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मंगलवार, 25 नवंबर, 2008 को 20:05 GMT तक के समाचार
 
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तिवारी को कोर्ट में हाज़िर होने का आदेश
 
एनडी तिवारी
एनडी तिवारी को 16 दिसंबर को अदालत में हाज़िर होना है
ख़ुद को वरिष्ठ नेता और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल एनडी तिवारी का बेटा बताने वाले युवक की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें अदालत में हाज़िर होने का आदेश दिया है.

हालांकि हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल तिवारी खुली अदालत में पेश होने की जगह न्यायाधीश के कक्ष में पेश हों.

अदालत ने एनडी तिवारी को अदालत में आने से छूट देने से इनकार करते हुए कहा है कि यह निजी मामला है और वे 'क़ानून से परे नहीं हैं.'

शायद यह पहली बार है जब किसी अदालत में राज्यपाल को हाज़िर होने को कहा गया है.

वैसे क़ानून के जानकारों का कहना है कि किसी निजी या पारिवारिक मामले में राज्यपाल को अदालत में हाज़िर होने का आदेश देना ग़लत या असंवैधानिक नहीं है.

मामला और आदेश

यह मामला 29 वर्ष के युवक रोहित शेखर ने दर्ज किया है.

उनका दावा है कि एनडी तिवारी उनके पिता हैं.

रोहित शेखर पूर्व केंद्रीय मंत्री शेरसिंह के पोते हैं और उनका कहना है कि उनका जन्म उनकी माँ उज्जवला सिंह और एनडी तिवारी के संबंधों से हुआ है. रोहित की माँ भी कांग्रेस की नेता रही हैं.

अब 85 वर्ष के हो चुके एनडी तिवारी इस दावे को ग़लत बताते हैं.

 क़ानून राज्यपाल को सिर्फ़ उन मामलों में आपराधिक मुक़दमों से संवैधानिक छूट देता है जो उनके अधिकृत कामकाज से जुडा हो
 
राजू रामचंद्रन, पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता

मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायाधीश रेवा क्षेत्रपाल ने एनडी तिवारी के वकील की इस आपत्ति को ख़ारिज कर दिया कि राज्यपाल को अदालत में न बुलाया जाए और कहा कि वे 16 दिसंबर को दोपहर तीन बजे उनके कक्ष में उपस्थित हों.

उन्होंने दूसरे पक्ष को भी इसी समय अपने कक्ष में बुलवाया है.

न्यायाधीश का कहना था कि यह एक एक पारिवारिक मामला है और इसलिए राज्यपाल को अदालत में हाज़िर होना पड़ेगा.

क़ानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यपाल को किसी निजी मामले में अदालत में हाज़िर होने के लिए कहा जाना ग़लत नहीं है क्योंकि अदालत ने जिस मामले में एनडी तिवारी को बुलाया है वह उनके अधिकारिक कामकाज से संबंधित नहीं है.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता राजू रामचंद्रन के हवाले से कहा है, "क़ानून राज्यपाल को सिर्फ़ उन मामलों में आपराधिक मुक़दमों से संवैधानिक छूट देता है जो उनके अधिकृत कामकाज से जुडा हो."

एक और क़ानूनविद का कहना था कि दूसरे अन्य मामलों में क़ानून की नज़र में राज्यपाल भी किसी दूसरे नागरिक की तरह हैं.

 
 
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