मंगलवार, 08 अगस्त, 2006 को 12:32 GMT तक के समाचार
संजीव श्रीवास्तव
बीबीसी के भारत संपादक
भारतीय राजनीति पर ये दोष तो नहीं लगाया जा सकता कि इसमें आगे होने वाली घटनाओं के बारे में आसानी से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है.
जैसा किसी भी फलते-फूलते लोकतंत्र में होता है, भारतीय संसद के बारे में भी ये भविष्यवाणी करना आसान नहीं कि वहाँ क्या ‘एजेंडा’ छाया रहेगा.
संसद में कई बार क़ानून बनाने और प्रशासन से संबंधित गंभीर मुद्दों की जगह ऐसे विवादास्पद राजनीतिक मसले छा जाते हैं जिन्हें उठाने से विपक्ष ये मानता है कि वह राजनीतिक अखाड़े में सरकार को चित कर सकता है.
लेकिन जब संसद का मॉनसून सत्र शुरु हुआ तो ऐसा लगा कि कार्यवाही क्या होगी इसके बारे पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. इस बारे में अनुभवी राजनीतिक पर्यवेक्षक भी एकमत थे.
संसद का सत्र मुंबई बम धमाकों के बाद पहली बार हो रहा था. इन धमाकों में 182 लोग मारे गए थे और अनेक घायल हो गए थे. देश में भारतीय प्रशासित कश्मीर समेत कई जगह हिंसा बढ़ रही थी और सभी प्रमुख नेता इस बारे में चिंतित थे.
पश्चिम और दक्षिण भारत में बढ़ती महँगाई और कर्ज़ के कारण कई असहाय किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हुए थे और ये भी एक प्रमुख मुद्दा था.
छाए पूर्व विदेश मंत्री
लेकिन इन सब मुद्दों की जगह, दो हफ़्ते पहले जब से मॉनसून सत्र शुरु हुआ, तब से दो पूर्व विदेश मंत्री ध्यान का केंद्र बने हुए हैं.
संसद की पूरी कार्यवाही जैसे विशेषाधिकार नोटिसों के तकनीकी पहलुओं ने ‘हाईजैक’ कर ली है. इनमें से एक पाठक जाँच आयोग की रिपोर्ट लीक होने के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ख़िलाफ़ है और दूसरा अज्ञात जासूस के संदर्भ में पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह के ख़िलाफ़ है.
इन दोनों विवादों के केंद्र में हैं एक अमरीकी ‘एंगल’ जिसने इन विवादों में मिर्च-मसाला लगाने का काम किया है. वह इसलिए भी क्योंकि भारतीय राजनीति में एक ऐसा खेमा है जो अमरीका के विरोध में ख़ासी दिलचस्पी रखता है.
पहले पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की किताब – ‘एक कॉल टू ऑनर’ पर बवाल हुआ. इस पुस्तक में उन्होंने 1990 के दशक में, पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के कार्यकाल को दौरान, प्रधानमंत्री कार्यालय में एक जासूस होने की बात कही थी.
जसवंत सिंह का आरोप है कि ये जासूस भारत के परमाणु कार्यक्रम के बारे में अमरीका को सूचना दिया करता था. जैसी कि सभावना थी, इस आरोप से सदन में हंगामा हो गया और आम तौर पर शांत रहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भड़क गए और उन्होंने जसवंत सिंह को जासूस का नाम बताने की चुनौती दे डाली. अभी तक तो पूर्व विदेश मंत्री ने जासूस का नाम नहीं बताया है.
लेकिन इस मामले पर ‘सस्पेंस’ बना हुआ है क्योंकि जसवंत सिंह ने और गंभीर जानकारियाँ सार्वजनिक करने के संकेत दिए हैं. उधर कांग्रेस पार्टी के एक सांसद ने भाजपा के नेता पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए उनके ख़िलाफ़ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है.
पिछले गुरुवार से सदन की कार्यवाही पर छाने की बारी पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह की थी. उन्हें पिछले साल दिसंबर में तब इस्तीफ़ा देना पडा जब उन पर संयुक्त राष्ट्र के ‘तेल के बदले अनाज’ कार्यक्रम के संदर्भ में आरोप लगे.
पिछले साल अक्तूबर में संयुक्त राष्ट्र की वाल्कर समिति की रिपोर्ट में नटवर सिंह के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी पर इस कार्यक्रम से फ़ायदा उठाने का आरोप लगा था. इस कार्यक्रम के तहत सद्दाम हुसैन की सरकार तेल बेचकर खाद्य सामग्री खरीद सकती थी.
नटवर सिंह और कांग्रेस दोनो ने ही इन आरोपों का खंडन किया था लेकिन विपक्ष के लगातार अभियान चलाने पर सरकार को इस मामले में जाँच करानी पड़ी और फिर नटवर सिंह ने विदेश मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
नटवर पर नज़रिया स्पष्ट नहीं
पिछले हफ़्ते जाँच आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप दी लेकिन आधिकारिक तौर पर इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पहले ही भारतीय टीवी चैनलों ने इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्रसारित करनी शुरु कर दी.
आयोग ने कांग्रेस को तो ‘क्लीन चिट’ दे दी लेकिन नटवर सिंह के बारे में कोई स्पष्ट नज़रिया नहीं अपनाया. रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व विदेश मंत्री के प्रभाव का इस्तेमाल अनुबंध पाने में तो हुआ लेकिन इस बात के कोई सबूत नहीं है कि उन्हें इससे कोई आर्थिक या निजी लाभ हुआ.
