बुधवार, 04 जुलाई, 2007 को 13:42 GMT तक के समाचार
आमिर अहमद ख़ान
बीबीसी के पाकिस्तान संपादक
इस्लामाबाद की लाल मस्जिद इस साल की शुरुआत से पहले भले ही सुर्खियों में न रही हो, लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथ से इसका नाता क़रीब एक दशक पुराना है.
लाल मस्जिद इस्लामाबाद के अमीर रिहायशी इलाक़े में स्थित है और पाकिस्तानी ख़ुफिया एजेंसी आईएसआई का मुख्यालय इससे कुछ ही क़दमों की दूरी पर है.
इस मस्जिद में पाकिस्तान की बड़ी-बड़ी हस्तियों की आमद रहती है जिनमें शीर्ष नौकरशाहों के अलावा आईएसआई के आला अधिकारी भी शामिल हैं.
इस समय मस्जिद के सरपरस्त अब्दुल अज़ीज़ और अब्दुल राशिद नाम के दो भाई हैं.
दक्षिण पंजाब प्रांत से नाता रखने वाले इन दोनों भाइयों से पहले मस्जिद का संचालन उनके पिता मौलाना अब्दुल्ला करते थे.
लेकिन मस्जि़द के भीतर ही उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.
कोई नहीं जानता कि मौलाना की हत्या क्यों की गई, लेकिन इसके बाद से मस्जिद के चरमपंथी वारदातों से संबंध होने की बात कई बार सामने आई.
9/11 के बाद
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले से पहले तक लाल मस्ज़िद की कारगुज़ारियाँ पर्दे में थीं, लेकिन इस घटना के बाद पाकिस्तान का अमरीका का प्रमुख सहयोगी बन जाने से यह मस्जिद चरमपंथियों की शरणस्थली में तब्दील हो गई.
खुफ़िया एजेंसियों के अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जैश़-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तान के प्रमुख कट्टरपंथी संगठन इसी मस्जिद में अमरीका के ख़िलाफ़ रणनीतियां तैयार करने का काम करते थे.
इस मस्जिद परिसर में महिलाओं का मदरसा है जिसमें दो से तीन हज़ार लड़कियां वहीं हॉस्टल में रहकर तालीम हासिल करती हैं.
इसके अलावा कुछ ही फ़ासले पर लड़कों का जामिया-फ़रीदिया मदरसा है. मस्जिद के इस प्रमुख मदरसे में करीब पँच हजार छात्र सीख लेते हैं.
मैं कई बार इस मस्जिद में गया हूँ और वहाँ मैने छात्र-छात्राओं को खुले आम पिस्तौल, रायफ़ल और ख़तरनाक क्लाशिनकोव रायफ़ल लिए घूमते देखा.
हालाँकि आमतौर पर पाकिस्तान में कट्टरपंथी संस्थानो में इस तरह की गतिविधियाँ कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन लाल मस्ज़िद को जो एक चीज दूसरों से जुदा करती है वह है पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों का कथित तौर पर इसकी गतिविधियों में शामिल होना.
ऐसा माना जाता है कि मस्ज़िद प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था में गहरी पैठ है, जिसके कारण सरकार मस्जि़द के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने से हिचकिचाती है.
आत्मघाती हमलों की धमकी
अब्दुल बंधुओं ने ख़ुद कई बार प्रशासन को चेतावनी तक दी है कि उनके पास कई आत्मघाती हमलावर हैं जो आदेश पाने पर हमला करने के लिए तैयार हैं.
मुशर्रफ ने भी मस्जिद में आत्मघाती हमलावरों की मौजूदगी पर गंभीर चिंता ज़ाहिर की है.
इन दिनों वहाँ चल रही कार्रवाई के दौरान हमने कई बार दोनों अब्दुल भाइयों को अपने आत्मघाती हमलावरों से अनुरोध करते सुना कि वे तब तक हमला न करें जब तक उन्हें आदेश नहीं दिया जाता.
इस विवादास्पद मस्जिद के बारे में पाकिस्तान में इस समय दो तरह के मत हैं.
पहला यह कि मस्जिद मज़हबी कट्टरपंथियों और सुरक्षा अधिकारियों के बीच सेतु का काम करती है. इसलिए जब तक पाकिस्तानी अधिकारियों को इसके लोगों की अपने विदेश नीति के एजेंडे में ज़रूरत पड़ती है तब तक मस्जिद के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं होगी.
दूसरा मत है कि लाल मस्जिद के सिलसिले में सरकार का रुख़ राष्ट्रपति मुशर्रफ़ के अनिर्णायक रवैए और और सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का प्रतीक है.
चाहे जो भी मत सही हो, कम ही लोग ये मानते हैं कि सरकार मस्जिद के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी.
लेकिन दंगों में लोगों के मारे जाने के बाद ये स्थिति अब्दुल भाइयों के ख़िलाफ़ मोड़ ले सकती है हालाँकि हज़ारों लोगों को मुशर्रफ़ सरकार की कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की क़ाबिलियत पर शक है.