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काबुल की कमान अफ़गानों के हाथ
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नैटो के नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग सेना (आइसैफ़) ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल की सुरक्षा का ज़िम्मा अफ़ग़ान
सुरक्षा बलों को सौंपना शुरू कर दिया है.
लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि काबुल में तैनात विदेशी सैनिक वहाँ से चले जाएँगे, निकट भविष्य में इसका कोई ख़ास असर नहीं दिखने वाला, इसे एक सांकेतिक क़दम माना जा रहा है. आइसैफ़ के कुछ अधिकारियों का कहना है कि इस हस्तांतरण को बहुत प्रचारित नहीं किया जा रहा है वर्ना चरमपंथी काबुल को निशाना बनाने की कोशिश कर सकते हैं. यही वजह है कि इसके लिए कोई समारोह आयोजित नहीं किया गया है. काबुल की सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा के बंदोबस्त पर इस क़दम से कोई अंतर नहीं पड़ेगा और सुरक्षा व्यवस्था यथावत बनी रहेगी, वहाँ तैनात कुल सैनिकों की संख्या में कोई कमी नहीं आएगी. अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने जून महीने में घोषणा की थी कि राजधानी की सुरक्षा अफ़ग़ान बलों के हवाले कर दी जाएगी. अफ़ग़ानिस्तान के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इस हस्तांतरण प्रक्रिया के पूरे होने में अभी कुछ दिन का समय लगेगा. इस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान में लगभग 60 हज़ार विदेशी सैनिक तैनात हैं. माना जा रहा है कि इस क़दम से अफ़ग़ानिस्तान के सुरक्षा सैनिकों का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ेगा. पिछले कुछ महीनों में राजधानी काबुल में आत्मघाती हमलों में कमी आई है, सुरक्षा एजेंसियाँ इस बात पर ज़ोर देती हैं कि उन्होंने तालेबान और अल क़ायदा को काबुल में पैर जमाने का मौका नहीं दिया है. वर्ष 2009 की शुरूआत में 80 हज़ार अफ़ग़ान सैनिकों को प्रशिक्षित करने का एक बड़ा कार्यक्रम चलाया जाएगा. अफ़ग़ानिस्तान पुलिस में भर्ती और प्रशिक्षण का काम भी चल रहा है लेकिन उसकी गति काफ़ी धीमी है, नैटो का कहना है जब तक अफ़ग़ानिस्तान में सेना और पुलिस अपने पैरों में खड़ी नहीं हो जाती उनका वहाँ से बाहर निकलना मुश्किल होगा. |
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