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रविवार, 12 अक्तूबर, 2008 को 14:45 GMT तक के समाचार

पाणिनी आनंद
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

'सिमी हो या बजरंगदल, प्रतिबंध समाधान नहीं'

भारत की जानी-मानी लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुंधति रॉय ने कहा है कि सिमी या बजरंग दल जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने से चरमपंथ की समस्या से नहीं निपटा जा सकता है.

दिल्ली के जामिया नगर में होने वाली मुठभेड़ पर उठाए जा रहे सवालों पर गंभीर होते हुए उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह इस मामले की न्यायिक जाँच कराए.

पेश हैं अरुंधति रॉय से विशेष बातचीत के अंश-

अरुंधति, जामिया नगर में हुई मुठभेड़ पर आपने शुक्रवार की 'जनसुनवाई' में आम लोगों की राय सुनी, आप की क्या प्रतिक्रिया है?

मुझे लगता है कि जब इस मुठभेड़ पर इतने सवाल उठ रहे हैं, उसके बाद भी आप कहें कि जाँच की ज़रूरत नहीं है, तो ऐसा लगता है कि सरकार ज़रूर कुछ छुपा रही है.

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने दो संदिग्धों को मार दिया है, वो ख़ुद इस मामले में अभियुक्त हैं तो वो कैसे कहेंगे कि हमने ग़लती से मार दिया है. इसलिए इस मुठभेड़ की जाँच किसी और एजेंसी से कराई जानी चाहिए.

राजनीतिक दलों की तरफ़ से जो प्रतिकया आई है, हर पार्टी अलग-अलग बात कर रही है. इस मुठभेड़ की जाँच को लेकर उनमें एक मत नहीं है. आप इस पूरी घटना को किस तरह देख रहीं हैं, क्या आप को लगता है कि राजनीतिक दलों में इस मामले की जाँच कराने की इच्छाशक्ति है, ताकि इस मामले की सच्चाई सामने आ सके?

राजनीतिक पार्टियों के सच और वास्तविक सच में कोई रिश्ता नहीं होता है. उनका रिश्ता सिर्फ़ चुनाव से होता है. फिर भी जो बहस हो रही है, वो अच्छी बात है. जब संसद पर हमला हुआ था तो सब पार्टियाँ एक साथ थी. कोई कुछ भी देखने को तैयार नहीं था. इस समय अपने-अपने हित के अनुसार ही सही, कुछ तो कह रहे हैं. जो मतभेद हैं वह अच्छा है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि उनका सच से रिश्ता है.

सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगा रखा है. कई संगठन और बहुत सारे लोग बजरंग दल पर प्रतिबंध की माँग कर रहे हैं. क्या आपको लगता है कि ऐसे संगठनों पर प्रतिबंध लगना चाहिए, क्या प्रतिबंध कोई समाधान है, प्रतिबंध की पूरी बहस को आप किस तरह देखती हैं?

मैं प्रतिबंध से सहमत नहीं हूँ क्योंकि प्रतिबंध से कुछ फ़ायदा नहीं होता. चाहे ये प्रतिबंध सिमी, बजरंगदल या वीएचपी...किसी भी ऐसे संगठन पर लगाया जाए. चरमपंथी गतिविधियों को तब रोका जा सकता है जब व्यक्तिगत सतह पर इसे रोकने की कोशिश की जाए, चाहे मोदी हों, बाबू बजरंगी हों या किसी और कौम का आदमी हो. जब तक लोगों को इंसाफ़ की उम्मीद नहीं होगी, किसी संगठन पर प्रतिबंध का कोई मतलब नहीं होता.

मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं, मुठभेड़ या इस तरह की दूसरी रिपोर्टों पर आपका क्या कहना है, आप ख़ुद भी लेखिका हैं, आप के मुताबिक़ मीडिया की क्या भूमिका होनी चाहिए और क्या मीडिया ने अपनी भूमिका निभाई है?

देखिए, इस मामले में कुछ पत्रकारों ने बहुत अच्छी रिपोर्टिंग की है, वो काफ़ी सावधान और सजग रहे हैं. उनका की भूमिका को नहीं भूलना चाहिए लेकिन कुछ की रिपोर्टिंग बहुत सतही रही है. पुलिस के सामने दिए गए इक़बालिया बयान को आधार बनाकर घटना को सच बताया गया है, ये सही नहीं है.

सरकार आतंकवाद को ख़त्म करना चाहती है, सरकार जिस तरह से आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रही है क्या वो सही दिशा में लड़ी जा रही है. अगर नहीं तो कैसे लड़ी जाए आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई?

आतंकवादियों को इस देश में पैदा किया जा रहा है, आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ने वाले ख़ुद ही आतंकवादी हैं. लोगों में इतना ग़ुस्सा है, हज़ारों लोगों को खुलेआम मारा जा रहा है, कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, हमारा भी देश है, हम भी यहीं बसते हैं, हम इस देश को एक फ़ासीवादी देश नहीं बनने देना चाहते हैं.