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उमा भारती के साथ गोविंदाचार्य
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चुनावी दौरों के लिए राज्यभर का दौरा कर रहीं उमा भारती मंगलवार कुछ समय के लिए भोपाल आईं और घोषणा कर दी कि उनका राजनीतिक दल
भारतीय जन शक्ति (भाजश) गोविंदाचार्य के संगठन राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन का राजनीतिक अंग होगा.
ठीक वैसे ही जैसे भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का माना जाता है. उमा भारती का कहना था कि गोविंदाचार्य पार्टी के संरक्षक रहेंगे और भाजश में बदलावों के लिए स्वतंत्र होंगे. गोविंदाचार्य और उमा भारती के संबंध हमेशा से क़रीबी रहे हैं और उन्हें भारती का राजनीतिक और बौद्धिक मार्गदर्शक माना जाता रहा है. लेकिन अचानक की गई घोषणा के कारण राजनीतिक विश्लेषक ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कहीं ये उमा भारती के अनगिनत शगूफ़ों में से एक तो नहीं.
भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार एनडी शर्मा के अनुसार धारा 370, समान नागरिक संहिता, अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण को भाजपा के तिलांजलि दिए जाने के कारण संघ के एक धड़े का भरोसा पार्टी से उठ गया है और वह भाजपा के समानांतर एक दूसरा संगठन खड़ा करने की कोशिश कर रहा है. वरिष्ठ पत्रकार राजेश चतुर्वेदी इसे उमा भारती के जनता और राजनीतिक वर्ग को दिए गए इस संदेश के रूप में देखते हैं कि अब वो भाजपा में वापस नहीं जा रहीं क्योंकि अब वो एक बड़े आंदोलन का हिस्सा हैं और गोविंदाचार्य जैसे चिंतक अब औपचारिक रूप से उनकी राजनीतिक पार्टी का हिस्सा हैं. इसी बीच कभी भाजपा के 'थिंक-टैंक' का हिस्सा रहे गोविंदाचार्य ने दिल्ली में कहा कि वह सक्रिय राजनीति में वापस आ रहे हैं. "जब मिलेंगे रोटी राम, तभी बनेंगे पूरे काम" को अपनी पार्टी का दर्शन और संदेश बताते हुए उमा भारती ने दावा किया कि उनका संगठन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की विचारधारा की एक लहर है और उसके हिंदुत्व और स्वदेशी के दर्शन के अनुसार ही काम करेगा. लगभग तीन साल पहले भाजपा से निष्कासित उमा भारती अपने पुराने दावे कि "मैं ही असली भाजपा हूँ" से हटकर अब भाजश को हिन्दुओं की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी के रूप में भी प्रस्तुत कर रही हैं. सत्ता समीकरण मालेगाँव बम धमाकों के सिलसिले में हिंदूवादी संगठनों के कुछ सदस्यों की गिरफ़्तारी और उसपर भाजपा की शुरूआती खामोशी का मामला उठाकर वो लालकृष्ण आडवाणी को निशाना बना रही हैं.
राजेश चतुर्वेदी कहते हैं कि ख़ुद पिछड़ी लोधी जाति से ताल्लुक़ रखने वाली उमा भारती भाजपा को अवसरवादी साबित कर पिछड़ों और हिंदूवादी वोटरों के एक समूह का राजनीतिक समीकरण तैयार करना चाहती हैं. कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक ब्राह्मणों और राजपूतों का बोलबाला रहा है जिसमें बदलाव की उम्मीद भी तब शुरू हुई जब भाजपा ने उमा भारती को पार्टी नेता बनाया. माना जा रहा है कि उमा भारती बुंदेलखंड, विंध्य, मालवा और ग्वालियर-चंबल के कुछ इलाकों में मौजूद कुर्मी, यादव, काछी, पाटीदार और लोधी वोटरों से उम्मीद लगाए बैठी हैं. हालाँकि वो कहती हैं कि उनका दल भाजपा के वोटों को कांग्रेस में जाने से रोकेगा. जबकि कांग्रेस उन्हें भाजपा के वोटों का हिस्सेदार बताती है तो भाजपा का कहना है कि पिछले चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के वोटों का अंतर काफ़ी बड़ा था और कुछ नकारात्मक वोटों का भाजश को चले जाना उनके लिए बेहतर है, कम से कम वह विपक्षी कांग्रेस के हिस्से तो नहीं आएँगे. इन तर्कों से दूर वोटरों के एक वर्ग में उमा भारती की वह छवि घूम रही है जब उन्होंने अपनी पार्टी के एक पदाधिकारी को को हाल में ही सरेआम तमाचा जड़ दिया था. उमा भारती ने टीकमगढ़ से अपना नामांकन दाखिल किया है लेकिन एक प्रश्नचिन्ह ज्यों का त्यों है - कहीं उमा भारती उत्तर प्रदेश और गुजरात की तरह आख़िरी वक़्त में मैदान न छोड़ दें. कार्यकर्ताओं की अनुपस्थिति और उम्मीदवारों के पास फ़ंड की कमी का मसला तो है ही. इस बीच भाजपा नेताओं की खाली रैलियों की ख़बरें, उमा भारती की सभाओं में भीड़ और भोपाल में उनके एक कार्यक्रम में 60 हज़ार लोगों के जुटने पर चर्चा और विश्लेषण जारी है. |
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