|
ग्लोबल वार्मिंग: कारण और उपाय | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है. विज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेंगी और मौसम का मिज़ाज बुरी तरह बिगड़ा हुआ दिखेगा. इसका असर दिखने भी लगा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं और रेगिस्तान पसरते जा रहे हैं. कहीं असामान्य बारिश हो रही है तो कहीं असमय ओले पड़ रहे हैं. कहीं सूखा है तो कहीं नमी कम नहीं हो रही है. वैज्ञानिक कहते हैं कि इस परिवर्तन के पीछे ग्रीन हाउस गैसों की मुख्य भूमिका है. जिन्हें सीएफसी या क्लोरो फ्लोरो कार्बन भी कहते हैं. इनमें कार्बन डाई ऑक्साइड है, मीथेन है, नाइट्रस ऑक्साइड है और वाष्प है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये गैसें वातावरण में बढ़ती जा रही हैं और इससे ओज़ोन परत की छेद का दायरा बढ़ता ही जा रहा है. ओज़ोन की परत ही सूरज और पृथ्वी के बीच एक कवच की तरह है. तो क्या कारण हैं ग्लोबल वार्मिंग के? वैज्ञानिक कहते हैं कि इसके पीछे तेज़ी से हुआ औद्योगीकरण है, जंगलों का तेज़ी से कम होना है, पेट्रोलियम पदार्थों के धुँए से होने वाला प्रदूषण है और फ़्रिज, एयरकंडीशनर आदि का बढ़ता प्रयोग भी है. क्या होगा असर? वैज्ञानिक कहते हैं कि इस समय दुनिया का औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड है और वर्ष 2100 तक इसमें डेढ़ से छह डिग्री तक की वृद्धि हो सकती है. एक चेतावनी यह भी है कि यदि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन तत्काल बहुत कम कर दिया जाए तो भी तापमान में बढ़ोत्तरी तत्काल रुकने की संभावना नहीं है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्यावरण और पानी की बड़ी इकाइयों को इस परिवर्तन के हिसाब से बदलने में भी सैकड़ों साल लग जाएँगे. ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उपाय वैज्ञानिकों और पर्यावरणवादियों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए मुख्य रुप से सीएफसी गैसों का ऊत्सर्जन कम रोकना होगा और इसके लिए फ्रिज़, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिनसे सीएफसी गैसें कम निकलती हैं. औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकले वाला धुँआ हानिकारक हैं और इनसे निकलने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड गर्मी बढ़ाता है. इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे. वाहनों में से निकलने वाले धुँए का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख़्ती से पालन करना होगा. उद्योगों और ख़ासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी. और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा. अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानी अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो आबोहवा को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है. याद रहे कि जो कुछ हो रहा है या हो चुका है वैज्ञानिकों के अनुसार उसके लिए मानवीय गतिविधियाँ ही दोषी हैं. | इससे जुड़ी ख़बरें जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ अभियान09 फ़रवरी, 2006 | पहला पन्ना जलवायु परिवर्तन पर अमरीका से अनुरोध27 जनवरी, 2005 | पहला पन्ना अमरीका नहीं मानेगा क्योटो संधि को08 दिसंबर, 2004 | पहला पन्ना जलवायु मुद्दे पर अन्नान की चेतावनी15 नवंबर, 2006 | पहला पन्ना 'जलवायु परिवर्तन पर रिपोर्ट आँखें खोलने वाली'30 अक्तूबर, 2006 | पहला पन्ना उदासीनता के गर्त में डूबता सुंदरबन06 फ़रवरी, 2007 | भारत और पड़ोस 'एशिया में प्रदूषण तीन गुना तक बढ़ेगा'14 दिसंबर, 2006 | भारत और पड़ोस बढ़ती गर्मी से गंगोत्री ग्लेशियर ख़तरे में06 अप्रैल, 2007 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||