समाप्त हो गई. इस दौरान कई घटनाएं संसद के इतिहास में पहली बार घटी, तो कई ऐतिहासिक
क़ानून भी बनाए गए.
पहली बार किसी स्पीकर ने लोकसभा सदस्यों के शोर-शराबे से तंग आकर यहां तक कहा कि 'इन सांसदों को न जनता का पैसा दिया जाना चाहिए और न ही उन्हें दोबारा चुना जाना चाहिए.' स्पीकर सोमनाथ चटर्जी की ये टिपण्णी शायद लोकसभा के प्रति जनता की व्यथा बयाँ करती है. चौदवीं लोकसभा के दौरान सदन के अंदर और बाहर जो कुछ घटा वो दरअसल लोकसभा और लोकतंत्र में जनता के भरोसे की भी तस्वीर पेश करती है. हर लोकसभा की तरह इस लोकसभा के सत्रों में भी ख़ूब हंगामे और राजनीतिक उठा-पटकें हुईं. आंकड़े बताते है कि लोकसभा की कार्रवाई का 25 फ़ीसदी समय बर्बाद हुआ. 258 क़ानून पारित फिर भी इस लोकसभा में 258 क़ानून पारित किए गए, कुछ क़ानूनों को ऐतिहासिक माना गया.
इस लोकसभा में सांसद निधि का मामला सामने आया लेकिन संसदीय इतिहास की शर्मनाक घटना तब हुई जब लोकसभा में सवाल पूछने के नाम पर सांसदो पर रिश्वत लेने के आरोप लगे और इस आधार पर उनकी लोकसभा की सदस्यता भी समाप्त की गई. भारत- अमरीका परमाणु समझौते पर भी ख़ूब बहसें हुई, काफ़ी विरोध हुआ. इस मामले में सरकार को अपने कार्यकाल के आख़िरी साल में विश्वास मत का सामना करना पडा. विश्वास मत पर बहस के दौरान सदन के अंदर नोट की गड्डियां दिखाई गई. समर्थन के लिए सांसदों को घूस देने के आरोप तो पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार के दौरान भी लगे थे, लेकिन इस बार तो भारतीय जनता पार्टी के तीन सदस्य बाक़ायदा नोटों की गड्डियाँ सदन में दिखाकर ख़रीद-फ़रोख़्त का आरोप लगाते दिखे. गठबंधन के युग में परमाणु समझौते के सिलसिले में एक बात साफ़ हो गई कि पार्टियाँ अपने हर मुद्दों पर समझौता नहीं करतीं. शायद इसीलिए कांग्रेस ने वामदलों से यह कह सकी कि अगर वो सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं तो ले सकते हैं, लेकिन परमाणु समझौते पर वो क़ायम रहेगी. सोमनाथ की क़ुर्बानी इस सत्र में सबसे बड़ी क़ीमत शायद अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को चुकानी पड़ी. उन्होंने अपनी निष्पक्षता पार्टी की सदस्यता खो कर साबित की. जानकारों की राय में इस सत्र मे संसद की मर्यादा घटी ही और बहसों के दौरान गंभीरता भी कम हुई. अख़िरी सत्र के दौरान अंतरिम बजट पर चर्चा के समय दो तिहाई से कम सदस्यों का मौजूद होना इसका प्रमाण है. महिला बिल राज्यसभा में पेश तो हुआ लेकिन लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका. लोकपाल विधयक पर चर्चा तक नहीं हो पाई. चौदवीं लोकसभा भी संसद के इतिहास में शामिल हो गई जो कई ऐतिहासिक फ़ैसलों के लिए तो जानी जाएगी वहीं इसकी चर्चा कुछ कमियों के लिए भी होगी. |
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