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रविवार, 06 अगस्त, 2006 को 12:21 GMT तक के समाचार

नारायण बारेठ
बीबीसी संवाददाता, जयपुर

पाकिस्तानी ज़ायरीनों का स्वागत नहीं

सूफी संत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स में ज़ियारत करने आए पाकिस्तानी श्रद्धालुओं के दल का अजमेर नगर परिषद ने पारंपरिक अभिनंदन करने से इनकार कर दिया है.

परिषद लगभग हर उर्स के समापन पर एक समारोह आयोजित कर पाकिस्तानी ज़ायरीन (तीर्थयात्री) का स्वागत करती रही है. लेकिन इस बार यह समारोह भारत-पाक बिगड़ते रिश्तों की भेंट चढ़ गया.

पाकिस्तान से इस बार भी 480 से ज़्यादा श्रद्धालुओं का समूह अजमेर आया था.

इन श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए अजमेर में पर्याप्त इंतज़ाम किए गए थे. लेकिन भाजपा शासित नगर परिषद ने सरहद पार से आए श्रद्धालुओं की विदाई पर पारंपरिक समारोह आयोजित करने से हाथ खींच लिया है.

परिषद के अध्यक्ष धर्मेंद्र गहलोत कहते हैं, "ऐसे माहौल में पाक नागरिकों के सम्मान की कोई ज़रूरत नहीं है. जब पाकिस्तान से आने वाले लोगों पर सरकार ख़ुद चौकसी करवाती है तो ऐसे लोग मेहमान की श्रेणी में नहीं आते."

आलोचना

अजमेर ज़िले से कांग्रेस विधायक गोपाल बाहेती ने परिषद के इस रुख़ की निंदा की है.

वे कहते हैं यह जनता से जनता के बीच दोस्ती की भावना के विरुद्ध है. लेकिन गहलोत कहते हैं इंतज़ाम में कोई कमी नहीं की गई है. इससे पहले भाजपा शासित पूर्ववर्ती नगर परिषद जोर-शोर से समारोह आयोजित करती रही है.

इन सबसे बेख़बर ख़ादिमों की संस्था अंजुमन ने दरगाह में विदाई लेकर अपने वतन लौटते पाक ज़ायरीन का समारोह पूर्वक स्वागत किया है.

स्वागत से अभिभूत पाकिस्तानी समूह के प्रमुख समीर अहमद ने कहा उन्हें अपनी क़िस्मत पर नाज़ है कि वो ख्वाज़ा साहब की ज़ियारत कर सके.

स्वगात के दौरान भारत-पाक दोस्ती ज़िंदाबाद के नारे लगे और अमन चैन की दुआ की गई. यह विदाई की बेला थी.

जहाँ दिलों में भावनाओं का ज्वार था और आंखें नम थी. लोगों को डर था कि दोनों देशों में बनी दोस्ती की यह फ़िज़ा कहीं सियासत की भेंट न चढ़ जाए.