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सोमवार, 19 फ़रवरी, 2007 को 20:44 GMT तक के समाचार
 
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बेरोज़गारी और विकास है मुद्दा
 

 
 
चुनाव प्रचार
उत्तराखंड राज्य अपने अस्तित्व में आने के बाद दूसरी बार विधानसभा चुनावों का सामना कर रहा है.

सत्तर विधानसभा सीटों वाले इस राज्य का निर्माण उपेक्षा और पिछड़ापन दूर करने के नारे के साथ हुआ था.

लेकिन दिलचस्प है कि राज्य बनने के सात साल और दो सरकारों बाद हो रहे चुनावों में भी यही नारा गूँज रहा है.

फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि पिछड़ापन दूर करने के वादे को विकास के आश्वासन में बदल दिया गया है. उपेक्षा के आरोप-प्रत्यारोप अभी भी जारी हैं.

इस बीच कुछ नए मुद्दे भी उभरकर सामने आए हैं. उनमें से ज़्यादातर राजनीतिक मुद्दे हैं.

इनमें से एक है. भ्रष्टाचार. यह एक ऐसा मुद्दा है जो हर सत्ताधारी दल पर विपक्ष में बैठा दल लगाता है. चाहे उसका नाम जो हो.

भारतीय जनता पार्टी के युवामोर्चा के अध्यक्ष पुष्कर सिंह धामी कहते हैं, “जब यह सरकार बनी थी तो लोगों को बहुत उम्मीद थी लेकिन सरकार ने तो पाँच साल में सिर्फ़ भ्रष्टाचार और घोटालों का कुशासन दिया.”

लेकिन कांग्रेस के केंद्रीय पर्यवेक्षक कृपाशंकर सिंह इस आरोप को सिरे से खारिज करते हैं. वे कहते हैं, “चुनाव में नारा लगाना एक बात है. जो लोग भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं वो एक उदाहरण तो दें जिसमें सरकारी खजाने का दुरुपयोग हुआ हो या किसी परियोजना में घोटाला हुआ हो.”

वैसे भ्रष्टाचार राज्य की जनता के ज़हन में कोई मुद्दा दिखता भी नहीं.

बेरोज़गारी

जनता के पास जो सबसे बड़ा सवाल है वह है रोज़गार का.

उधमसिंह नगर जैसी जगहों पर जहाँ विशेष औद्योगिक क्षेत्र स्थापित किए गए हैं और पिछले कुछ सालों में तीन सौ से भी ज़्यादा उद्योग लगे हैं, वहाँ भी रोज़गार मुद्दा है.

उत्तराखंड
लोग चाहते हैं कि राज्य के निवासियों के लिए नौकरियों में 75 प्रतिशत जगह आरक्षित कर दी जाएँ

जिन्हें रोज़गार मिला भी है वो इसलिए नाख़ुश हैं कि काम सीधे उद्योग में नहीं मिला है. ठेके पर मिला है.

रुद्रपुर में रहने वाले संदीप सिंह कहते हैं, “मुझे एक ठेकेदार के पास काम मिला है लेकिन वहाँ तो कोई नियम क़ानून ही लागू नहीं होते. न मज़दूरी को लेकर न सुरक्षा और सुविधा को लेकर.”

हालांकि राजनीतिक दल इस बहस से दूर रहना चाहते हैं. वो मानते हैं कि रोज़गार किसी भी तरह का हो सकता है.

कांग्रेस की सरकार ने पिछली बार सत्ता में आने के लिए राज्य में पाँच लाख रोज़गार उपलब्ध करवाने की बात कही थी.

 परियोजनाएँ शुरु हो गई हैं और धीरे-धीरे रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे
 
कृपाशंकर सिंह, कांग्रेस नेता

लेकिन आँकड़े बताते हैं कि रोज़गार एक लाख से ज़्यादा लोगों को नहीं मिल सका है.

कांग्रेस के नेता मानते हैं कि पर्याप्त संख्या में रोज़गार नहीं मिल सका है लेकिन वे फिर वादा करते हैं कि यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गाँधी ने नीति बना दी है कि छोटे राज्यों में ज़्यादा से ज़्यादा उद्योग स्थापित हों और इससे रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे.

कृपाशंकर सिंह कहते हैं कि परियोजनाएँ शुरु हो गई हैं और धीरे-धीरे रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे.

लेकिन भाजपा मानती है कि सरकार के पास रोज़गार की कोई स्पष्ट नीति नहीं है.

भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष धामी कहते हैं, “हमारी सरकार आई तो हम सत्तर प्रतिशत रोज़गार उत्तराखंड के लोगों के लिए आरक्षित करेंगे.”

वैसे बेरोज़गारी झेल रहे प्रदीप गौतम का कहना है कि यह सिर्फ़ नारा है क्योंकि पिछले चुनाव के पहले कांग्रेस ने भी यही वादा किया था. लेकिन हुआ कुछ नहीं.

विकास

लेकिन विकास एक ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में कोई नहीं कह पा रहा है कि विकास नहीं हुआ.

हर कोई कहता है कि विकास के काम तो हुए हैं. सड़कें बनीं हैं, स्कूल-कॉलेज खुले हैं और काम चल ही रहा है.

लेकिन राजनीतिक दलों ने विकास को फिर राजनीतिक मुद्दा बना रखा है.

विद्युत उपकरण
लोग मानते हैं कि राज्य बनने के बाद विकास के काम तेज़ी से हुए हैं

कांग्रेस के नेता मानते हैं कि विकास के नाम पर ही तो राज्य का निर्माण हुआ था इसलिए वही प्राथमिकता है.

मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी अपने कार्यकाल में हुए विकास के कार्यों से संतुष्ट दिखते हैं. उन्होंने एक चुनावी रैली में अपने छोटे से भाषण में कहा, “विकास के काम जो हमने किए हैं उसे देखिए और फिर वोट दीजिए.”

हालांकि भाजपा का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने जो औद्योगिक पैकेज राज्य को दिया था उसका उपयोग सरकार ने किया नहीं और यदि औद्योगिक विकास न हुआ तो राज्य का क्या विकास होगा.

इसके अलावा महंगाई और कई स्थानीय मुद्दे हैं जिनकी बात हो रही है लेकिन देखना यह है कि इसका असर कितना होता है.

एक बार फिर जनता के हाथों में वोट हैं और राजनीतिक दलों के पास तरह-तरह के वादे हैं. जनता तौल रही है कि किसके वादे कम फ़रेबी हैं.

 
 
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