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झीलों पर शहरीकरण के दबाव की चिंता
 

 
 
जयपुर जलमहल (फ़ाइल फ़ोटो)
सम्मेलन में झीलों के संरक्षण के उपायों पर विचार किया गया
राजस्थान के जयपुर में हो रहे 'विश्व झील सम्मेलन' में शिरकत करने आए दुनिया भर के जलविज्ञानियों ने झीलों पर बढ़ते दबाव को लेकर चिंता व्यक्त की है.

भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इस सम्मेलन का उदघाटन किया.

उन्होंने कहा कि शहरीकरण और अंधाधुंध औद्योगिक विकास से झील और दूसरे जलस्रोतों को नुकसान पहुंच रहा है.

उन्होंने चेताया "मानवीय अतिक्रमण झीलों के तट तक आ पहुंचा है और घरेलू तथा ठोस कचरा झीलों में बहाया जाना चिंता की बात है."

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में झीलों की समृद्ध परंपरा रही है कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्य झीलों के मामले में सबसे ज्यादा धनी हैं.

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया भर की झीलों को ख़तरा पैदा हो गया है. उन्होंनें विशेषज्ञों को भारत में झीलों के संरक्षण प्रयासों की भी जानकारी दी.

संरक्षण पर विचार

इस सम्मेलन में 40 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं. इसमें जापान के सबसे अधिक 60 और चीन के 30 प्रतिनिधि शामिल हैं. इसमें पर्यावरणविद्, ग़ैरसरकारी संगठनों के प्रतिनिधि हिस्सा भी शामिल हैं.

भारतीय दल का नेतृत्व केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री नमो नारायण मीणा कर रहे हैं.

प्रतिभा पाटिल

उनका कहना था कि अभी भारत में झीलों के संरक्षण के लिए कोई क़ानून नहीं है. इसके लिए कैसा ढांचा तैयार किया जाए, इस पर विचार चल रहा है.

उन्होंने बताया कि 'केंद्रीय झील प्राधिकरण' गठित करने का भी सुझाव सामने आया है.

 मानवीय अतिक्रमण झीलों के तट तक आ पहुंचा है और घरेलू तथा ठोस कचरा झीलों में बहाया जाना चिंता की बात है
 
प्रतिभा पाटिल, भारतीय राष्ट्रपति

मीणा का कहना था कि भारत में 2700 प्राकृतिक झीलें हैं और लगभग 65 हज़ार मानव निर्मित छोड़ी-बड़ी झीलें हैं. उन्होंनें कहा कि सरकार झीलों के संरक्षण के लिए कानून बनाने पर विचार कर रही है.

उनका कहना था कि पहले ख़तरा शहरी झीलों को था लेकिन अब यह गाँवों तक जा पहुँचा है.

उड़ीसा राज्य की प्रसिद्ध चिल्का झील पर काम कर चुके अजीत पटनायक ने सम्मेलन में कहा कि स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर झीलों पर गहरा रहे संकट से निपटने के उपाय खोजने चाहिए.

नीदरलैंड के जलविज्ञानी रमेश गुलाटी ने बीबीसी से कहा,"हम झीलों के पुराने स्वरूप को तो नहीं लौटा सकते लेकिन वर्तमान जलस्रोतों को भी बचा लें तो प्रकृति की सेवा होगी.

उन्होंनें कहा कि भारत में झीलों के संरक्षण का ध्यान देर से आया है लेकिन अभी भी बहुत कुछ बचाया जा सकता है.

इस 12वें विश्व झील सम्मेलन में दुनिया भर के 700 से अधिक विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् भाग शामिल हुए है जो झीलों के संरक्षण के उपायों पर विचार करेंगे.

बहरहाल, सम्मेलन के आयोजकों को उम्मीद है कि विशेषज्ञ जब गहन सोच विचार के बाद उठेंगे तो झील और ताल-तलैयों के संरक्षण की कुंजी उनके हाथ में होगी.

 
 
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