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क्या बेनज़ीर थीं पाकिस्तान की इंदिरा?
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दक्षिण एशिया की राजनीतिक शख़्सियतों और राजनीतिक परिवारों का ज़िक्र होता है तो पाकिस्तान के भुट्टो परिवार और भारत के नेहरू-गाँधी
परिवार की बात ज़रूर होती है.
दोनों परिवार अपने-अपने देशों की राजनीति में बहुत प्रभावशाली भूमिका निभाते रहे हैं. पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की हत्या की ख़बर जब भारत पहुँची तो वे घटनाएँ भी लोगों को याद आ गईं जब 1984 के अक्तूबर महीने में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी और मई 1991 में इंदिरा के बेटे राजीव गांधी भी एक आत्मघाती हमले में मारे गए थे. दमदार व्यक्तित्व दरअसल, भुट्टो और नेहरू-गांधी परिवार का देश की राजनीति में दबदबा, लोकतंत्र की मज़बूती में इनका योगदान और उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप जैसी कई बातें हैं जो इस तुलना को बल देती हैं. दोनो परिवारों के सदस्यों को क़रीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार केके कटियाल कहते हैं, “जिस तरह से इंदिरा, नेहरू-गाँधी परिवार के नाम के साथ सत्ता में आईं थीं. ठीक उसी तरह ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के बाद बेनज़ीर सत्ता में आईं और दोनो ही जनता के बीच लोकप्रिय रहीं.” यह सही है कि बेनज़ीर और इंदिरा कभी भी साथ-साथ सत्ता में नहीं रहीं, लेकिन इनके क़रीब रहने वाले लोगों का कहना है कि दोनो का व्यक्तित्व काफ़ी प्रभावशाली और करिश्माई था. साथ ही दोनो का संबंध ऐसे परिवारों से रहा है जिनका राजनीति में ख़ासा मुकाम था.
दोनो नेताओं को राजनीति विरासत में मिली और दोनो पर अपने पिता की छाप भी देखने को मिली. इंदिरा प्रधानमंत्री बनने के पहले लगभग दो दशक तक अपने पिता जवाहर लाल नेहरू के साथ थीं. राजनीतिक समझ उन्हें वहीं से हासिल हुई और प्रधानमंत्री बनने तक सियासत के दांव-पेंच से वो वाकिफ़ थीं. इसकी झलक उनके काम करने के तरीक़े से देखने को मिलती थी. हालाँकि बेनज़ीर को अपने पिता के साथ काम करने का ज़्यादा मौका नहीं मिला, लेकिन उनके काम करने की शैली पर पिता ज़ुल्फ़िकार भुट्टो की छाप दिखती थी. आलोचनाएँ इंदिरा गांधी की आत्मकथा और हाल तक बेनज़ीर के संपर्क में रहे वरिष्ठ पत्रकार इंद्र मल्होत्रा भी कुछ ऐसी ही राय रखते हैं. उनका कहना है, “बेनज़ीर पर इंदिरा का प्रभाव था. बेनज़ीर तब 18 साल की थीं जब शिमला में उन्होंने इंदिरा को देखा था. इंदिरा के रेशम जैसे नरम और इस्पात जैसे मज़बूत व्यक्तित्व को बेनज़ीर ने अपनी सियासत में उतारने की कोशिश की.”
उनका कहना है कि इंदिरा और बेनज़ीर दोनो पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. इंदिरा ने जहाँ भारत में 19 महीने के लिए आपातकाल लगाकर ज़बर्दस्त आलोचनाएँ झेली, वहीं बेनज़ीर ने भी माना कि सत्ता में रहते हुए उनसे कुछ गलतियां हुई हैं, जिन्हें वह भविष्य में नहीं दोहराना चाहेंगी. इंद्र मल्होत्रा कहते हैं, “पाकिस्तान में जुल्फ़िकार अली भुट्टो के कार्यकाल को छोड़ दें तो वहाँ सही तौर पर लोकतंत्र कभी मज़बूत नहीं रहा. यहाँ तक कि बेनज़ीर और नवाज़ शरीफ़ भी सेना के प्रभाव में रहे.” उधर, वरिष्ठ पत्रकार कटियाल ने बताया कि दोनों परिवारों के बीच की दोस्ती उस समय और पुख़्ता हुई जब राजीव गांधी की हत्या के बाद बेनज़ीर सोनिया से मिलने भारत आईं. यही नहीं जब कभी बेनज़ीर भारत आती थीं तो यह वक़्त गांधी परिवार के लिए उत्सव जैसा होता था जिसमें परिवार के सभी सदस्य शामिल रहते थे. उन्होंने कहा, “बेनज़ीर पर जब कराची में हमला हुआ तो सोनिया गाँधी ने उनकी ख़ैरियत जानी थी. राहुल गाँधी ने भी बातचीत की थी और बेनज़ीर को सुरक्षा से जुड़े कुछ सुझाव भी दिए थे.” राजनीति के जानकार कहते हैं कि भारत की सियासत में नेहरू-गांधी ख़ानदान अब सोनिया और राहुल गांधी के रूप में मौजूद है, लेकिन पाकिस्तान की सियासत में भुट्टो परिवार का प्रतिनिधित्व कौन करेगा इसकी तस्वीर अभी धुंधली है. |
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