शनिवार, 27 अक्तूबर, 2007 को 06:54 GMT तक के समाचार
सलमान रावी
बीबीसी संवाददाता, राँची
झारखंड के गिरिडीह ज़िले में पिछले दो सालों में दूसरी बार माओवादियों ने नेताओं के अलावा आम ग्रामीणों को भी अपना निशाना बनाया है.
शुक्रवार की रात जहां चिलकारी गांव में माओवादियों ने पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी समेत 17 लोगों को मार दिया वहीं इसी ज़िले के भेलवा घाटी में 2005 में माओवादियों ने एक गांव को घेरकर 18 लोगों की नृशंस हत्या कर दी थी.
भेलवा घाटी में हुई मौतों के बारे में माओवादियों ने दावा किया था कि ये बाबूलाल मरांडी द्वारा गठित नागरिक सुरक्षा समिति से जुड़े हुई लोग थे. इस बार फिर माओवादियों ने बाबूलाल के परिवार को निशाना बनाया है.
माओवादियों की हिट लिस्ट में झारखंड के लगभग सारे बड़े नेता हैं और आए दिन राज्य में माओवादी वारदातें होती रहीं है.
कहा जा सकता है कि राज्य के गठन के सात साल के बाद अगर राज्य में किसी चीज़ का विकास हुआ है तो वो नक्सलवाद है.
2000 में जब यह राज्य बिहार से अलग हुआ थो मात्र पांच ज़िले धनबाद, गिरिडीह, कोडरमा, हज़ारीबाग, चतरा ही नक्सल प्रभावित थे. सात साल बाद सरकारी आंकड़ों के अनुसार 18 ज़िले नक्सल प्रभावित है.
राज्य में 24 ज़िले हैं और गैर सरकारी आंकड़े सभी ज़िलों को बुरी तरह से नक्सल प्रभावी बताते हैं.
पुलिस आधुनिकीकरण
राज्य सरकार ने कई बार माओवादियों के ख़िलाफ सघन कार्रवाई की और पुलिस का आधुनिकीकरण भी किया गया है. राज्य में पिछले तीन साल में नक्सलियों के साथ लड़ाई में डेढ़ सौ करोड़ रुपए खर्च हुए हैं लेकिन इसका शायद कोई नतीजा नहीं निकला.
इसी साल मार्च में माओवादियों ने राज्य के जाने माने सांसद सुनील महतो को सरेआम गोलियों से भून दिया था.
जानकार मानते हैं कि सरकारी कार्रवाईयों के सफल नहीं होने के पीछे सबसे बड़ा कारण राज्य की ग़रीबी है.
राज्य के 52 प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक आदिवासी हैं. ग़रीबी, बेरोज़गारी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव युवाओं को आसानी से बंदूक की तरफ ले जाती है.
जानकार बताते हैं कि पुलिस आधुनिकीकरण के नाम पर मात्र नई गाड़ियां खरीदी गईं जिसका इस्तेमाल विधायक करते हैं.
राज्य के कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल की रिपोर्ट में भी इस पर आपत्ति की गई तो सरकार ने तर्क दिया कि ये गाड़ियां सुरक्षा के लिए खरीदी गई हैं.
ज़ाहिर है पुलिस आधुनिकीकरण के नाम पर करोड़ो रुपए नेताओं के लिए गाड़ियों की खरीद में गया है.
नीतियां
इतना ही नहीं राज्य सरकार पुलिस आधुनिकीकरण के अलावा हर साल 20 करोड़ रुपए विशिष्ट लोगों को सुरक्षा मुहैय्या कराने में करती है.
राज्य में एक व्यक्ति पर सरकार का खर्च सालाना मात्र 144 रुपए हैं.
ऐसा नहीं है कि माओवादियों के पुनर्वास की कोशिश नहीं की गई. बाबूलाल मरांडी के कार्यकाल के दौरान 2002 में माओवादियों के लिए पुनर्वास की कोशिश की गई.
समर्पण तो हुआ लेकिन माओवादियों का नहीं बल्कि अपराधियों का और जो सुविधाएं माओवादियों को लेनी चाहिए थीं वो अपराधियों ने ले लीं.
दूसरी नीति 2005 में फिर बनीं पुनर्वास नीति जिसे तत्कालीन राज्य गृह मंत्री सुदेश महतो ने बनाया था.
इस नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों के लिए मुफ्त कानूनी सलाह, दस लाख का बीमा और एक एकड़ ज़मीन, परिजनों को मुफ्त चिकित्सा और शिक्षा की व्यवस्था करने की बात थी.
लेकिन इसे मंत्रिमंडल ने ही खारिज़ कर दिया क्योंकि राज्य की पचास प्रतिशत से अधिक जनता ग़रीबी रेखा के नीचे है.
जानकार कहते हैं कि राज्य के नेताओं में न केवल माओवादियों के ख़िलाफ कार्रवाई करने में इच्छाशक्ति की कमी है बल्कि नेतागण राज्य की भलाई करने से अधिक अपनी भलाई करने में लगे हुए हैं.
यही वजह है कि राज्य के लोगों में माओवादियों के लिए सहानुभूति और उनका प्रभाव क्षेत्र भी. जबकि नेताओं का प्रभुत्व घटा है उनकी साख कम हुई है.
इंडियन डिफेंस ईयर बुक के ताज़ा अंक में कहा गया है कि झारखंड में नक्सलवादी हर साल 320 करोड़ बतौर उगाही वसूल करते हैं. जो कि राज्य के राजस्व का दस प्रतिशत है.
आकड़ों के अनुसार राज्य मे दस हज़ार से अधिक नक्सली सक्रिय हैं जिनके पास 20 हज़ार से अधिक आधुनिक हथियार हैं.