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यह भारत का आंतरिक मामला है: अमरीका | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारत के प्रधानमंत्री ने परमाणु सहमति को लागू करने में आ रही परेशानी से अमरीका को अवगत कराया है. इस पर अमरीका ने कहा है कि यह समझौता दोनों देशों के हित में है लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि इसका फ़ैसला करना भारत के हाथ में है क्योंकि यह उसका आतंरिक मामला है. ग़ौरतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ सोमवार को फ़ोन पर बातचीत की और उन्हें बताया कि दोनों देशों के बीच प्रस्तावित परमाणु करार लागू करने में परेशानी आ रही है. इसके बाद अमरीका में राष्ट्रपति के कार्यालय के प्रवक्ता ने कहा है कि मामला बहुत पेचीदा है इसलिए अमरीका भारत को यह नहीं बताने जा रहा कि वह अपना अंदरूनी मामला कैसे हल करे. साथ ही उनका ये भी कहना था कि अमरीका इस मामले को जल्द से जल्द हल होता हुआ देखना चाहेगा. 'छोटी सी रुकावट' प्रवक्ता का कहना था कि इस सहमति को अमरीका की दोनों ही पार्टियों - रिपब्लिकन और डेमोक्रैट्स ने मंज़ूरी दी थी और उन्हें पूरी उम्मीद है कि जब ये सहमति आख़िरी पड़ाव में पहुँचेगी तब भी इसे दोनों ही पार्टियों की मंज़ूरी मिलेगी. उधर अमरीकी कांग्रेस की प्रतिनिधि सभा में इंडिया कॉकस यानि भारत के हित में काम करने वाले समूह के अध्यक्ष जिम मैकडॉरमट का मानना है कि 'यह एक लम्बे रास्ते के बीच में आई छोटी सी रुकावट है.' उनका कहना था कि 'अमरीका को भी यह एहसास है कि लोकतंत्र में जब भी इस तरह के मामले उठते हैं तो वक़्त तो लगता ही है.' यूएस-इंडिया बिज़नेस काउंसिल के चेयरमैन रॉन समर्स का कहना था कि उन्हें अभी भी पूरी उम्मीद है. उन्होनें कहा कि जब चीन के साथ अमरीका का 123 समझौता हुआ था तब उसमें तेरह साल लगे थे और भारत के साथ तो दो सालों में ही काफ़ी आगे निकल आए हैं. भारतीय मूल के लोग निराश लेकिन भारतीय मूल के लोग काफ़ी मायूस हैं. ऐसा इसलिए कि उन्होंने इस सहमति को अमरीकी कांग्रेस में पास करवाने में काफ़ी मेहनत की थी. इंडो-यूएस फ़्रेंडशिप काउंसिल के चेयरमैन स्वदेश चटर्जी का कहना था, "भारत सरकार के इस रूख़ से केवल निराशा ही नहीं हुई बल्कि ऐसा लगता है जैसे हमारे साथ धोखा हुआ हो." अन्य लोगों से बातचीत से प्रतीत होता है कि वे मानते हैं कि कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते कि भारत-अमरीका के रिश्ते बेहतर हों. वे ये भी कहते हैं कि जब भारत-अमरीका के लोग एकजुट हो जाएँगे, तब उन्हें अंदाजा हो जाएगा कि सहमति दोनों देशों के बेहतरी के लिए है और तब यह समझौता अपनी मंजिल पर पहुँच जाएगा. | इससे जुड़ी ख़बरें 'परमाणु समझौता लागू करने में परेशानी'15 अक्तूबर, 2007 | भारत और पड़ोस परमाणु ऊर्जा देश के लिए ज़रूरी:मनमोहन20 अगस्त, 2007 | भारत और पड़ोस क्या यह मनमोहन-सोनिया की हार है?13 अक्तूबर, 2007 | भारत और पड़ोस 'यूपीए सरकार को कोई ख़तरा नहीं'12 अक्तूबर, 2007 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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