रविवार, 29 जून, 2008 को 04:56 GMT तक के समाचार
अल्ताफ़ हुसैन
बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर
भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर में अमरनाथ मंदिर को आवंटित वन्य भूमि का विवाद सुलझाने के लिए अब राज्यपाल ने ख़ुद मध्यस्थता की है.
उन्होंने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या राज्य सरकार यात्रा की ज़िम्मेदारी संभालने के लिए तैयार है जिसपर राज्य सरकार ने हाँ कर दी है.
विश्लेषक मानते हैं कि राज्यपाल की मध्यस्थता और राज्य सरकार का जवाब इस विवाद को ख़त्म करने की दिशा में एक अहम पहल है.
शनिवार को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने राज्य की कांग्रेस सरकार से इसी मुद्दे पर विरोध दर्ज करते हुए अपना समर्थन वापस ले लिया था जिसके बाद राज्य सरकार पर संकट के बादल मड़राते नज़र आ रहे थे.
पर ताज़ा घटनाक्रम में अब राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद को एक पत्र लिखकर पूछा है कि क्या राज्य सरकार अमरनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की पूरी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार है.
इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने राज्यपाल से कहा है कि राज्य सरकार इस ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा सकती है.
राज्यपाल ने अमरनाथ मंदिर बोर्ड के अध्यक्ष की हैसियत से मुख्यमंत्री को यह पत्र लिखा था.
बोर्ड नहीं, सरकार
यानी अमरनाथ आनेवाले यात्रियों की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार के पास आ जाएगी और मंदिर बोर्ड को इससे मुक्त कर दिया जाएगा.
ऐसे में जब मंदिर बोर्ड के पास यात्रियों की ज़िम्मेदारी ही नहीं होगी तो उन्हें किसी वन्य भूमि की भी आवश्यकता नहीं रह जाएगी.
जानकार बताते हैं कि ऐसे में मंदिर बोर्ड को आवंटित की गई विवादास्पद ज़मीन भी वन विभाग को वापस मिल जाएगी.
हालांकि राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच केवल पत्रों के आदान-प्रदान भर से यह पूरा नहीं होने वाला.
विशेषज्ञ बताते हैं कि औपचारिक रूप से ज़मीन और यात्रा की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार को सौंपने के लिए कुछ क़ानूनी औपचारिकताएं भी पूरी करनी पड़ेंगी.
उधर मंदिर बोर्ड को भूमि आवंटन का विरोध कर रहे मंच, एक्शन कमेटी अगेंस्ट लैंड ट्रांसफ़र के प्रमुख और राज्य के वरिष्ठ वकील मियां अब्दुल क़य्यूम का कहना है कि जबतक इस ज़मीन की वापसी औपचारिक रूप से सरकार को नहीं कर दी जाती, तबतक विरोध का क्रम जारी रहेगा.
राजनीतिक पैतरा
दरअसल, मंदिर बोर्ड को पिछले दिनों आवंटित किया गया वन विभाग का भूखंड राज्य में विरोध के साथ ही राजनीतिक पैतरेबाज़ी का भी हथियार बन गया है.
जहाँ इस मुद्दे पर अपनी भूमिका को लेकर विवादित रही पीडीपी ने शनिवार को समर्थन वापसी की घोषणा कर दी थी वहीं राज्य के मुख्यमंत्री के क़रीबी बताते हैं कि मुख्यमंत्री सरकार के बचने को लेकर आश्वस्त हैं.
जानकार मानते हैं कि रविवार को राज्य सरकार ने अमरनाथ यात्रा के दौरान सुविधाओं और व्यवस्थाओं की ज़िम्मेदारी लेकर जहाँ एक ओर भूमि विवाद को सुलझाने का रास्ता साफ़ कर दिया है वहीं सरकार के विरोधियों और समर्थन वापस लेने वाली पार्टी पीडीपी पर भी यह पलटवार जैसा है.
दरअसल, मंदिर की ज़मीन को लेकर शुरू हुए विवाद में यह तो स्पष्ट होता जा रहा था कि ज़मीन का आवंटन रद्द होगा पर बाद में यह लड़ाई इसका श्रेय लेने की बन गई.
कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में शामिल पीडीपी ने इस मुद्दे पर सरकार को 30 तारीख तक का अल्टीमेटम दिया था पर 28 को ही समर्थन वापस ले लिया.
विश्लेषक बताते हैं कि पीडीपी ने इसपर दबाव बनाकर इसका श्रेय खुद लेना चाहा पर अब राज्य सरकार समर्थन वापसी के बाद ख़ुद इसका श्रेय लेती नज़र आएगी.