बुधवार, 14 मार्च, 2007 को 16:15 GMT तक के समाचार
अहमद रशीद
बहुत से पाकिस्तानियों को लगता है कि राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ कुछ अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं और राष्ट्रपति के लिए यह नया सिरदर्द इस रूप में आया है कि कुछ लोग मुख्य न्यायाधीश इफ़्तिख़ार चौधरी के निलंबन को राजनीति से प्रेरित मानते हैं और वे इस निलंबन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं.
पाकिस्तानी पंजाब के लाहौर में वकीलों की पुलिस के साथ भिड़ंत में उनके काले कोट भी ख़ून में रंग गए जिससे पाकिस्तान की छवि ख़राब हुई है. लेकिन इससे पहले ही ऐसे संकेत मिलने लगे थे कि इस्लामी अतिवाद मज़बूती हासिल कर रहा है.
आम आदमी क़ानून और व्यवस्था की स्थिति और ख़राब होने की शिकायतें कर रहा है और अमरीका, यूरोप और पड़ोसी देशों के साथ पाकिस्तान के संबंधों में तनाव आ रहा है.
साल 2007 राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के लिए चुनावी वर्ष है लेकिन दो मुद्दों ने उनके लिए ख़ासा सिरदर्द पैदा कर दिया है.
पहला मुद्दा ये है कि सेना देश के एक बड़े हिस्से पर सरकार का दबदबा बनाने में नाकाम रही है और सेना ने इस्लामी अतिवाद का मुक़ाबला करने से इनकार कर दिया है.
दूसरा मुद्दा कुछ अतिवादियों का यह कहना है कि वे सरकार की वैधता को अब कोई मान्यता नहीं देते और वे ऐसा तभी करेंगे जब एक इस्लामी क्रांति हो जाए.
फ़रवरी में हुए आत्मघाती हमलों में जज, सैनिक और सिपाही, राजनीतिज्ञ, वकील और साधारण औरतें और बच्चे शिकार बने जो बिल्कुल निर्दोष थे. अधिकारियों ने उन आत्मघाती हमलों के सिलसिले में कुछ गिरफ़्तारियाँ भी कीं.
इस्लामाबाद में बैठे विदेशी राजनयिक यह देखकर चकित रह गए थे कि सरकगार ने कलाशनिकोव राइफ़लों से लैस क़रीब दीन हज़ार महिला चरमपंथियों के सामने उस समय घुटने टेक दिए जब सरकार ने एक ऐसे मदरसे को ख़ाली कराने की कोशिश की जिसका निर्माण अवैध तरीके से किया गया था.
यानी देश की राजधानी के केंद्र में महिलाओं ने सरकार की तरफ़ से आए आदेशों को मानने से इनकार कर दिया.
इस मुद्दे पर कैबिनेट में भी कुछ मतभेद नज़र आए और इस्लामी-दक्षिणपंथी समर्थक माने जाने वाले धार्मिक मामलों के मंत्री एजाज़ उल हक़ ने खुलकर उन महिलाओं की तरफ़दारी की. उधर कुछ अतिवादी महिला राजनीतिज्ञों को धमकियाँ दे रहे हैं, प्रमुख शहरों में क़ानून और व्यवस्था की स्थित ख़राब हो रही है.
जन आलोचना
पाकिस्तान की छवि को तब और धक्का लगा जब सरकारी विमान सेवा पीआईए के अनेक विमानों पर सुरक्षा ख़तरों की चिंता के बीच यूरोपीय संघ में उड़ने पर पाबंदी लगा दी गई. विमान सेवा के अधिकारियों और मंत्रियों ने इन आरोपों खंडन किया कि इस मामले में कोई समस्या खड़ी हुई है.
अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ की छवि दाव पर लगी नज़र आ रही है क्योंकि अमरीका और नैटो देशों ने आतंकवाद से लड़ने के उनके तरीकों पर सवाल उठाया है.
अमरीका के उपराष्ट्रपति डिक चेनी ने फ़रवरी में अपने पाकिस्तान दौरे के दौरान चेतावनी दी कि पाकिस्तान की ठोस कार्रवाई के अभाव में तालेबान और अल क़ायदा के लड़ाके पाकिस्तानी ज़मीन पर सक्रिय हैं.
इस बीच भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बाद ईरान ने भी इस तरह के आरोप लगाए हैं कि पाकिस्तान उसके अंदरूनी मामलों में दख़लअंदाज़ी कर रहा है.
ईरानी नेताओं ने मार्च के प्रथम सप्ताह में आरोप लगाया था कि पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए शरणस्थली बन गया है. ईरानी नेताओं ने यह भी कहा था कि बहुत से आतंकवादियों ने ईरान में कुछ लोगों को मार दिया और सीमा पार करके पाकिस्तान पहुँच गए.
इतना ही नहीं, ईरान ने इस बार में भी शक ज़ाहिर किया है कि पाकिस्तान अमरीका की मदद से अरब देशों के साथ मिलकर एक सुन्नी गुट बनाने की कोशिश कर रहा है जो शिया बहुल ईरान के ख़िलाफ़ काम करेगा. जबकि पाकिस्तान ईरान पर आरोप लगाता है कि ईरान बलूचिस्तान में विद्रोहियों को सहायता देकर समस्या खड़ी कर रहा है.
पाकिस्तान एक ऐसा देश बन गया है जिसकी सीमाओं पर सबसे ज़्यादा बाड़ लग चुकी है. भारत के बाद अब ईरान भी पाकिस्तान से लगी अपनी सीमा पर बाड़ बना रहा है और पाकिस्तान ख़ुद अफ़ग़ानिस्तान से लगने वाली सीमा पर बाड़ बनाने की ख़्वाहिश ज़ाहिर कर चुका है.
ये सब समस्याएँ तभी आई हैं जब राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के लिए चुनाव सिर पर हैं और वह इस पद पर अन्य पाँच साल के लिए चुने जाने और सेना प्रमुख बने रहने की इच्छा रखते हैं.
पाकिस्तान में इतिहास गवाह है कि सैनिक शासक अपनी पारी अनिश्चितकाल के लिए जारी रखने और चुनाव नतीजे अपने पक्ष में प्रभावित करने में कामयाब होते आए हैं.
लेकिन सैनिक शासक बढ़ते अतिवाद का सामना करने के आदी नहीं रहे हैं और इनमें वज़ीरिस्तान जैसे मुद्दे और बड़ी समस्याएँ खड़ी कर सकते हैं.
परमाणु शक्ति संपन्न पाकिस्तान जैसे देश के आम लोग भविष्य के बारे में डर रहे हैं.