लेकिन जिस तरह से आयोग की रिपोर्ट मीडिया को लीक हुई उसे लेकर नटवर सिंह नाराज़ हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ख़िलाफ़ संसदीय विशेषाधिकार के हनन के प्रस्ताव का नोटिस दिया है.
इस नोटिस से काफ़ी हलचल हुई क्योंकि ऐसा हर रोज़ तो होता नहीं कि प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ ऐसा नोटिस लाया जाए और वह भी अपने ही पार्टी के सदस्य की और से.
अब दोनो ही प्रधानमंत्री और पूर्व विदेश मंत्री के ख़िलाफ़ नोटिस राज्य सभा के अध्यक्ष के पास हैं और उन्होंने इन पर फ़ैसला करना है.
संसदीय मामलों के मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रियरंजन दासमुंशी ने बीबीसी को बताया कि इस नोटिस से गठबंधन सरकार या प्रधानमंत्री को कोई ख़तरा नहीं है. उनका कहना था कि विपक्ष का और कोई ‘एजेंडा’ नहीं है वह केवल संसद की कार्यवाही में विघ्न डालना चाहता है.
रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि जाँच आयोग की रिपोर्ट लीक होने के मामले का कोई आधार नहीं है.
उनका कहना था, “प्रेस के हाथ तो उस रिपोर्ट के कुछ अंश ही लगे थे. क्या इससे साबित होता है कि रिपोर्ट लीक हुई और क्या इस पर नोटिस देना उचित है?” उन्होंने इस बात का संकेत भी दिया कि नटवर सिंह के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है. उनका कहना था, “जल्द ही पार्टी का निर्णय आप तक पहुँचाया जाएगा.”
लेकिन विपक्ष के नेता चाहते हैं कि प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ नोटिस स्वीकार किया जाना चाहिए और ये भी माँग कर रहे हैं कि नटवर सिंह को सदन में बोलने का मौक़ा भी दिया जाए.
उधर अनुभवी राजनीतिक पर्यवेक्षकों को सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप के इस दौर में एक ‘पैटर्न’ नज़र आ रहा है.
अमरीका बना रहा है निशाना?
नटवर सिंह इसका संकेत दे चुके हैं और उनके समर्थकों ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि अमरीका नटवर सिंह को निशाना बना रहा है. उनका कहना है कि नटवर सिंह भारत-अमरीका परमाणु समझौते का विरोध करने और अमरीका की ईरान नीति का विरोध करने की कीमत चुका रहे हैं.
वे इस प्रकरण यानि नटवर सिंह के इस्तीफ़े की घटना के बीच और ब्रितानी विदेश मंत्री जैक स्ट्रॉ को उस पद से हटाए जाने वाली घटना में समानता देख रहे हैं.
एक विपक्षी नेता और विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह का कहना है, “नटवर सिंह और स्ट्रॉ को अमरीकी नीतियों का विरोध करने के लिए हटाया गया.”
सत्ता पक्ष में भी भारत-अमरीका परमाणु समझौते के मूल आधार और मुख्य बिंदुओं को पर बार-बार बदले जाने की अमरीकी कोशिश से अमरीका-विरोधी भावना बढ़ रही है.
पिछले साल 18 जुलाई को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति ज़ॉर्ज बुश ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत भारत परमाणु ईंधन स्पलाई करने वाले देशों के गुट से ऊर्जा उत्पाद के लिए परमाणु ईंधन ले पाएगा और अपने असैनिक परमाणु केंद्रों में उपकरणों में निरीक्षकों को जाने की अनुमति देगा.
अमरीका में परमाणु अप्रसार गुट ने पहले इसका विरोध किया था. भारत में हाल के हफ़्तों में इस बारे में चिंता बढ़ गई है क्योंकि अमरीकी प्रतिनिधि सभा ने इस समझौते को पारित करने से पहले कुछ और शर्तें लगा दी हैं. इससे अमरीका में परमाणु अप्रसार से चिंतित कुछ लोगों की चिंता घटी है लेकिन समझौते के भारत में विरोधी और मुखर हो गए हैं. उनका कहना है कि भारत अमरीका के दबाव में आ रहा है.
कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद बृंदा कारत ने सोमवार को वामदलों के नटवर सिंह प्रकरण पर विचार रखते हुए कहा, “ये सब अमरीका का षड्यंत्र है ताकि भारत परमाणु और विदेश नीति से संबंधित मुद्दों पर अपनी संप्रभुता के अधिकार छोड़ दे."
एक अन्य सांसद और पाएनियर अख़बार के संपादक चंदन मित्रा इस मुद्दे को और स्पष्ट कर देते हैं. उनका कहना है, “चाहे जसवंत सिंह वाली घटना हो या फिर नटवर सिंह वाली, इस पूरी स्थिति से सरकार किसी गंभीर शर्मिंदगी के बिना निकल जाएगी जब तक कि विपक्षी दल भारत-अमरीका परमाणु समझौते का विरोध करने के लिए सुसंगत रणनीति नहीं अपनाते.”
सरकार कह चुकी है कि भारत इस समझौते के बारे नई शर्तें नहीं मानेगा लेकिन शायद विपक्षी दलों को इस समझौते के बारे में आश्वस्त करने की और ज़रूरत हैं. विपक्षी दल इस बारे में सदन में एक प्रस्ताव भी लाना चाहते हैं. इस तरह सरकार और विपक्ष के बीच आजकल चल रहा विवाद तो केवल असल मैच से पहले का ‘वॉर्म अप’ मैच प्रतीत होता है. असल मैच तो अभी होना है जिसमें परमाणु समझौते पर फ़ैसला हो सकता है और उसकी अंतिम रूपरेख भी तय हो सकती है.