मंगलवार, 08 जुलाई, 2008 को 15:33 GMT तक के समाचार
विनीत खरे
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
यूपीए सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा करते समय प्रकाश कारत बेहद शांत और गंभीर दिख रहे थे, लग रहा था कि जैसे किसी आम दिन की कई पत्रकारवार्ता हो.
जैसे कुछ नही बदला हो ही नहीं, सब कुछ पहले जैसा हो, लेकिन उन्हें भी पता होगा कि एके गोपालन भवन में हो रही इस पत्रकारवार्ता ने वाम दलों की राजनीति को एक नई दिशा अवश्य दी है.
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन सरकार चाहे 10 जनपद से चल रही हो, लेकिन उसको चाभी देने और दिशा देने का काम एके गोपालन भवन में होता था.
चाहे टेलीकॉम का मुद्दा हो, बीमा क्षेत्र को खोलने की बात हो, बैंकिंग क्षेत्र की नीति तय करनी हो, ईरान के साथ सहयोग पर बहस हो, पेट्रोल कीमतों को बढ़ाने की मजबूरी हो, स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन पर नीति तय करना हो, या फिर प्रोविडेंट फंड में ब्याज दर का मुद्दा हो, वही हुआ जो वाम दलों ने चाहा.
सरकार की नीतियाँ भी तय की, और सरकार को बुरा भला भी कहा. सरकार में शामिल भी नहीं हुए और सरकार में दबदबा भी कायम रहा, लेकिन अब से ये बात पुरानी हो गई.
पत्रकारवार्ता में प्रकाश करात के चेहरे पर चाहे शांत भाव हों, उनके शब्द बेहद तीखे थे- जैसे कहना चाह रहे हों कि चेहरे के भावों पर मत जाइये, हम बेहद नाराज़ हैं, अब बहुत हो गया, आख़िर हमारी भी कुछ अहमियत है.
लेकिन अब वो अहमियत भी पुरानी बात हो चली. सरकार की लगाम वाम दलों की पकड़ से निकल गई.
कमरे से बाहर निकलने ही वाम नेताओं का गुस्सा फूट पड़ा. आमतौर पर पत्रकारों से बातचीत करनेवाले डी राजा और एबी बर्धन तुरंत पत्रकारवार्ता छोड़कर वहाँ से रवाना हो गए.
शांत स्वभाव के अबनी रॉय की आवाज़ में भी तल्ख़ी थी. सभी की नाराज़गी प्रधानमंत्री से थी, क्या ज़रूरत थी उन्हें हवाई जहाज़ में ऐसा बयान देने की.
अगर वो ऐसा कर सकते हैं, तो हम भी ऐसी घोषणा उनके जापान से वापस आने से पहले कर सकते हैं.
वाम दलों की प्रधानमंत्री से नाराज़गी शायद उन्हें समझने में हुई भूल से भी जुड़ी हो, जिस प्रधानमंत्री पर हमेशा राजनीति की समझ नहीं होने के आरोप लगते रहे हों, उसी प्रधानमंत्री ने वाम दलों को एक ही चाल में मात दे दी.
वाम दलों को पता भी नहीं चला कि कब उनके साथ खड़े समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह यादव ने मनमोहन सिंह सरकार से दिल लगा लिया.
शायद एके गोपालन भवन में बैठा वाम दलों का शीर्ष नेतृत्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिहं के अब तक अपरिचित राजनीतक कौशल से भौचक्का है या फिर सिद्धांतो की राजनीति की बात करने वाले वाम दलों को लग रहा हो कि राजनीति के इस खेल में में वो राजनीतिक रूप से कमज़ोर पड़ गए औऱ अलग थलग पड़ गए.