शुक्रवार, 17 अक्तूबर, 2008 को 13:44 GMT तक के समाचार
नारायण बारेठ
बीबीसी संवाददाता, जयपुर
वैसे तो राजस्थान में रजवाड़ों के दौर में भी राज्य में एक तरह से संसदीय लोकतंत्र चल रहा था और वहाँ पहले मुख्यमंत्री के रुप में हीरालाल शास्त्री की नियुक्ति अप्रैल 1949 में ही हो गई थी.
लेकिन वहाँ औपचारिक विधानसभा का औपचारिक गठन मार्च 1952 में हुआ और पहले मुख्यमंत्री बने टीकाराम पालीवाल.
राजस्थान में भी 1977 तक कांग्रेस की सरकारें बनती रहीं और 1949 से लेकर 1977 तक 11 मुख्यमंत्री रहे.
जून 1977 में पहली बार राज्य में जनता पार्टी की (या भारतीय जनता पार्टी की) सरकार बनी और भैरों सिंह शेखावत पहले ग़ैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने.
लेकिन जैसा कि देश की दूसरी जनता सरकारों के साथ हुआ, 1980 में राजस्थान की भी सरकार बर्खास्त कर दी गई.
इसके बाद जून 1980 से दिसंबर 1989 तक राज्य में कांग्रेस की ही सरकारें बनती रहीं और इस दौरान राज्य ने छह मुख्यमंत्री देखे.
मार्च 1990 में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की और भैरोंसिंह शेखावत एक बार फिर मुख्यमंत्री बने.
दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद बर्खास्त की गई भाजपा सरकारों में राजस्थान की भी सरकार थी. लेकिन इसके बाद भैरोंसिंह शेखावत फिर जीत कर आ गए और इस बार उन्होंने पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया.
1998 से 2003 तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री रहे लेकिन 2003 में वे पार्टी को जितवा नहीं सके और राज्य की बागडोर एक बार फिर भाजपा के हाथों में आ गई और वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बनाया गया.
विवाद भरा कार्यकाल
नवंबर, 2008 में हो रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही उतर रही है.
लेकिन विपक्षी कांग्रेस किसी भी नेता को भावी मुख्यमंत्री के बतौर पेश नहीं कर रही है.
इस बार बहुजन समाज पार्टी भी पूरी ताक़त के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है.
सतारूढ़ भाजपा ने पाँच साल के अपनी सरकार के कामकाज और विकास को मुद्दा बनाकर चुनाव मैदान में उत्तरने की घोषणा की है.
उधर कांग्रेस कहना है कि वो इस सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार, फ़िजूल खर्चों और सामाजिक तानेबाने को छिन्न-भिन्न करने जैसे मुद्दों को जनता के सामने रख कर वोट मांगेगी.
राज्य में विधानसभा की 200 सीटें हैं.
पिछली बार भाजपा ने इनमें से 120 सीटों पर कब्जा किया था जबकि कांग्रेस को महज 56 सीटों पर संतोष करना पड़ा था.
लेकिन इन पाँच सालों में भाजपा की सरकार और मुख्यमंत्री का विवादों ने पीछा नहीं छोड़ा.
इन पाँच सालों में ऐसे अनेक अवसर आए जब जनता और पुलिस के बीच संघर्ष हुआ और कई लोग गोलीबारी मे मरे गए.
राजस्थान ने अपने इतिहास का सबसे गंभीर जातिगत तनाव देखा जब गूजर सड़कों पर निकले और अपनी बिरादरी के लिए जनजाति का दर्जा मांगने लगे. इस आंदोलन के दौरान रेलें रुकीं, सड़कें जाम हुईं और जनजीवन पटरी से उतर गया.
पुलिस और गूजर अंदोलनकारियों के बीच हुए संघर्ष में कोई 70 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा. इसमें कुछ पुलिस वाले भी थे.
लेकिन विरोधी कुछ भी कहें, मुख्यमंत्री के समर्थक उनमें एक देवी की तस्वीर देखते रहे. लेकिन जब उनके एक समर्थक ने वसुंधरा राजे को अन्नपूर्णा देवी के रुप में दिखाते हुए कैलेंडर छपवाया तो उनकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह की पत्नी शीतल कँवर इस मामले को अदालत में ले गईं.
वैसे तो सरकार के कामकाज को लेकर हुए विवाद की सूची लंबी है लेकिन सच यह भी है कि विपक्ष कोई बड़ा आंदोलन भी खड़ा नहीं कर पाया.
शायद इसीलिए मुख्यमंत्री ने कभी इन विवादों की परवाह नहीं की और अपना काम जारी रखा.
अभी योजना आयोग ने रोजगार गारंटी में अच्छे कामकाज के लिए राजस्थान सरकार की तारीफ की है.
हालांकि केंद्र के पंचायत मंत्री मणिशंकर अय्यर ने कहा है कि ग्राणीण विकास और पंचायती राज सुधार के लिए जो वादा वसुंधरा राजे ने किया था उसे बिलकुल नहीं निभाया.