सोमवार, 17 सितंबर, 2007 को 14:28 GMT तक के समाचार
शहज़ाद मलिक
बीबीसी संवाददाता, इस्लमाबाद
पाकिस्तान में राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के दो पदों पर रहने के ख़िलाफ़ याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग पर टिप्पणी की है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस फ़लक शेर ने चुनाव आयोग पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि एक निचली संस्था संविधान में कैसे संशोधन कर सकती है.
इन याचिकाओं की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय पीठ कर रही है जिसकी अगुआई जस्टिस राणा भगवान दास कर रहे हैं. एक याचिका जमाते इस्लामी की है और दूसरी इमरान ख़ान की.
याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जब जमात-ए-इस्लामी के वकील अकरम शेख ने चुनाव आयोग की ताज़ा अधिसूचना की ओर अदालत का ध्यान खींचा.
चुनाव आयोग की अधिसूचना में आने वाले राष्ट्रपति चुनाव में परवेज़ मुशर्रफ़ को दो साल की पाबंदी से छूट दी गई है. जमात के वकील अकरम शेख़ ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त का ये क़दम अदालत की अवमानना के दायरे में आता है.
फ़ैसला
जस्टिस जावेद इक़बाल ने अपनी टिप्पणी में कहा कि वो इस पर पार्टियों की बहस को सुनेंगे. उन्होंने कहा कि इस पर बाद में फ़ैसला होगा कि चुनाव आयोग को ये अधिकार है या नहीं.
अकरम शेख़ ने अपनी याचिका के पक्ष में दलील देते हुए कहा कि राष्ट्रपति के रूप में जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ का कार्यकाल 11 सितंबर को ही ख़त्म हो चुका है. इसलिए वे राष्ट्रपति के रूप में काम नहीं कर सकते.
उन्होंने कहा कि संविधान के मुताबिक़ राष्ट्रपति चुनाव 30 दिन बाद और 60 दिनों के अंदर होने चाहिए और इसलिए परवेज़ मुशर्रफ़ ना तो राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं और ना ही चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाख़िल कर सकते हैं.
अकरम शेख़ ने इस पर हैरानी जताई कि राष्ट्रपति के वकील शरीफ़ुद्दीन पीरज़ादा कैसे कह सकते हैं कि राष्ट्रपति का कार्यकाल 15 नवंबर को ख़त्म हो रहा है.
उन्होंने कहा कि संविधान में ये स्पष्ट रूप से लिखा है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी अवकाश ग्रहण करने के दो साल तक किसी भी चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकता. जबकि सैनिक ये शपथ लेते हैं कि वे किसी राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेंगे.
उन्होंने अदालत से अपील की कि अदालत इस पर ग़ौर करे क्योंकि जनता की निगाहें अदालत पर लगी हुई है. अकरम शेख़ ने कहा कि देश के 16 करोड़ जनता के भविष्य का फ़ैसला एक व्यक्ति कैसे कर सकता है.
नियुक्ति
याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील एतज़ाज़ अहसन को अदालत की सहायता के लिए नियुक्त किया गया है. जब अदालत ने एतज़ाज़ अहसन से पूछा कि वे इस मामले पर अपनी दलील कब पूरी करेंगे तो सरकारी वकील अहमद रजा क़सूरी ने आपत्ति की.
उन्होंने कहा कि एतज़ाज़ हसन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के प्रति कैसा रुख़ रखते हैं- सभी जानते हैं. रजा क़सूरी ने कहा कि एतज़ाज़ अहसन कोर्ट की सहायता की जगह राजनीतिक बयानबाज़ी करेंगे.
इस पर एतज़ाज़ अहसन ने कहा कि उन्हें अदालत के अंदर गंभीर चेतावनी दी जा रही है और अदालत इसका नोटिस ले. इसके बाद वे अदालत के बाहर चले गए.
बाद में जस्टिस राणा भगवान दास ने सरकारी वकील की आपत्तियों को ख़ारिज कर दिया और कहा कि एतज़ाज़ अहसन अदालत की सहायता करेंगे.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय खंडपीठ ने सुनवाई कर रही बेंच के विस्तार की याचिका ख़ारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इफ़्तिख़ार मोहम्मद चौधरी ने इस याचिका की सुनवाई से अपने को अलग कर रखा है.
जस्टिस राणा भगवान दास ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इन याचिकाओं पर सुनवाई प्रतिदिन होगी.