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गुरुवार, 12 अक्तूबर, 2006 को 08:31 GMT तक के समाचार
 
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ज़हर साँप और अंधविश्वास का
 

 
 
साँपों को लेकर भारत में तरह-तरह की भ्रांतियाँ प्रचलित हैं
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत में साँप के काटने से होने बड़ी संख्या में होने वाली मौतों पर चिंता जताई है.

संगठन ने देश भर में साँप के बारे में पाए जाने वाले अंधविश्वासों को ख़त्म करने के लिए एक अभियान शुरू किया है.

भारत में हर साल 50 हज़ार लोग सर्पदंश से मौत की नींद सो जाते हैं.

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अगर समय पर सही इलाज मिल जाए तो इनमें से बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती है.

नीम हकीम और सँपेरे ग्रामीण इलाकों में अक्सर अवैज्ञानिक तरीक़े से सर्पदंश का इलाज करते हैं जिससे उन लोगों की भी जान चली जाती है जिन्हें बचाया जा सकता है.

तरह-तरह के अंधविश्वासों की वजह से लोग ठीक तरीक़े से इलाज नहीं कराते, मिसाल के तौर पर वे यह समझते हैं कि अगर मोर के पंख को सर्पदंश पर रख दिया जाए तो ज़हर उतर जाता है.

कुछ लोग तो क़सम खाकर इस बात की गवाही देते हैं कि उन्होंने मोर के पंख से अपना उपचार किया था और अब वे भले-चंगे हैं.

होता यह है कि मनुष्य को काटने वाला हर साँप ज़हरीला नहीं होता है इसलिए बिना विष वाले सांप के काटने से जो घाव बन जाता है वह समय के साथ ख़ुद ही भर जाता है, लेकिन भोले-भाले लोग उसे मोर के पंख का चमत्कार समझते हैं.

सर्पदंश की 100 में से 70 घटनाओं में बिना विष वाले साँप होते हैं और सिर्फ़ 30 प्रतिशत घटनाओं में साँप ज़हरीला होता है.

इस 30 प्रतिशत में से भी आधी घटनाओं में साँप सिर्फ़ काटता है अपना विष मनुष्य के शरीर में नहीं डाल पाता है, इसका मतलब यह हुआ कि सर्पदंश की 85 प्रतिशत घटनाओं में कोई नुक़सान नहीं होता है लेकिन गाँव के ओझा-जोगी अपना कमाल दिखाने और गाँव वालों पर अपनी धाक जमाने का अवसर मुफ़्त में मिल जाता है.

डब्ल्यूएचओ इन तरह-तरह की भ्रांतियों को दूर करके सर्पदंश से होने वाली मौतों को रोकना चाहता है, भारत में सर्पदंश से जितने लोग मरते हैं वह दुनिया में सबसे अधिक है.

 
 
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