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शनिवार, 22 नवंबर, 2008 को 11:21 GMT तक के समाचार
 
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दिल्ली में 153 करोड़पति उम्मीदवार
 

 
 
फ़ाइल फ़ोटो
दिल्ली में 29 नवंबर को विधानसभा के चुनाव होंगे.
दिल्ली दिलवालों का शहर है या नहीं, इसका तो पता नहीं लेकिन ऐसा लगता है कि दिल्ली करोड़पतियों का शहर ज़रूर है.

यहाँ विधानसभा की 69 सीटों पर चुनाव के लिए ज़ोरशोर से प्रचार हो रहा है. वोट माँगे जा रहे हैं और सभी उम्मीदवार स्वयं को जनता का सेवक बता रहे हैं.

दिल्ली में इस बार भारतीय जनता पार्टी के 19, कांग्रेस के 19 और बहुजन समाज पार्टी के 15 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज़ हैं. इनमें हत्या, बलात्कार जैसे गंभीर मामले भी शामिल हैं.

करोड़पति उम्मीदवार

ये उम्मीदवार सम्पत्ति के मामले में किसी से पीछे नहीं हैं. इस बार मैदान में 153 करोड़पति उम्मीदवार हैं और इनमें से कई ने आयकर विभाग का स्थायी खाता संख्या यानी पैन तक नहीं दिया है.

छह उम्मीदवार ऐसे हैं जिनकी निजी सम्पत्ति 90 लाख से ज़्यादा है. लेकिन वह कहते हैं कि उनके पास वाहन तक नहीं है.

ऐसे में आप इनके शपथ पत्रों पर कितना भरोसा कर सकते हैं.

फ़ाइल फ़ोटो
चुनावी दंगल में 153 करोड़पति उम्मीदवार हैं

दूसरा सवाल यह भी है कि क्या चुनावी राजनीति का खेल अमीरों का खेल बनकर रह गया है.

सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय प्रचार से जुड़े शेखर सिंह कहते हैं, "45 पुराने उम्मीदवार फिर से खड़े हो रहे हैं. मुझे लगता है कि नए लोग नहीं आ रहे, नई सोच नहीं आ रही है. जैसे कोई अपना गढ़ बनाकर बैठा है और वहाँ से हिल तक नहीं रहा."

पिछले पाँच वर्षों में औसत निजी सम्पत्ति विकास दर के हिसाब से इन विधायकों की निजी सम्पत्ति में 211 फ़ीसदी इजाफ़ा हुआ है. यानी हर विधायक ने 1.8 करोड़ रूपए कमाए.

 इन्होंने भ्रष्टाचार करके और ग़लत तरीके से काम करके पैसा कमाया है. मैं यह नहीं कहता कि सभी की दौलत इसलिए बढ़ी है. लेकिन क़ानून में इस तरह का संशोधन करना बेदह ज़रूरी कि जब किसी की सम्पत्ति इस तरह से एकदम से बढ़े तो जैसे आईएएस अधिकारी को बताना पड़ता है कि उसकी सम्पत्ति ऐसे बढ़ी, जनप्रतिनिधियों को भी बताना चाहिए कि पैसा कहाँ से आया
 
एसडी शर्मा, लोक सेवक संघ

कहाँ से कमाया और कैसे आया यह धन, सवाल सोचने पर मजबूर कर देता है.

चुनावी ख़र्च के ब्यौरे भी बताते हैं कि यहाँ एक बार फिर नियम क़ानूनों को ताक पर रख दिया गया है.

दुनियाभर में भ्रष्टाचार पर नज़र रखने वाले ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल का सर्वेक्षण कहता है कि भारत में 76 फ़ीसदी लोग यह मानते हैं कि राजनेता भ्रष्ट होते हैं.

उन्हें पाँच में से 4.75 अंक मिले हैं. इसका मतलब यह कि भ्रष्टाचार इंडेक्स में भारतीय राजनेता काफ़ी ऊपर हैं.

किसी का विकास हुआ हो या नहीं हुआ हो, जनप्रतिनिधियों का विकास ज़रूर हुआ है.

इन नेताओं के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई भले ही नहीं हो पाए, लेकिन मतदाता ही जागरूक होकर लोकतंत्र को मजबूत बना सकते हैं और अपना नेता सलीके से चुन ही सकते हैं.

 
 
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