|
ये सही नहीं हुआ..... | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
फ़िल्म अभिनेता संजय दत्त को छह साल की सज़ा !! ऑफ़िस कैंटीन में खाना खा रही लड़कियों के हाथ से निवाला छूट गया. एक स्वर से कहा “दिस इज़ अनफ़ेयर – ये सही नहीं है”. लंच का समय था, आधे दिन से सभी पत्रकार इसी ख़बर की अपेक्षा कर रहे थे. लेकिन सज़ा की ख़बर कुछ हद तक अप्रत्याशित थी. ऐसा नहीं है कि इन लोगों को संजय दत्त के इस मामले में शामिल होने पर शक था. तो इतना आश्चर्य क्यों. हमेशा शिकायत होती है कि देश में क़ानून ताक़तवर के लिए अलग और कमज़ोर के लिए काम करता है. तो जब आज इतना बड़ा नाम इसी क़ानून की ग़िरफ़्त में आ गया तो फिर समाज क्यों दहल गया. संजय ने दो दिन पहले ही अपना जन्मदिन मनाया था, पूरा परिवार दुआएँ माँग रहा था, टीवी पर रोज़ ख़बरें चल रही थीं कि संजय का फ़ैसला सुनाया जाना है. संजय अपनी लकी शर्ट पहन कर कोर्ट पहुँचे थे, बहनें साथ थीं, लोग उनसे गले मिले जा रहे थे. सैकड़ों की भीड़ जमा थी. अदालत उन्हें दोषी पहले ही क़रार दे चुकी थी लेकिन फिर भी लोगों को सज़ा की उम्मीद नहीं थी. और वो भी छह साल! छवि परिवर्तन
क्यों संजय दत्त आज जनता की आखों में बरी हैं? क्या है कि उनके साथ इतनी संवेदना है? सिर्फ़ इसलिए कि वो फ़िल्मस्टार हैं या 100 करोड़ उनपर लगे हैं. या इसलिए क्योंकि वे नरगिस और सुनील दत्त के बेटे हैं जिन्हें इस देश में सफलता और इज़्ज़त के बहुत ऊँचे पायदान पर रखा जाता है. एक समय था जब संजय की बीमार माँ उन्हीं की चिंता में परेशान रहती थीं. एक तऱफ नरगिस और सुनील दत्त के लिए सम्मान था वहीं उनका बेटा हर बुरी आदत का शिकार था. कभी नशे के लिए, कभी अपनी आदतों के लिए, संजू बाबा सुर्खियों में बने रहते. फिर फ़िल्मों में डॉन, खलनायक, भाई के किरदार और असली ज़िंदगी में अंडरवर्ल्ड से रिश्तों के इल्ज़ाम. यही इमेज थी संजय की. अख़बारों में 20 अप्रैल 1993 की वो फ़ोटो है जिसमें 34 साल के संजय दत्त को टाडा अदालत ले जाया जा रहा है. और ग़ौर से देखें तो जवानी के जोश से भरे उस संजय और आज 48 साल के संजीदा मुन्नाभाई में बहुत फ़र्क़ आ गया है. मुन्नाभाई
फिछले कुछ सालों में संजय ने अपने आपको फिर से जैसे पा लिया हो. जिस बेटे के लिए सुनील दत्त बरसों चितित रहे उन्हीं के साथ की गई संजय की एक फ़िल्म उनके करियर का एक मील का पत्थर साबित हुई. मुन्नाभाई एमबीबीएस ने सिर्फ़ सफलता पाई बल्कि संजय की इमेज को काफ़ी हद तक बदल कर रख दिया. जैसे नरगिस दत्त हमेशा मदर इंडिया के लिए जानी जाती रहेंगी वैसे ही संजय दत्त मुन्नाभाई के लिए. मुन्नाभाई का किरदार शायद संजय की निजी ज़िंदगी से मिलता जुलता था. एक ऐसा भटका हुआ शख़्स जो धीरे धीरे अपनी ज़िदगी की गति पा ही जाता है और ढूंढ ही लेता है दुनिया को जीतने का तरीक़ा. तो हिंसा से अहिंसा तक आने का यह रास्ता, यह गांधीवादी तरीक़ा, हीरो के लिए और संजय के लिए भी एक नए जन्म के समान था. ज़िंदगी का न्याय बहुत से लोग – फ़िल्म इंडस्ट्री में हो या आम जनता – यह मानते हैं कि संजय सुधर गए. और उन्होंने न सिर्फ़ अपनी ग़लतियों को सुधारा है, बल्कि जीवन का सही रास्ता भी चुन लिया है. उनका परिवार उनके साथ है और उनके ढेरों दोस्त हैं. वो फिर से शादी करने वाले थे. उनकी बड़ी हो चुकी बेटी उनका साथ दे रही है. फ़िल्मी करियर भी बुंलदी पर है. वो सुखी हैं, स्वस्थ हैं और आखिरकार सफलता की ही राह पर हैं. लेकिन अचानक यह मोड़ आ गया. एक सुंदर सपना टूट गया. पुरानी ग़लतियों की सज़ा आज मिल गई. और तब, जब कुछ सही चल रहा था. शायद यही वजह है कि लोग आज कुछ उदास हैं. क्या ग़लत है क्या सही यह फ़ैसला करना अदालत का काम है और वही उसने किया भी. लेकिन समय बहुत लगा दिया. इस बीच संजय की ज़िंदगी की गाड़ी बहुत आगे बढ़ गई और अब जब संजय दत्त यह सज़ा काट कर लौटेंगे तो उम्र के पाँचवें दशक में होंगे... और तब शायद दुनिया कुछ बदल चुकी होगी. |
इससे जुड़ी ख़बरें संजय दत्त को छह साल की क़ैद31 जुलाई, 2007 | भारत और पड़ोस सदमे में हैं बॉलीवुड और संजू के प्रशंसक31 जुलाई, 2007 | भारत और पड़ोस 1993 के मुंबई बम धमाकों का घटनाक्रम10 अगस्त, 2006 | भारत और पड़ोस मुंबई: तीन और को मौत की सज़ा24 जुलाई, 2007 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||