सोमवार, 04 सितंबर, 2006 को 14:42 GMT तक के समाचार
वेदिका त्रिपाठी
मुंबई से
मुंबई के कुछ मुसलमान पिछले कई वर्षों से गणेश चतुर्थी का पर्व उसी उत्साह के साथ मनाते हैं जिस तरह हिंदू, लेकिन मुंबई बम कांड और वंदे मातरम् जैसे मुद्दे पर बहस तेज़ होने से दोनों समुदायों के बीच खिंचाव भी दिखाई देता है.
मगर इसका कोई ख़ास असर इस बार के गणेश उत्सव के ऊपर दिखाई नहीं दिखा.
पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी गणपति पूजा करने वाले कई मुसलमानों ने पूरे ग्यारह दिन तक नमाज़ पढ़ी और साथ-साथ गणपति बप्पा की भी पूजा-अर्चना करते रहे.
मुंबई के चर्चगेट इलाके में रहने वाली शाहिदा शाह इन्हीं भक्तों में से एक हैं.
पिछले नौ वर्ष से ये अपने घर में गणपति बिठा रहीं हैं. वे कहती हैं, “मुझे लगता है कि इससे मेरे पति को तरक्की मिलती है. मुझे गणपति बप्पा से भी उतना ही लगाव है जितना कि अल्लाह से. मैंने कभी इन्हें बाँटकर नहीं देखा कि ये अल्लाह हैं और ये भगवान”.
उन्हें गणेशजी पर इतना भरोसा है कि ये कहती हैं, “शायद मेरा कर्म हिंदू है और धर्म मुसलमान. नमाज़ पढ़ने के साथ ही मैं आरती करना भी नहीं भूलती हूँ”.
पूरे ग्यारह दिन तक ये पहले आरती गणेशजी की आरती करती हैं और फिर नमाज़ पढ़ती हैं.
शाहिदा जिस अपार्टमेंट में रहती हैं उसमें रहने वाले ज़्यादातर मुसलमान हैं, उन्हें इस बात का बहुत दुख है कि कोई उनके घर गणपति बप्पा की पूजा करने नहीं आता है.
मुसलमान होकर गणपति पूजा करने को सही ठहराते हुए वे कहती हैं, “जाति-धर्म इंसान बनाते हैं और अल्लाह और भगवान का बँटवारा तो हम इंसानों ने ही किया है”.
मुंबई के ही घाटकोपर इलाके में 1993 के दंगों के बाद से ही यहाँ के लोगों ने राम-रहीम मित्र मंडल की शुरूआत की और इनका मानना है कि गणपति बप्पा की ही कृपा से आज सब लोग आपस में भाई-भाई की तरह रहते हैं.
इस मंडल के एक कार्यकर्ता अब्दुल क़ासिम पठान के मुताबिक, “इस त्योहार को मनाने का मतलब है कि हमारे पूरे इलाके में सुख-शांति का बसेरा हो. पूरे ग्यारह दिन तक ये गणेशजी की पूजा करते हैं. सुबह नमाज़ के पहले और शाम को नमाज़ के बाद इस मंडल में गणेश आरती होती है”.
ये कहते हैं, “मुझे इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि मैं मुसलमान हूँ तो सिर्फ अल्लाह को ही पूज सकता हूँ. मेरे लिए दोनों एक समान है और एक जैसी श्रद्धा भी है”.
लगाव-अलगाव
राजेंद्र कंधारे हिंदू हैं लेकिन जिस तरह से उनके मुसलमान दोस्त उनके त्योहरों में उनका साथ देते हैं उसी तरह ये भी उनके रोज़े, रमज़ान में उनका साथ देते हैं.
लेकिन ऐसा नहीं कि हर कोई मुसलमानों के गणपति उत्सव मनाने से ख़ुश हो.
एक सज्जन ने नाम और फोटो नहीं छापने की शर्त पर कहा कि, “ऐसी गणपति पूजा करने का क्या फायदा है. बगल में बैठकर ये लोग गणेश आरती नहीं बल्कि रंगीले गीत सुनते हैं, ताश खेलते हैं. और तो और इन दिनों में भी माँस खाने से परहेज़ नहीं करते हैं”.
लेकिन डॉक्टर अनिरूद्ध सिंघल मुसलमानों की नीयत पर शक करने को ग़लत मानते हैं और कहते हैं, “यह हमारे समाज के लिए एक अच्छा मूव है. किसी के भगवान बँटे हुए नहीं हैं और इस तरह से जाति-धर्म का भेदभाव मिटेगा तो समाज को एक अच्छी और शांतिपूर्ण दिशा मिलेगी”.
सहमति-असहमति अपनी जगह है लेकिन इतना ज़रूर है कि मुंबई अपने जिस विविधतापूर्ण चरित्र के लिए जाना जाता है उसे बनाने वाले ऐसे ही हिंदू-मुसलमान हैं जो साथ-साथ शांति से जीना चाहते हैं.