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भारत प्रशासित कश्मीर में ढीला प्रचार
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भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर में चुनाव प्रचार के पहले चरण के लिए मात्र एक सप्ताह बचा है लेकिन उसमें तेज़ी नज़र नहीं आ रही है.
जब मैं बंदीपुरा से 15 किलोमीटर दूर अजास पहुँचा तो भोंपू लगे एक वाहन के माध्यम से एक निर्दलीय उम्मीदवार को वोट देने की अपील की जा रही थी. इस क्षेत्र में दौरे के दौरान मैंने ऐसे कई वाहन देखे लेकिन इसके अलावा ऐसा कुछ भी नहीं दिखा जिससे लगे कि चुनाव की तारीख़ नजदीक आने वाली है. अजास गाँव के राजमार्ग पर एक निवासी फ़ारुख अहमद ने कहा कि पिछले महीने जब से चुनाव की तारीख़ तय हुई है, तब से यहाँ एक भी रैली का आयोजन नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, " हो सकता है कि वे घर-घर जा रहे हो लेकिन पिछले चुनावों की तरह यहाँ कोई जनसभा आयोजित नहीं हुई और कोई भाषण नहीं दिया गया." उनके साथ में खड़े एक बुज़ुर्ग ने कहा कि सरकारी डिपो पर चावल उपलब्ध नहीं है. यह पूछने पर कि वे किसे मत देंगे, वे सभी उम्मीदवारों को कोसते हुए कहते हैं, " मैं तो वोट ही नहीं दूँगा. हमें चुनाव से क्या लेना-देना है." और उनकी इस बात पर वहाँ खड़े आठ-दस लोगों ने तालियाँ बजाईं. नाराज़गी इसके दो किलोमीटर और आगे जाने पर सदराकुट के निवासी ग़ुलाम नबी ने कहा कि अमरनाथ ज़मीन मुद्दे और भारतीय शासन के प्रति बगावत के बाद से चुनाव में लोगों की रुचि समाप्त हो गई है.
उन्होंने कहा, "लंबे समय तक चले कर्फ़्यू और बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने से लोगों में नफ़रत पैदा हो गई है और वे मतदान नहीं करना चाहते." एक बैंककर्मी मंज़ूर अहमद ने अमरनाथ ज़मीन मुद्दे को बड़ा मुद्दा बताते हुए कहा, " लोगों के शांति जुलूस पर जब पुलिस ने गोलियाँ बरसाईं तो उसमें हमारे गाँव के चार लोग मारे गए थे. मारे गए वे लोग मेरे दोस्त थे." चुनाव के तीन मज़बूत प्रत्याशियों में से एक निज़ामुद्दीन भाट ने अपने कुछ समर्थकों के साथ मदार गाँव के एक मैदान में जनसभा की. उन्होंने लोगों से कहा कि वे अलगाववादी हुर्रियत काँफ़्रेंस के बहिष्कार का विरोध नहीं करेंगे लेकिन इसके ही साथ उन्होंने अपने समर्थकों को याद दिलाया कि अगर वे वोट नहीं देंगे तो इससे वे ‘हत्यारे’ विरोधियों को ही फ़ायदा पहुँचाएंगे. भाट नहीं मानते कि चुनाव प्रचार अपनी गति पर नहीं है. वो इसे अलग तरह के प्रचार की संज्ञा देते हैं, " हाँ, हमारे कुछ रोड शो और कुछ रैली आयोजित हुई हैं और कुछ बैनर और कुछ पोस्टर लगाए गए हैं. यह कुछ अलग तरह का चुनाव प्रचार है." बहिष्कार का असर उनका कहना था, "मैं कस्बों और गाँवों में जाकर लोगों से उनके घरों में मिल रहा हूँ."
भाट कहते हैं कि लोग मतदान करेंगे लेकिन साथ ही वो कहते हैं कि मुख्य शहरों में बहिष्कार का असर हो सकता है. मंज़ूर अहमद कहते है कि उनके गाँव के आसपास का कोई भी आदमी वोट नहीं देगा. वो कहते हैं कि अब तक कभी भी उनके गाँव में खुला मतदान नहीं हुआ है. जब भी लोगों ने मतदान किया है, सिर्फ़ सेना की ज़बरदस्ती की वजह से किया है. कुछ उम्मीदवारों को डर है कि सेना की यह जबरदस्ती कुछ ख़ास उम्मीदवारों के फ़ायदे के लिए काम कर सकती है. |
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